अपनी चादर में पैर रुकते नहीं जमाने के
ऐसे फैला कि हक उसी का है ।
चुप है दूजा कि छोड़ रहने दो, कलह न हो
वो तो निपट कायर ही समझ बैठा है।
शान्ति से शान्ति की वार्ता अगर चाहे कोई
गीदड़ भभकी से भय बनाके ऐसे ऐंठा है।
शेर कब तक सहे गीदड़ की ये ललकार आखिर
एक गर्जन से ही लाचार छुपा दुबका है।
करें तो क्या करें बिल में छुपे इन जयचन्दों का
कहीं अर्जुन भी वही प्रण लिए ऐंठा हैं।
तमाशा देखने को हैं कितने आतुर देखो !
मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।
मदद की गुहारें भी हवा में दफन होती हैं यहाँ
इयरफोन में सुनने लायक ही कौन रहता है ।
महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
45 टिप्पणियां:
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-3-21) को "सीमित है संसार में, पानी का भण्डार" (चर्चा अंक 4014) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
सादर धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
बहुत सुन्दर , बहुत सुन्दर सराहनीय |
मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।
मदद की गुहारें भी हवा में दफन होती हैं यहाँ
वर्तमान के परिक्षेत्र में आपकी रचना सटीक बैठती है
वाह, सुधा जी बिना बोले आप ने कइयों को आईना दिखाया होगा।और। समझने वाले को समझ भी आया होगा ।। सार्थक रचना के लिए आपको बधाई ।
सुधा जी, समझने वाले समझ गए हैं, ना समझे वो अनाड़ी है ।
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है। वाह। क्या बात है। बहुत खूब। सार्थक सृजन। आपको बधाई।
क्या खूब कहा है ... बहुत बढ़िया ।
महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति,सुधा दी।
वाह कलयुगी व्यास वीडियो बनाने बैठा है इसका जवाब नहीं
महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
वाह!!बेहतरीन सृजन सखी।
महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
सटीक भावाभिव्यक्ति सुधा जी ।
वाह! बहुत ख़ूब 👌
सराहनीय ।
हार्दिक धन्यवाद आ. आलोक जी!
हार्दिक धन्यवाद राजपुरोहित जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी!
हृदयतल से धन्यवाद विरेन्द्र जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अमृता जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद ज्योति जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार सखी!
तहेदिल से धन्यवाद मीना जी!
सहृदय धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
बहुत सुन्दर कहा है....
कोरोना के चक्कर में सिनेमा हॉल्स में तो मेगा-बजट वाली महाभारत चल नहीं पाएगी, सिर्फ़ इन्टरनेट का ही आसरा रहेगा.
यानी कि घाटे का सौदा !
तमाशा देखने को हैं कितने आतुर देखो !
मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।
वाह! लाज़वाब!!
बहुत सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद, नैनवाल जी!
जी, सही कहा आपने ...
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सर!
हृदयतल से धन्यवाद आ. विश्वमोहन जी!
बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी!
सही कहा आपने।
आज कल दिखावे के ही बोलबाला है । लाइमलाइट में रहने के लिए शायद यही सब ज़रूरी लगता ।
सार्थक व्यंग्य ।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, आ. सर!
जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
व्यंग की तीखी धार नज़र आ रही है हर पंक्ति में ...
आज के समय को पैनी नज़र से देखने और लिखने का बाखूबी प्रयास किया है इस व्यंग में आपने ...
बहुत प्रभावशाली रचना ...
वाह, बहुत ख़ूब
कलयुग की महिमा का खूबसूरत वर्णन
हार्दिक धन्यवाद हिमकर श्याम जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हार्दिक धन्यवाद प्रीति जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सटीक महिमा मंडन हमारे कलयुगीन व्यास माहाशयों का। वैदिक साहित्य रचियताओं ने गूढ़ ज्ञान में डुबकी लगाई तो वैदिक संपदा का अर्जन किया था पर इन कुटिल ज्ञानियों की मात्र एक क्लिक पर सब कुछ उपलब्ध है। बहुत बढिया व्यंग लिखा आपने। हार्दिक शुभकामनाएं ❤❤🙏🌹🌹
अब मेल से मिल जाती हैं आपकी रचनाएँ प्रिय सुधा जी। हार्दिक स्नेह आपके लिए❤❤🌹🌹🙏
तहेदिल से धन्यवाद सखी रचना के भाव एवं सार को समझने व स्पष्ट करने हेतु...
सस्नेह आभार।
आपकी कोशिश कामयाब रही सखी!मैं तो कुछ भी सुधार नहीं कर पायी...।
अभी भी कोशिश ही कर रही हूँ।
हृदयतल से धन्यवाद नासवा जी!
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