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बी पॉजिटिव

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  "ओह ! कम ऑन मम्मा ! अब आप फिर से मत कहना अपना वही 'बी पॉजिटिव' ! कुछ भी पॉजिटिव नहीं होता हमारे पॉजिटिव सोचने से ! ऐसे टॉक्सिक लोगों के साथ इतने नैगेटिव एनवायरनमेंट में कैसे पॉजिटिव रहें ?   कैसे पॉजिटिव सोचें जब आस-पास इतनी नेगेटिविटी हो ?.. मम्मा ! कैसे और कब तक पॉजिटिव रह सकते हैं ? और कोशिश कर भी ली न तो भी कुछ भी पॉजिटिव नहीं होने वाला !  बस भ्रम में रहो ! क्या ही फायदा ? अंकुर झुंझलाहट और  बैचेनी के साथ आँगन में इधर से उधर चक्कर काटते हुए बोल रहा था ।  वहीं आँगन में रखी स्प्रे बोतल को उठाकर माँ गमले में लगे स्नेक प्लांट की पत्तियों पर जमी धूल पर पानी का छिड़काव करते हुए बोली, "ये देख कितनी सारी धूल जम जाती है न इन पौधों पर । बेचारे इस धूल से तब तक तो धूमिल ही रहते है जब तक धूल झड़ ना जाय" ।   माँ की बातें सुनकर अंकुर और झुंझला गया और मन ही मन सोचने लगा कि देखो न माँ भी मेरी परेशानी पर गौर ना करके प्लांट की बातें कर रही हैं ।   फिर भी माँ का मन रखने के लिए अनमने से उनके पास जाकर देखने लगा , मधुर स्मित लिए माँ ने बड़े प्यार से कहा "ये देख ...

पुनर्जन्म

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  इस कहानी में पुनर्जन्म का मतलब किसी जीवात्मा का नया शरीर धारण कर पुनः जन्म लेने से नहीं अपितु सुप्त भाव संवेदनाओं का मन में पुनः जागृत होने से है । पूरे पन्द्रह दिन बाद जब भुविका ननिहाल से लौटी तो  माँ (अनुमेधा) उसे बड़े प्यार से गले लगाकर उलाहना देते हुए बोली,  "उतर गया तेरा गुस्सा ? नकचढ़ी कहीं की ! इत्ते दिनों से नानी के पास बैठी है, अब कुछ ही दिनों में जॉब के लिए चली जायेगी, माँ का तो ख्याल ही नहीं है ! है न" ! माँ से अलग होते हुए भुविका अनमने से मुस्कुरायी और फिर बड़े से बैग को घसीटते हुए अपने कमरे तक ले गयी । "अरे ! इतने बड़े थैले में ये क्या भरकर दिया है तेरी नानी ने" ? अनुमेधा हैरानी से पूछते हुए उसके पीछे-पीछे आयी तो भुविका बैग की चेन खोलते हुए बोली, "आप खुद ही देख लीजिए " ! वह बड़ी उत्सुकता से बैग के अन्दर झाँकने लगी, तभी भुविका ने कुछ मेडल, सम्मानपत्र और तस्वीरें निकालकर वहीं बैड पर फैला दिये । "हैं !....ये क्या है...?  ये....  ये सब यहाँ क्यों ले आई भुवि" ?  हैरानी से आँखें बड़ी कर अनुमेधा ने पूछा तो भुविका बोली , " माँ ! ये सब आपके...

ज़िन्दगी ! समझा तुझे तो मुस्कराना आ गया

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दुपहरी बेरंग बीती सांझ हर रंग भा गया । ज़िन्दगी ! समझा तुझे तो मुस्कुराना आ गया । अजब तेरे नियम देखे,गजब तेरे कायदे । रोते रोते समझ आये,अब हँसी के फ़ायदे । भीगी पलकों संग लब को खिलखिलाना आ गया ।  ज़िन्दगी ! समझा तुझे तो मुस्कुराना आ गया । क्यों कहें संघर्ष तुझको, ये तो तेरा सिलसिला । नियति निर्धारित सभी , फिर क्या करें तुझसे गिला ।  सत्य को स्वीकार कर जीना जिलाना आ गया ।  ज़िन्दगी !  समझा तुझे तो मुस्कुराना आ गया । हो पूनम की रात सुन्दर या तिमिर घनघोर हो । राहें हों कितनी अलक्षित, आँधियाँ चहुँ ओर हो । हर हाल में मेरे 'साँवरे' तेरे गुण गुनाना आ गया । ज़िन्दगी ! समझा तुझे तो मुस्कराना आ गया । पढिए  ऐसे ही जिंदगी से जुड़ी एक और रचना ■  चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा

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