सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे, तेरे पुण्यों का भार तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ● तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे
वाह अति सुकोमल ऋतु के स्वागत में लिखी आपकी सुंदर रचना ने एक मोहक चित्र खींच दिया प्रिय सुधा जी।
जवाब देंहटाएं....
शरद के
स्वागत में वादियों के
दामन
सजने लगे,
बहकी हवाओं ने
हर शय में
नया राग
जगाया है।
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सस्नेह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.रविन्द्र जी मेरी रचना को पाँच लिंको के आनन्द मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,बदलते मौसम का चित्रण करती लाज़बाब रचना सुधा जी।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार, उर्मिला जी!
हटाएंबहुत सुंदर सृजन, बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार, भारती जी !
हटाएंवर्षा ऋतु को विदाई तथा आती हुई शरद ऋतु को शुभकामना संदेश देती सुंदर मनोहारी कविता, बहुत शुभकामनाएँ सुधा जी।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंचार दिन चौमास में , बादल घुमड़ के चल दिये
जवाब देंहटाएंदमक उठा अम्बर बदन, समझो शरद आने को है।
बहुत लाजबाब रचना, सुधा दी।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद ज्योति जी!
हटाएंबहुत बहुत सुंदर सुधाजी,आती शरद की आहट इतनी मनभावन होती है कि लेखनी स्वयं मधुरस छलकाती हैं,और भाव सृजन यूँ मुखरित होते हैं ।
जवाब देंहटाएंमनभावन मनमोहक।
अप्रतिम।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभारआ.कुसुम जी !
हटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद ज्योति जी!
जवाब देंहटाएंवाह। ऋतु की विदाई का सुंदर शब्दांकन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद अंकुर जी!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सुंदर, सार्थक रचना !........
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सन्जू जी!
हटाएंआपका भी बहुत बहुत स्वागत है ब्लॉग पर।
बदलते मौसम का चित्रण करती रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार संजय जी!
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