आस का वातावरण फिर, इक नया विश्वास लाया
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आस का वातावरण फिर, इक नया विश्वास लाया । सो रहे सपनों को उसने, आज फिर से है जगाया । चाँद ज्यों मुस्का के बोला, चाँदनी भी दूर मुझसे । हाँ मैं तन्हा आसमां में, पर नहीं मजबूर खुद से । है अमावश का अंधेरा, पूर्णिमा में खिलखिलाया । आस का वातावरण फिर, इक नया विश्वास लाया । शूल से आगे निकल कर, शीर्ष पर पाटल है खिलता । रात हो कितनी भी काली, भोर फिर सूरज निकलता । राह के तम को मिटाने, एक जुगनू टिमटिमाया । आस का वातावरण फिर, इक नया विश्वास लाया । चाह से ही राह मिलती, मंजिलें हैं मोड़ पर । कोशिशें अनथक करें जो, संकल्प मन दृढ़ जोड़ कर । देख हर्षित हो स्वयं फिर, साफल्य घुटने टेक आया । आस का वातावरण फिर, इक नया विश्वास लाया ।