बुधवार, 1 जून 2022

गैरों के हाथों ना सौंप दें ,यारा ! निज जीवन का रिमोट

Touch me not plant


जीवन है अपना, आओ स्वयं को 

स्वयं ही करना सीखें प्रमोट !

गैरों के हाथों ना सौंप दें,

यारा ! निज जीवन का रिमोट !


किसने जाना किन हालों में

कैसा जीवन हमने जिया

मथकर इससे निकले हलाहल

को हमने भी स्वयं पिया

मन की सुनके मन के मुताबिक

कौन करेगा हमें सपोट 

गैरों के हाथों ना सौंप दें,

यारा ! निज जीवन का रिमोट !


किसी के शब्दों से आहत मन

दुख के समन्दर डूबा जाये

गाकर महिमा कोई मन को

झाड़ चने की खूब चढ़ाये

शब्द छुएं सहमें अंतर्मन 

बने ना हम यूँ 'टच मी नॉट'

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा !  निज जीवन का रिमोट !


कर दें सबके स्वार्थ सिद्ध तो

तारीफें सुन दिन बन जाये

ना जो कहें तो, अब तक की

करनी में भी पानी फिर जाये

फिर दूजों की मर्जी से ही

दबते  'सैड या हैप्पी' मोड

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा ! निज जीवन का रिमोट !


अपनी कमी-खूबी पहचाने

 निज व्यक्तित्व निखारें हम

अपनी खुशी अब अपने जिम्मे

 जान के जान संवारें हम

खुल के जिएं फिर निर्भय होके

प्रमुदित मन 'औ' आत्मिक थॉट

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा ! निज जीवन का रिमोट !


       चित्र, साभार pixabay से...


32 टिप्‍पणियां:

Lokesh Nashine ने कहा…

बहुत शानदार

Meena sharma ने कहा…

आज किसी कारण से मन दुःखी था सुधाजी और फेसबुक पर इस कविता का लिंक देखा। सच में बड़ी शांति मिली पढ़कर। कई बार हम सब कुछ जानते समझते हुए भी अपनी खुशियों का रिमोट दूसरों के हाथ में दे देते हैं। बहुत सरल सहज शब्दों में अपनी बात कह जाती हैं आप।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार लोकेश जी !

Jyoti Dehliwal ने कहा…

अपनी कमी-खूबी पहचाने निज व्यक्तित्व निखारें हम
अपनी खुशी अब अपने जिम्मे, जान के जान संवारें हम।

सुधा दी, जब हम उपरोक्त सिर्फब्दो लाइनों का सही मायने में मतलब समझ लेंगे उस दिन हमारा जीवन खुशियों से भर जाएगा। बहुत ही सुंदर रचना।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चाहते तो हैं कि रिमोट अपने पास ही रखें लेकिन कब कौन हम पर हावी हो कर रिमोट छीन लेता है पता ही नहीं चलता । संदेश प्रक सृजन ।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार मीनाजी सुन्दर प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

जी , ज्योति जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, बिल्कुल सही कहा आपने...
पर अब ध्यान से अपना रिमोट सम्भालना होगा हमें...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

Meena Bhardwaj ने कहा…

कर दें सबके स्वार्थ सिद्ध तो
तारीफें सुन दिन बन जाये
ना जो कहें तो, अब तक की
करनी में भी पानी फिर जाये
फिर दूजों की मर्जी से ही
दबते 'सैड या हैप्पी' मोड
लाजवाब सृजन सुधा जी !

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

बहुत सुंदर...जीवन दर्शन देती कविता...

Guthliyan ने कहा…

बहुत सुंदर कविता।
सच में कभी भी अपनी ख़्वाहिशों के लिए दूसरे पर निर्भर नहीं होना चाहिए।आपकी कविता ने वास्तविकता को प्रकट कर मन के भावों को जागृत कर दिया।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी !

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार जवं धन्यवाद नैनवाल जी!

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

किसी के शब्दों से आहत मन

दुख के समन्दर डूबा जाये

गाकर महिमा कोई मन को

झाड़ चने की खूब चढ़ाये

शब्द छुएं सहमें अंतर्मन

बने ना हम यूँ 'टच मी नॉट'

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा ! निज जीवन का रिमोट !

** सही कहा आपने अपने जीवन की बागडोर अपने हाथ में ही रखनी चाहिए ।
सराहनीय विषय पर सुंदर सृजन

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सुजाता जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी !

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चा मंच के लिए चयन करने हेतु।

डॉ 0 विभा नायक ने कहा…

बढ़िया👌

आतिश ने कहा…

कर दें सबके स्वार्थ सिद्ध तो

तारीफें सुन दिन बन जाये

ना जो कहें तो, अब तक की

करनी में भी पानी फिर जाये

फिर दूजों की मर्जी से ही

दबते 'सैड या हैप्पी' मोड

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा ! निज जीवन का रिमोट !

बहुत सुन्दर रचना ।

आदरणीय मैम,
मेरे पोस्ट आपका स्वागत है अपनी बहुमुल्य अनुभवों से मेरा मार्ग दर्शन करें ।

Jyoti khare ने कहा…

जीवन जीने का सलीका सिखाती बहुत सुंदर रचना
वाह

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.ज्योति जी !

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद विभा जी !

Sudha Devrani ने कहा…

जी, जरूर ...
हार्दिक धन्यवाद आपका ।

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

अपनी कमी-खूबी पहचाने

निज व्यक्तित्व निखारें हम

अपनी खुशी अब अपने जिम्मे

जान के जान संवारें हम

खुल के जिएं फिर निर्भय होके

प्रमुदित मन 'औ' आत्मिक थॉट

गैरों के हाथों ना सौंप दें

यारा ! निज जीवन का रिमोट !
जी उम्दा सृजन ।

MANOJ KAYAL ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति
अपना रिमोट दूसरे के हाथ में दिया तो कठपुतली बनकर रह गए समझो

Hindikunj ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुत है .एक विचारणीय रचना !
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच लिखा है ...
अपना रिमोट किसी के भी हाथों देना खुद को कठपुतली सा बना देना है ...
गहरा चिंतन करती हुई रचना ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

कितना कुछ कह दिया इन साधारण से शब्दों में..

हो सके तो समभाव रहें

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