नभ तेरे हिय की जाने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन
नभ तेरे हिय की जाने कौन....
उमड़ घुमड़ करते ये मेघा
बूँद बन जब न बरखते हैं
स्याह वरण हो जाता तू
जब तक ये भाव नहीं झरते हैं
भाव बदली की उमड़-घुमड़
मन का उद्वेलन जाने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन....
तृषित धरा तुझे जब ताके
कातर खग मृग तृण वन झांके
आधिक्य भाव उद्वेलित मन...
रवि भी रूठा बढती है तपन
घन-गर्जन तेरा मन मंथन
वृष्टि दृगजल हैं माने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन...
कहने को दूर धरा से तू
पर नाता रोज निभाता है
सूरज चंदा तारे लाकर
चुनरी धानी तू सजाता है
धरा तेरी है धरा का तू
ये अर्चित बंधन माने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन....
ऊष्मित धरणी श्वेदित कण-कण
आलोड़ित नभ हर्षित तृण-तृण
अरुणिम क्षितिज ज्यों आकुंठन
ये अमर आत्मिक अनुबंधन
सम्बंध अलौकिक माने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन....
नभ तेरे हिय की जाने कौन...?