सुहानी भोर
उदियांचल से सूर्य झांकता, पनिहारिन सह चिड़िया चहकी। कुहकी कोयल डाल-डाल पर, ताल-ताल पर कुमुदिनी महकी। निरभ्र आसमां खिला-खिला सा, ज्यों स्वागत करता हो रवि का। अन्तर्द्वन्द उमड़े भावों से, लिखने को मन आतुर कवि का।। दुहती ग्वालिन दुग्ध गरगर स्वर, चाटती बछड़ा गाय प्यार से। गीली-गीली चूनर उसकी, तर होती बछड़े की लार से। उद्यमशील निरन्तर कर्मठ, भान नहीं उनको इस छवि का। अन्तर्द्वन्द उमड़े भावों से, लिखने को मन आतुर कवि का कहीं हलधर हल लिए काँध पर, बैलों संग खेतों में जाते। सुरभित बयार से महकी दिशाएं, कृषिका का आँचल महकाते। सुसज्जित प्रकृति भोर में देखो, मनमोहती हो जैसे अवि का। अन्तर्द्वन्द उमड़े भावों से, लिखने को मन आतुर कवि का चित्र, साभार गूगल से...