एक नयी सोच जब मन में आने लगी................ भावना गीत बन गुनगुनाने लगी......................
बुधवार, 29 सितंबर 2021
मौसम बदल जाने को है
रविवार, 26 सितंबर 2021
आसमाँ चूम लेंगे हम
हौसला माँ ने दिया , 'पर' दे रहे पापा
कहकही सुन डर भला,क्यों खोयें हम आपा
यूँ ना अब से डरेंगे हम ,
आसमाँ चूम लेंगे हम
खुशी से झूम लेंगे हम ।
ख्वाब हर पूरा करेंगे, भेड़ियों से ना डरेंगे
सीख कर जूड़ो-कराँटे, अपने लिए खुद ही लडेंगे
हर बुरी नजर की नजरें नोंच लेंगे हम
आसमाँ चूम लेंगे हम
खुशी से झूम लेंगे हम ।
देहलीज से निकले कदम अब ना रूकेंगे
निर्भय बढेंगे हौसले अब ना झुकेंगे
संस्कार हैं सरताज अपने,
बेड़ियां इनको कभी बनने न देंगे हम
आसमांँ चूम लेंगे हम
खुशी से झूम लेंगे हम ।
सब एक जैसे तो नहीं, दुनिया भली है
तम है किसी कोने पे, रौशन हर गली है
जब साथ है अपनों का तो अब ना डरेंगे हम
आसमाँ चूम लेंगे हम
खुशी से झूम लेंगे हम।
कंटकों को चुन जिन्होंने राह बनाई
जीत ली अस्तित्व की हर इक लड़ाई
हैं उन्ही की बानगी फिर क्यों रुकेंगे हम
आसमांँ चूम लेंगे हम
खुशी से झूम लेंगे हम।
है खुला परवाज़, 'पर' हमको मिले हैं
अपनों का है साथ तो अब क्या गिले हैं
अनुसरित पदचिह्न से कुछ और बढकर
आने वालों को पुनः नवचिह्न देंगे हम
आसमाँ चूम लेंगे हम
खुशी से झूम लेंगे हम ।।
मंगलवार, 21 सितंबर 2021
आर्थिक दरकार
बड़ी मेहनत से कमाया
इच्छाओं पर अंकुश लगा
पाई-पाई कर बचाया
कुछ जरूरी जरूरतों के अलावा
नहीं की कभी मन की
न बच्चों को करने दी
बचपन से ही उन्हें
सर सहलाकर समझाया
और कमी-बेसियों के
संग ही पढाया-लिखाया।
बुढापे की देहलीज में जाते -जाते
अपनी जमापूँजी को बड़े जतन से
बेटी - बेटों में बाँटने के लिए
सपरिवार बैठकर
सबने दिमाग घुमाया
बेटियों के ब्याह में दहेज
का बराबर हिसाब लगाया
बेटियों को विदा कर
बचे - खुचे पैसों में
बेटे की नौकरी के मार्फत
लोन का जुगाड़ लगाया
दिन-रात एक कर
शहर में दो कमरों का
छोटा सा घर बनाया
अपनी सफलता पर
आप ही जश्न मना
दसों रोगों के चलते
असमय ही
विदा ले ली संसार से...
इधर बेटा नई-नई नौकरी
माता-पिता का अंतिम संस्कार
बहन-बहनोइयों का सत्कार
लोन का बोझ ढोते
बड़ा ऐश कर रहा
लोगों की नजर में........
सुनी-सुनाई कही-कहाई सुन
अब बहनें भी आ धमकी
अपने शहरी घर
कानूनी कागजात लेकर
भाई ! हम भी हैं हिस्सेदार
इस शहरी घर पर
हमारा भी है अधिकार
हिस्सा दे हमारा !
करे भी तो क्या
कानून का मारा ?...
तिस पर ये विभिन्न त्योहार
रक्षा बंधन फिर भाई दूज
इन्हीं से तो निभता है न
भाई-बहन का पवित्र प्यार!
