सोमवार, 26 जुलाई 2021

नभ तेरे हिय की जाने कौन

 Cloudy sky


नभ तेरे हिय की जाने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन

नभ तेरे हिय की जाने कौन....


उमड़ घुमड़ करते ये मेघा

बूँद बन जब न बरखते हैं

स्याह वरण हो जाता तू 

जब तक ये भाव नहीं झरते हैं

भाव बदली की उमड़-घुमड़

मन का उद्वेलन जाने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन....


तृषित धरा तुझे जब ताके

कातर खग मृग तृण वन झांके

आधिक्य भाव उद्वेलित मन...

रवि भी रूठा बढती है तपन

घन-गर्जन तेरा मन मंथन

वृष्टि दृगजल हैं माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन...


कहने को दूर धरा से तू

पर नाता रोज निभाता है

सूरज चंदा तारे लाकर

चुनरी धानी तू सजाता है

धरा तेरी है धरा का तू

ये अर्चित बंधन माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन....


ऊष्मित धरणी श्वेदित कण-कण

आलोड़ित नभ हर्षित तृण-तृण

अरुणिम क्षितिज ज्यों आकुंठन

ये अमर आत्मिक अनुबंधन

सम्बंध अलौकिक माने कौन

ये अकुलाहट पहचाने कौन....


नभ तेरे हिय की जाने कौन...?


सोमवार, 19 जुलाई 2021

नोबची


Portulaca ,nobchi


"ये क्या है मम्मा ! आजकल आप हमसे भी ज्यादा समय अपने पौधों को देते हो"...? शिकायती लहजे में पलक और पल्लवी ने माँ से सवाल किया।

"हाँ बेटा !  ये पौधे हैं ही इतने प्यारे...अगर तुम भी इन पर जरा सा ध्यान दोगे न , तो मोबाइल टीवी छोड़कर मेरी तरह इन्हीं के साथ समय बिताना पसन्द करोगे,  आओ मैं तुम्हें इनसे मिलवाती हूँ"....माँ उनका ध्यान खींचते हुए बोली।

दोनों  पास आये तो माँ ने उन्हें गमले में उगे पौधे की तरफ इशारा करते हुए कहा  "देखो !  ये है नोबची"

नोबची! ये कैसा नाम है ?...दोनों ने आँख मुँह सिकोड़ते हुए एक साथ पूछा।

"हाँ नोबची! और जानते हो इसे नोबची क्यों कहते है" ?

"क्यों कहते हैं" ?   उन्होंने पूछा तो माँ बोली, "बेटा ! क्योंकि ठीक नौ बजे सुबह ये पौधा अपने फूल खिलाता है"।

हैं !!.नौ बजे !!...हमें भी देखना है।  (दोनों बड़े आश्चर्यचकित एवं उत्साहित थे) और अगली सुबह समय से पहले ही दोनों बच्चे नोबची पर नजर गड़ाए खड़े हो गये।

बस नौ बजने ही वाले है दीदी ! 

हाँ  पलक ! और देख  नोबची भी खिलने लगा है !!!...

नोबची की खिलखिलाहट के साथ अपनी बेटियों के खिले चेहरे देख माँ की खुशी का ठिकाना न रहा ।

उसने मन ही मन संकल्प लिया कि इसी तरह मैं अपनी बच्चियों को प्रकृति से जोड़ने की पूरी कोशिश करुंगी।




मंगलवार, 13 जुलाई 2021

पावन दाम्पत्य निभाने दो

 

Breakup



अब नहीं प्रेम तो जाने दो

जैसा जी चाहे जी लो तुम

कर्तव्य मुझे तो निभाने दो

अब नहीं प्रेम तो जाने दो


हमराही बन के जीवन में

चलना था साथ यहाँ मिलके

काँटों में खिले कुछ पुष्पों को

चुनना था साथ यहाँ मिलके

राहों में बिखरे काँटों को

साथी मुझको तो उठाने दो...

अब नहीं प्रेम तो जाने दो...


ये फूल जो अपनी बगिया में 

प्रभु के आशीष से पाये हैं

नन्हें प्यारे मासूम बहुत

दोनों के मन को भाये हैं

दोनों की जरुरत है इनको

इनका दायित्व निभाने दो

अब नहीं प्रेम तो जाने दो....


चंद दिनों के साथ में साथी

कुछ पल तो खुशी के बिताये हैं

आज की मेरी इन कमियों में

वो दिन भी तुमने भुलायें हैं

यादों को सहेज लूँ निज दिल में

अनबन के पल बिसराने दों

अब नहीं प्रेम तो जाने दो....


छोटी - छोटी उलझन में यूँ

परिवार छोड़ना उचित नहीं

अनबन को सर माथे रखकर

घर-बार तोड़ना उचित नहीं

इक - दूजे के पूरक बनकर

पावन दाम्पत्य निभाने दो

अब नहीं प्रेम तो जाने दो......


चित्र साभार, गूगल से....



गणपति वंदना

  जय जय जय गणराज गजानन गौरी सुत , शंकर नंदन । प्रथम पूज्य तुम मंगलकारी करते हम करबद्ध वंदन । मूस सवारी गजमुखधारी मस्तक सोहे रोली चंदन । भावस...