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सितंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विश्वविदित हो भाषा

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  मनहरण घनाक्षरी (घनाक्षरी छन्द पर मेरा एक प्रयास)  हिंदी अपनी शान है भारत का सम्मान है प्रगति की बाट अब इसको दिखाइये मान दें हिन्दी को खास करें हिंदी का विकास सभी कार्य में इसे ही अग्रणी बनाइये संस्कृत की बेटी हिंदी सोहती ज्यों भाल बिंदी मातृभाषा से ही निज साहित्य सजाइये हिंदी के विविध रंग रस अलंकार छन्द इसकी विशेषताएं सबको बताइये समानार्थी मुहावरे शब्द-शब्द मनहरे तत्सम,तत्भव सभी उर में बसाइये संस्कृति की परिभाषा उन्नति की यही आशा राष्ट्रभाषा बने हिन्दी मुहिम चलाइये डिजिटल युग आज अंतर्जाल पे हैं काज हिंदी का भी सुगम सा पोर्टल बनाइए विश्वविदित हो भाषा सबकी ये अभिलाषा जयकारे हिन्दी के जग में फैलाइए ।

बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी

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आगे बढ़ ना सकेंगे जब तक,                  बढ़े ना अपनी हिंदी ।                 भारत की गौरव गरिमा ये,                  राष्ट्र भाल की बिंदी ।                 बढ़ा मान गौरवान्वित करती,                 मन में भरती आशा।                 सकल विश्व में हो सम्मानित,                 बने राष्ट्र की भाषा ।                गंगा सी पावनी है हिन्दी,                सागर सी गुणग्राही ।                हर भाषा बोली के शब्दों को ,                खुद में है समाई ।                सारी भगिनी भाषाओं को,                 लगा गले दुलराती।                तत्सम, तत्भव, देशी , विदेशी,                सबको है अपनाती।               आधे-अधूरे शब्दों का भी,                 बन जाती है सहारा ।                सारे भारत में संपर्कित,                भावों की रसधारा।                स्वाभिमान-सद्भाव जगाती,                संस्कृति की परिभाषा।                सर्वमान्य हो सकल जगत में,                यही सबकी अभिलाषा।                 विश्वमंच पर गूँजे इक दिन,                 हिंदी का जयकारा ।                 बने राष्ट्रभाषा अब हिन्द

सार-सार को गहि रहै

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  साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  "बच्चों इस दोहे मे कबीर दास जी कहते हैं कि, इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है न, जो सार्थक को बचा ले और निरर्थक को उड़ा दे " । "गलत ! बिल्कुल गलत"  !..... मोटी और कर्कश आवाज में कहे ये शब्द सुनकर सरला और उसके पास ट्यूशन पढ़ने आये बच्चे चौंककर इधर-उधर देखने लगे । आस-पास किसी को न देखकर सरला के दिल की धड़कन बढ़ गयी उसने सोचा ये आवाज तो बरामदे की तरफ से आयी और वहाँ तो एक खाट पर पक्षाघात की चपेट में आये उसके बीमार पति लेटे हैं।  तो ! तो ये बोलने लगे?    भावातिरेक से सरला की आँखों से आँसू टपक पड़े।   दीवार का सहारा लेकर खड़ी हुई और बरामदे की तरफ बढ़ी।    बूढ़ी सिकुड़ी आँखें आशा से चमकती हुई कुछ फैल गयी। काँपते हाथों से पति के ऊपर से चादर हटाई। उखड़ी श्वास को वश में कर, जी ! कहकर उनकी आँखों में झाँका। जो निर्निमेष सीढ़ी के नीचे बने छोटे से स्टोर की ओर ताक रही थी । ओह ! ये तो !..  निराशा से शरीर की रही सही हिम्मत भी ज्यों ढ़ेर हो गयी।   ट्यूशन पढ़ने आये बच्चों का ख्याल आया, मन

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