गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

बसंत तेरे आगमन पर


Autumn


बसंत तेरे आगमन पर
खिलखिलाई ये धरा भी
इक नजर देखा गगन ने
तो लजाई ये धरा भी

कुहासे की कैद से अब
मुक्त रवि हर्षित हुआ
रश्मियों से जब मिला
तो मुस्कराई ये धरा भी

बसंत तेरे आगमन पर
खिलखिलाई ये धरा भी

नभ निरभ्र  आज ज्यों
उत्सव कोई मना रहा
शशि सितारों संग निशा की
बारात लेके आ रहा
शशि निशा की टकटकी पर
फुसफुसाई ये धरा भी

बसंत तेरे आगमन पर
खिलखिलाई ये धरा भी

अधखिली सी कुमुदिनी पे
भ्रमर जब मंडरा रहा
पास आकर बड़ी अदा से
मधुर गुनगुना रहा
दूर जाये जब भ्रमर तो
तिलमिलाई ये धरा भी

बसंत तेरे आगमन पर
खिलखिलाई ये धरा भी
इक नजर देखा गगन ने
तो लजाई ये धरा भी
                   
          चित्र साभार गूगल से




पढ़िए बसंत ऋतु पर एक गीत

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

कहमुकरी



rose flower


बल विद्या बुद्धि को बढ़ाता
बस धनवानों से है नाता
है छोटा पर बड़े हैं काम
क्या सखि साजन ?...
...........न सखि बादाम ।


बिन उसके मैं जी न पाऊँ
हर पल मैं उसको ही चाहूँ
अब तक उसका न कोई सानी
क्यों सखि साजन ?.........
.................... ना सखी पानी।

है छोटा पर काम बड़े हैं
कण कोशों में भरे पड़े हैं
कीट-पतंगों से अनुराग
क्या सखि साजन ?....
.................. नहिं री पराग ।

प्रेम प्रतीक है माना जाता
मन को मेरे अति हर्षाता
काँटों में भी रहे शादाब
हैं सखी साजन ?......
..................नहिं री गुलाब ।

  चित्र साभार गूगल से.....



गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

बसंत की पदचाप

spring
                                                                    
                   चित्र साभार प्रिंट्स से


बसंत की पदचाप सुन
शिशिर अब सकुचा रही
कुहासे की चादर समेटे
 ्पतली गली से जा रही ।

हवाएं उधारी ले धरा
पात पीले झड़ा रही
      नवांकुर से होगा नवसृजन
      मन्द-मन्द मुस्करा रही ।

फूली सरसों लहलहाके
सबके मन को भा रही
अमराइयों में झूम-झूमे
   कोकिला भी गा रही ।

शिशिर देखे पीछे मुड़ के
जीते कैसे मुझसे लड़ के !
      रवि-रश्मियां भी खिलखिला के
वसंत-राग गा रही  ।

पंखुड़ियाँ फूलों लदी
सुगन्ध हैंं फैला रही
गुनगुना रहे भ्रमर
  तितलियां मंडरा रही ।


नवेली सी सजी धरा
घूँघट में यूँ शरमा रही
रति स्वयं ज्यों काम संग
 अब धरा में आ रही ।

शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

कह मुकरी.....प्रथम प्रयास


 women in traditional attire
             चित्र सभार गूगल से....

◆ चाह देखकर भाव बढ़ाता
     हाथ लगाओ खूब रुलाता
     है सखी उसको खुद पर नाज
     क्या सखी साजन ?.....
                ..........ना सखी प्याज ।



◆   बढ़ती भीड़ घटे बेचारा
      वही तो हम सबका सहारा
      उसके बिन न जीवन मंगल
     क्या सखी साजन ?.......
       .................  ना सखी जंगल ।


◆   जित मैं जाऊँँ उत वो आये
       शीतल काया मन हर्षाये
       रात्रि समा वह देता बाँध
       क्या सखी साजन ?......
         ..................ना सखी चाँद ।


◆     भोर-साँझ वह मन को  भाये
        सर्दियों  में तन-मन गर्माये
        उसके लिए सबकी ये राय
         हैं सखी साजन ?...........
         ...................ना सखी चाय ।


हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...