धरा तुम महकी-महकी बहकी-बहकी सी हो
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फूलों की पंखुड़ियों से धरा तुम यूँ मखमली हो गयी महकती बासंती खुशबू संग शीतल बयार हौले से बही खुशियों की सौगात लिए तुम अति प्रसन्न सी हो । धरा तुम महकी - महकी बहकी - बहकी सी हो ! सुमधुर सरगम गुनगुनाती धानी चुनरी सतरंगी फूलों कढ़ी हौले-हौले से सरसराती, नवोढ़ा सा सोलह श्रृंगार किये आज खिली - खिली सजी-धजी सी हो । धरा तुम महकी - महकी बहकी-बहकी सी हो ! कोई बदरी संदेशा ले के आई क्या ? आसमां ने प्रेम-पाती भिजवाई क्या ? प्रेम रंग में भीगी भीगी आज मदहोश सी हो । धरा तुम महकी-महकी बहकी - बहकी सी हो ! मिलन की ऋतु आई धरा धानी चुनरीओढे मुख छुपाकर यूँ लजाई , नव - नवेली सुमुखि जैसे सकुचि बैठी मुँह दिखाई आसमां से मिलन के पल "हाल ए दिल" तुम कह भी पायी ? आज इतनी खोई खोई सी हो । धरा तुम महकी - महकी बहकी - बहकी सी हो ! चाँद भी रात सुनहरी आभा लिए था । चाँदनी लिबास से अब ऊब गया क्या ? तुम्हारे पास बहुत पास उतर आया ऐसे , सगुन का संदेश ले के आया जैसे सुनहरी चाँदनी से तुम नहायी रात भर क्या ? ऐसे निखरी और निखरी सी हो । धरा तुम महकी-महकी बहकी-बहकी सी हो !