गुरुवार, 30 जून 2022

मन कभी वैरी सा बनके क्यों सताता है

 

sad girl


मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?

दिल दुखी पहले से ही फिर क्यों रुलाता है ?

भूलने देता नहीं बीते दुखों को भी

आज में बीते को भी क्यों जोड़े जाता है ?


हौसला रखने दे, जा, जाने दे बीता कल,

आज जो है, बस उसी में जी सकें इस पल ।

आने वाले कल का भी क्यों भय दिखाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?


हर लड़ाई पार कर जीवन बढ़े आगे,

बुद्धि के बल जीत है, दुर्भाग्य भी भागे ।

ना-नुकर कर,  क्यों उम्मीदें तोड़ जाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?


मन तू भी मजबूत हो के साथ देता तो,

दृढ़ बन के दुख को आड़े हाथ लेता तो,

बेबजह क्यों भावनाओं में डुबाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?


यंत्र है तन, मन तू यंत्री, रहे नियंत्रित जो

पा सके जो चाहे, कुछ भी ना असम्भव हो?

फिर निराशा के भँवर में क्यों फँसाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?


बुधवार, 22 जून 2022

बरसी अब ऋतुओं की रानी

Rainy season


बरसी अब ऋतुओं की रानी

झटपट सबने छतरी तानी

भरने लगा सड़कों पे पानी

धरा ने ओढ़ी चूनर धानी


नभ में काले बादल  छाये

गरज-गरज के इत-उत धाये

नाचे मोर पंख फैलाये

कोयल मीठी धुन में गाये


गर्मी से कुछ राहत पाकर

दुनिया सारी चहक उठी

बूँदों की सरगोशी सुनकर

सोंधी मिट्टी महक उठी


पी-पी रटने लगा पपीहा

दादुर भी टर -टर बोला

झन झन कर झींगुर ने भी 

अब अपना मुँह है खोला


पल्लव-पुष्पों की मुस्कान

हरियाये हैं खेत-खलिहान

घर-घर में पकते पकवान

हर्षित हो गये सभी किसान ।





गुरुवार, 9 जून 2022

सिर्फ गृहिणी !

Story housewife



नन्हीं सी भव्या ने अभी - अभी स्कूल जाना शुरू  किया, वह रोज कुछ न कुछ बहाने  बनाती, ताकि स्कूल न जाना पड़े ।  आज तो जिद्द पर अड़ गयी कि मुझे डौली (गुड़िया) को भी अपने साथ स्कूल ले जाना है।

भावना के बहुत समझाने पर भी जब वह न मानी तो थक -हारकर उसने कहा , "अमित ! ले जाने देते हैं इसे आज गुड़िया स्कूल में, बाद में टीचर समझा बुझाकर बैग में रखवा देंगी । ऐसे रोज - रोज रुलाकर भेजना अच्छा नहीं लगता। है न अमित !

 पर अमित ने तो जैसे उसे सुना ही नहीं । बड़े गुस्से में बेटी को झिंझोड़कर उससे गुड़िया छीनकर फेंक दी। डाँट-डपट कर रोती हुई बच्ची को स्कूल छोड़ने चला गया । 

 बेटी को रोते हुए जाते देख भावना बहुत दुःखी हुयी , उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था । उसे आज अमित का व्यवहार भी बड़ा अजीब लगा, वह सोचने लगी कैसे पापा हैं अमित ? कैसे झिंझोड़ दिया हमारी नन्हीं सी बच्ची को !

सोचते सोचते वह अपने बचपन की यादों में खो गयी । अपने पापा को याद करने लगी कि एक मेरे पापा थे,  मेरे प्यारे पापा ! उसकी आँखें छलछला गयी उस दिन को याद करके, जब उसने बचपन में कान की एक बाली गुम हो जाने पर बिना बाली स्कूल न जाने की जिद्द ठान ली थी। मम्मी तो गुस्सा कर रही थी पर पापा ने तो मुझे लेकर सुबह-सुबह गली भर की दुकाने खुलवा दी थी। क्योंकि इतनी सुबह दुकानें खुली जो नहीं थी। 

 बहुत कोशिश के बाद जब एक दुकान में बाली मिली तब तक मुझे स्कूल छोड़ने वाला रिक्शा जा चुका था । फिर दूसरा रिक्शा करवाकर पापा मुझे लेकर स्कूल पहुंचे तो बहुत देर हो चुकी थी ।  टीचर ने देर से आने का कारण पूछा तो कैसे पापा ने सारी गलती अपने ऊपर ले ली , ताकि मुझे डाँट न पडे़ ।  मेरे पापा !

तभी डोरबेल की आवाज सुन दरवाजा खोला तो सामने अमित को देखकर पूछा , अमित !"चुप हो गयी थी वह ? अभी भी रो तो नहीं रही थी न  ?  फिर समझाते हुए बोली, "अमित आपको उसे डाँटना नहीं चाहिए था ।  प्यार से समझाते तो वह मान जाती"।

सुनकर अमित झल्लाते हुए बोला, "तो ले जाने दें उसे गुड़िया स्कूल में ?   
नासमझी करेगी तो डाँट तो पड़ेगी ही । बहुत जिद्दी हो रही है आजकल" ।

"अमित वह बच्ची है थोड़ी बहुत जिद्द तो करेगी ही ।
हमें उसे प्यार से समझाना होगा" ।

"हाँ तुम्हारे इसी प्यार में तो बिगड़ रही है वो" !

