एक नयी सोच जब मन में आने लगी................ भावना गीत बन गुनगुनाने लगी......................
बुधवार, 31 मार्च 2021
बदलती सोच 【1】
सोमवार, 22 मार्च 2021
अहा ! कितने व्यूअर् होंगे !
अपनी चादर में पैर रुकते नहीं जमाने के
ऐसे फैला कि हक उसी का है ।
चुप है दूजा कि छोड़ रहने दो, कलह न हो
वो तो निपट कायर ही समझ बैठा है।
शान्ति से शान्ति की वार्ता अगर चाहे कोई
गीदड़ भभकी से भय बनाके ऐसे ऐंठा है।
शेर कब तक सहे गीदड़ की ये ललकार आखिर
एक गर्जन से ही लाचार छुपा दुबका है।
करें तो क्या करें बिल में छुपे इन जयचन्दों का
कहीं अर्जुन भी वही प्रण लिए ऐंठा हैं।
तमाशा देखने को हैं कितने आतुर देखो !
मुँह में राम बगल में छुरी दबा के बैठा है।
मदद की गुहारें भी हवा में दफन होती हैं यहाँ
इयरफोन में सुनने लायक ही कौन रहता है ।
महाभारत हुआ तो अहा ! कितने 'व्यूअर' होंगे !
कलयुगी व्यास अब वीडियो बनाने बैठा है।
मंगलवार, 16 मार्च 2021
पाई-पाई जोड़ती
कमाई अठन्नी पर खरचा रुपया कर
तिस पे मंहगाई देखो कमर है तोड़ती
सिलटी दुफटी धोति तन लाज ढ़क रही
पेट काट अपना वो पाई-पाई जोड़ती।
तीस में पचास सी बुढ़ायी गयी सूरत से
व्याधियां भी हाड़ -मांस सब हैं निचोड़ती
सूट-बूट पहन पति,नजर फेर खिसके आज
अकल पे निज अब , सर-माथ फोड़ती।
मन तोड़ पाई जोड़ , संचित करे जो आज
रोगन शिथिल तन , कुछ भी न सोहती
सेहत अनमोल धन, बूझि अब दुखी मन
मन्दमति जान अपन भाग अब कोसती।
चित्र साभार ' pixabay .com'
मंगलवार, 9 मार्च 2021
नयी सोच
ठुड्डी को हथेली में टिकाए उदास बैठी बिन्नी से माँ ने बड़े प्यार से पूछा, "क्या हुआ बेटा ये उदासी क्यों"?
"मम्मा!आज मेरे इंग्लिश के मार्क्स पता चलेंगें "...
"तो?....आपने तो अच्छी तैयारी की थी न एक्जाम की....फिर डर क्यों?
मम्मा! मुझे लगता है मैं फेल हो जाउंगी।
अरे....!...नहीं बेटा....शुभ-शुभ बोलो, और अच्छा सोचो! वो कहते हैं न , बी पॉजिटिव!...
हम्म,कहते तो हैं पर क्या करूं मम्मा!खुशी चाहिए तो गंदा सोचना पड़ता है...।
अरे..! ये क्या बात हुई भला... अच्छा सोचोगे तब अच्छा होगा....और बुरा सोचोगे तो बुरा ही होगा न ...
ओह मम्मा!अच्छा सोचती हूँ तो एक्सपेक्टेशन बढ़ती है फिर जो भी मार्क्स आते हैं वो कम लगने लगते हैं और दुखी होती हूँ....और इसके अपॉजिट बुरा सोचकर एक्सपेक्टेशन खतम, फिर जो भी मार्क्स आयें वो खुशी देते हैं....इसीलिये खुशी चाहिए तो बुरा सोचना ही पड़ता है मम्मा!....
हैं....कहते हुए अब माँ असमंजस में पड़ गयी।
चित्र ,साभार गूगल से...
गणपति वंदना
जय जय जय गणराज गजानन गौरी सुत , शंकर नंदन । प्रथम पूज्य तुम मंगलकारी करते हम करबद्ध वंदन । मूस सवारी गजमुखधारी मस्तक सोहे रोली चंदन । भावस...

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मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ? दिल दुखी पहले से ही फिर क्यों रुलाता है ? भूलने देता नहीं बीते दुखों को भी आज में बीते को भी क्यों ज...
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दुपहरी बेरंग बीती सांझ हर रंग भा गया । ज़िन्दगी ! समझा तुझे तो मुस्कुराना आ गया । अजब तेरे नियम देखे,गजब तेरे कायदे । रोते रोते समझ आये,अब ह...
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एक कली जब खिलने को थी, तब से ही निहारा करता था। दूर कहीं क्षितिज में खड़ा वह प्रेम निभाया करता था । दीवाना सा वह भ्रमर, पुष्प ...