आशान्वित हुआ फिर गुलमोहर...
खडा था वह आँगन के पीछे लम्बे ,सतत प्रयास और अथक, इन्तजार के बाद आयी खुशियाँ.... शाखा -शाखा खिल उठी थी, खूबसूरत फूलों से.... मंद हवा के झोकों के संग, होले-होले..... जैसे पत्ती-पत्ती खुशियों का, जश्न मनाती...... धीमी-धीमी हिलती-डुलती, खिलते फूलो संग...... जैसे मधुर-मधुर सा गीत, गुनगुनाती......... खुशियाँ ही खुशियाँ थी हर-पल, दिन भी थे हसीन...... चाँदनी में झूमती, मुस्कुराती टहनी, रातें भी थी रंगीन...... आते-जाते पंथी भी मुदित होते, खूबसूरत फूलोंं पर..... कहते "वाह ! खिलो तो ऐसे जैसे , खिला सामने गुलमोहर"...... विशाल गुलमोहर हर्षित हो प्रसन्न, देखे अपनी खिलती सुन्दर काया, नाज किये था मन ही मन...... कितना प्यारा था वह क्षण !......... खुशियों की दोपहर अभी ढली नहीं कि - दुख का अंधकार तूफान बनकर ढा गया, बेचारे गुलमोहर पे.... लाख जतन के बाद भी--- ना बचा पाया अपनी खूबसूरत शाखा, भंयकर तूफान से....... अधरों की वह मुस्कुराहट अधूरी सी , रह गयी..... जब बडी सी शाखा टूटकर जमीं पर , ढह गयी........... तब अवसा