"अरे ! ये क्या बात हुई भला" ?  भावना बात को मजाक में टालने की कोशिश में मुस्कुरा दी ।

परन्तु अमित बहुत चिढ़कर बोला,  "हाँ ! और सख्ती से लूंगा उसे, वरना वह भी कुछ नहीं कर पायेगी अपनी जिन्दगी में । सिर्फ गृहणी बन कर रह जायेगी तुम्हारी तरह"।

सुनकर भावना सन्न सी रह गयी फिर बात को क्लियर करने के लिए पूछ ही बैठी ,  "क्या ? क्या कहा आपने  ?  सिर्फ गृहणी ! ये आप कह रहे हैं अमित ?  आपको याद तो हैं न कि आपके कहने पर ही मैंने अपनी जॉब छोड़ी। आप चाहते थे कि हमारे बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए हम दोनों मेंं से एक का बच्चों के साथ होना जरूरी है।
और ये भी आपने ही कहा था न कि बच्चों की परवरिश पापा से बेहतर माँ ही कर सकती है, तो फिर आज ? आज मैं सिर्फ़ गृहिणी " ?

"ओह्हो भावना ! फिर बहस करने लगी तुम ?
तुमसे तो बात करना ही बेकार है । अब मैं तुम्हारी तरह घर बैठ तो नहीं जो फालतू की बहसबाजी में समय बर्बाद करूँ, और भी बहुत काम होते हैं मुझे", कहते हुए अमित वहाँ से चला गया ।

 उसके जाने के बाद उसके कहे एक-एक शब्द भावना के कानों में गूँज- गूँजकर उसके मन को आहत करने लगे ।
बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्भाला और शान्त मन से सोचा तो आज उसे याद आया कि उसकी बड़ी बहन, माँ और सभी सहेलियाँ उसे इसी बात को समझाने के लिये कितनी कोशिश कर रहे थे उसे उस दिन जब उसने अपनी जॉब छोड़ने का फैसला लिया था । 
तब उसने किसी की नहीं सुनी थी क्योंकि वह भी मानती थी कि बच्चों के लिए माँ का साथ कितना जरूरी है ।

पर अब !  अब क्या ? अब मुझे जल्द ही कुछ सोचना होगा। कहीं बहुत देर ना हो जाय ।  उसने अपने ऑफिस की सहकर्मी जो उसकी दोस्त भी है से बात की तो पता चला कि वहाँ वैकेंसी हैं अप्लाई करने पर जल्द ही में उसे जॉब मिल गई ।

फिर एक दिन अमित ने देखा कि भावना बड़े तड़के घर के सारे काम निबटाकर तीन तीन टिफिन तैयार कर बड़ी हड़बड़ी में खुद भी तैयार हो रही है तो उसने पूछा
 "भावना ! आज कहाँ की तैयारी है" ?
"जॉब" (भावना ने सपाट सा जबाब दिया)
"और भव्या" ?
"क्रैच (शिशुपालन गृह) में रहेगी , मैंने बात कर ली है"।
"पर हमने तो कुछ और डिसाइड किया था न । ओह ! तो तुमने मेरी बात से नाराज होकर...
"नाराज नहीं शुक्रगुज़ार हूँ तुम्हारी अमित कि तुमने  समय पर अपना रूप दिखाकर मेरी आँखें खोल दी" (अमित की बात बीच में ही काटते हुए वह बोली और भव्या को लेकर निकल पड़ी ) ।








बुधवार, 1 जून 2022

गैरों के हाथों ना सौंप दें ,यारा ! निज जीवन का रिमोट

Touch me not plant


जीवन है अपना, आओ स्वयं को 

स्वयं ही करना सीखें प्रमोट !

गैरों के हाथों ना सौंप दें,

यारा ! निज जीवन का रिमोट !


किसने जाना किन हालों में

कैसा जीवन हमने जिया

मथकर इससे निकले हलाहल

को हमने भी स्वयं पिया

मन की सुनके मन के मुताबिक

कौन करेगा हमें सपोट 

गैरों के हाथों ना सौंप दें,

यारा ! निज जीवन का रिमोट !


किसी के शब्दों से आहत मन

दुख के समन्दर डूबा जाये

गाकर महिमा कोई मन को

झाड़ चने की खूब चढ़ाये

शब्द छुएं सहमें अंतर्मन 

बने ना हम यूँ 'टच मी नॉट'

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा !  निज जीवन का रिमोट !


कर दें सबके स्वार्थ सिद्ध तो

तारीफें सुन दिन बन जाये

ना जो कहें तो, अब तक की

करनी में भी पानी फिर जाये

फिर दूजों की मर्जी से ही

दबते  'सैड या हैप्पी' मोड

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा ! निज जीवन का रिमोट !


अपनी कमी-खूबी पहचाने

 निज व्यक्तित्व निखारें हम

अपनी खुशी अब अपने जिम्मे

 जान के जान संवारें हम

खुल के जिएं फिर निर्भय होके

प्रमुदित मन 'औ' आत्मिक थॉट

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा ! निज जीवन का रिमोट !


       चित्र, साभार pixabay से...


मरे बिना स्वर्ग ना मिलना

 कंधे में लटके थैले को खेत की मेंड मे रख साड़ी के पल्लू को कमर में लपेट उसी में दरांती ठूँस बड़े जतन से उस बूढ़े नीम में चढ़कर उसकी अधसूखी टहनिय...