चित्र गूगल से साभार......
पति की उलाहना से बचने के लिए सुमन ने ड्राइविंग तो सीख ली, मगर भीड़ भरी सड़कों पर गाड़ी चलाते हुए उसके हाथ-पाँव फूल जाते।आज बेटी को स्कूल से लाते समय उसे दूर चौराहे पर भीड़ दिखी तो उसने स्पीड स्लो कर दी।
"मम्मा ! स्पीड क्यों स्लो कर दी आपने" ? बेटी झुंझलाकर बोली तो सुमन बोली "बेटा !आगे की भीड़ देखो!वहाँ पहुँचकर क्या करुँगी, मुझे डर लग रहा है, छि! मेरे बस का नहीं ये ड्राइविंग करना"....
"अभी स्पीड ठीक करो मम्मा! आगे की आगे देखेंगे। ये गाड़ियों के हॉर्न सुन रहे हैं आप? सब हमें ही हॉर्न दे रहे हैं मम्मा !
उसकी झुंझलाहट देखकर सुमन ने थोड़ी स्पीड तो बढ़ा दी पर सोचने लगी, बच्ची है न, आगे तक नहीं सोचती। अरे ! पहले ही सोचना चाहिए न आगे तक, ताकि किसी मुसीबत में न फँसे ।वह सोच ही रही थी कि उसी चौराहे पर पहुँच गयी जहाँ की भीड़ से डरकर उसने स्पीड कम की थी।
परन्तु ये क्या! यहाँ तो सड़क एकदम खाली है! कोई भीड़ नहींं !
साथ में बैठी बेटी को अपने में मस्त देखकर वह सोची, चलो ठीक है इसे ध्यान नहीं, कोई बड़ा होता तो अभी फिर से टोकता।
तभी उसने भी टोक दिया..."मैंने कहा था न मम्मा ! अब देखो ! कहाँ है भीड़? आप बेकार में डरती हैं और फिर आपको लगता है कि आपसे ड्राइविंग नहीं होगी । आप तो अच्छी ड्राइविंग कर रही हैं! ( मुस्कराते हुए)
"ठीक है दादी माँ!अब नहीं डरूँगी" , कहते हुए वह बुदबुदायी आजकल के बच्चे भी न, एक भी मौका नहीं छोड़ते।
पर वैसे सही तो कहा इसने,आगे की आगे देखेंगे
और आगे देखा तो......
ओह ! ये गलती तो मैं हमेशा करती हूँ आगे के सम्भावित डर से पहले ही कदम लड़खड़ा कर चली और फिर न जाने कितने हॉर्न (तंज) सहे हैं जीवन में.....।
गाड़ी तो अब सरपट निकल रही थी पर सुमन विचारों के झंझावातों में फंसी सोच रही थी कि---
'दूरदृष्टा होना भी तभी ठीक है जब उचित समय पर उचित निर्णय लेना आये ,नहीं तो संशय और संभावना के मध्य फँसे रह जाते हैं'.....।