अब बड़ी आसानी से
कहते हैं लोग-बाग
पड़ौसी और रिश्तेदार
माँ-बाप तक ही होता है मायका
भाई बड़ा खुदगर्ज निकला
नहीं उसे बहिनों से प्यार
मुँह नहीं लगाता उन्हें
हे राम ! माँ-बाप बिना
कैसे सूने हो गये
इन बेचारियों के त्योहार !
क्या करें किसे दोष दें
कौन है इन परिस्थितियों
का जिम्मेदार ?
माँ-बाप और उनके संस्कार ?
या मध्यम वर्ग की
आर्थिक दरकार ?
सोमवार, 13 सितंबर 2021
तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे
जो गुण नहीं था उसमें
हरदम देखा तुमने
हर कसौटी पर खरी उतरे
ये भी चाहा तुमने
पर जो गुण हैं उसमें
उसको समझ सकोगे?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
बचपन की यादों से जिसने
समझौता कर डाला
और तुम्हारे ही सपनों को
सर आँखों रख पाला
पर उसके अपने ही मन से
उसको मिलने दोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
सबको अपनाकर भी
सबकी हो ना पायी
है बाहर की क्यों अपनों
संग सदा परायी
थोड़ा सा सम्मान
कभी उसको भी दोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
सुनकर तुमको सीख ही जाती
आने वाली पीढ़ी
सोच यही फिर बढ़ती जाती
हर पीढ़ी दर पीढ़ी
परिर्वतन की नव बेला में
खुद को कभी बदलोगे
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
समाधिकार उसे दोगे तो
वह हद में रह लेगी
अनुसरणी सी घर-गृहस्थी की
बागडोर खुद लेगी
निज गृहस्थी के खातिर तुम भी
अपनी हद में रहोगे ?
तुम उसके जज्बातों की
भी कद्र कभी करोगे ?
सोमवार, 6 सितंबर 2021
ये भादो के बादल
![]() |
चित्र साभार,pixabay से... |
भुट्टे मुच्छे तान खड़े
तोरई टिण्डे हर्षाते हैं
चढ़ मचान फैला प्रतान
अब सब्ज बेल लहराते हैं
चटक चमकती धूप छुपा
ये घुमड़ घुमड़ गहराते हैं
उमस भरे मौसम में ये
राहत थोड़ी दे जाते हैं
हरियाये हैं खेत धान के,
देख इन्हें बतियाते हैं
जान इल्तजा उमड़-घुमड़
ये धूप मे वर्षा लाते हैं
श्रृंगित प्रकृति के भाल मुकुट
जब इन्द्रधनुष बन जाते हैं
नाच मयूरा ठुमक ठुमक
घन गर्जन ताल बजाते हैं
ये भादो के बादल हैं
अब बचा-खुचा बरसाते हैं
ये चंचल कजरारे मेघा
सबके मन को भाते हैं।
बुधवार, 1 सितंबर 2021
निभा स्वयं से पहला रिश्ता
मम्मा ! मैंने अपने लिए विश नहीं माँगी
"बिन्नी चल जल्दी से नहा-धोकर मंदिर हो आ ! आज से तेरी बोर्ड परीक्षा शुरू हो रही है न, तो जाकर भोलेनाथ जी से प्रार्थना करना परीक्षा में...

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मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ? दिल दुखी पहले से ही फिर क्यों रुलाता है ? भूलने देता नहीं बीते दुखों को भी आज में बीते को भी क्यों ज...
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कभी उसका भी वक्त आयेगा ? कभी वह भी कुछ कह पायेगी ? सहमत हो जो तुम चुप सुनते मन हल्का वह कर पायेगी ? हरदम तुम ही क्यों रूठे ...
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चित्र साभार pixabay.com से मन विचारों का बवंडर लेखनी चुप सो रही ज्यों घुमड़ते मेघ नभ में तृषित धरणी रो रही अति के मारे सबसे हारे शरण भी किस...