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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

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बहुत समय से बोझिल मन को  इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें  उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से  उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी  कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन,  माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित,  फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता ,  ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर,  स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो,  जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से,  मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे,  पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से,  निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा,  मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर,  ...

एक मोती क्या टूटा जो उस माल से...

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एक मोती क्या टूटा जो उस माल से हर इक मोती को खुलकर जगह मिल गयी एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी तुम गये जो घरोंदा ही निज त्याग कर त्यागने की तुम्हें फिर वजह मिल गयी लौट के आ समय पर समय कह रहा फिर न कहना कि मेरी जगह हिल गई  था जो कमजोर झटके में टूटा यहाँँ जोड़ कर गाँठ अब उसमें पड़ ही गयी कौन रुकता यहाँँ है किसी के लिए सोच उसकी भी आगे निकल ही गई तेरे जाने का गम तो बहुत था मगर जिन्दगी को अलग ही डगर मिल गई   चित्र साभार pixabay से.....

हिन्दी अपनी शान

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कुण्डलिया छन्द --   प्रथम प्रयास  【1】 हिन्दी भाषा देश की, सब भाषा सिरमोर। शब्दों के भण्डार हैं, भावों के नहिं छोर। भावों के नहिं छोर, सहज सी इसकी बोली। उच्चारण आसान, रही संस्कृत हमजोली। कहे सुधा ये बात, चमकती माथे बिन्दी। भारत का सम्मान, देश की भाषा हिन्दी  【2】 भाषा अपने देश की , मधुरिम इसके बोल। सहज सरल मनभावनी, है हिन्दी अनमोल। है हिन्दी अनमोल, सभी के मन को भाती। चेतन चित्त विभोर, तरंगित मन लहराती। कहे सुधा इक बात, यही मन की अभिलाषा। हिन्दी बने महान , राष्ट्र की गौरव भाषा।। चित्र, साभार pixabay से......

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