मन कभी वैरी सा बनके क्यों सताता है
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मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ? दिल दुखी पहले से ही फिर क्यों रुलाता है ? भूलने देता नहीं बीते दुखों को भी आज में बीते को भी क्यों जोड़े जाता है ? हौसला रखने दे, जा, जाने दे बीता कल, आज जो है, बस उसी में जी सकें इस पल । आने वाले कल का भी क्यों भय दिखाता है ? मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ? हर लड़ाई पार कर जीवन बढ़े आगे, बुद्धि के बल जीत है, दुर्भाग्य भी भागे । ना-नुकर कर, क्यों उम्मीदें तोड़ जाता है ? मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ? मन तू भी मजबूत हो के साथ देता तो, दृढ़ बन के दुख को आड़े हाथ लेता तो, बेबजह क्यों भावनाओं में डुबाता है ? मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ? यंत्र है तन, मन तू यंत्री, रहे नियंत्रित जो पा सके जो चाहे, कुछ भी ना असम्भव हो? फिर निराशा के भँवर में क्यों फँसाता है ? मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?