मन की बंजर भूमि पर,
कुछ बाग लगाए हैं ।
मैंने दर्द को बोकर,
अपने गीत उगाए हैं
दर्द के बीजों से उगे गीत पढ़ने या सुनने की चाह संम्भवतः उन्हें होगी जो संवेदनशील होंगे भावुक होंगे और कुछ ऐसा पढ़ने की चाह रखते होंगे जो सीधे दिल को छू जाय । यदि आप भी ऐसा कुछ तलाश रहे हैं तो यकीनन ये पुस्तक आपके लिए ही है । श्रृंगार के चरम भावों को छूती इस पुस्तक का नाम है 'तब गुलमोहर खिलता है ' ।
जी हाँ ! ये अद्भुत काव्य संग्रह ब्लॉग जगत की सुपरिचित लेखिका एवं सुप्रसिद्ध कवयित्री आदरणीया मीना शर्मा जी की तृतीय पुस्तक 'तब गुलमोहर खिलता है' के रूप में साहित्य प्रेमियों के लिए अनुपम भेंट हैं ।
आदरणीया मीना शर्मा जी 2016 से ब्लॉग जगत में ' चिड़िया' नामक ब्लॉग पर कविताएं एवं 'प्रतिध्वनि' ब्लॉग पर गद्य रचनाएं प्रकाशित करती हैं । सौभाग्य से ब्लॉग जगत में ही मेरा परिचय भी आपसे हुआ और मुझे आपकी रचनाओं के आस्वादन करने एवं आपसे बहुत कुछ सीखने समझने के सुअवसर प्राप्त हुए ।
प्रस्तुत पुस्तक आपकी तृतीय पुस्तक है, इससे पहले 2018 में प्रथम कविता संग्रह 'अब ना रुकूँगी' और उसके बाद 2020 में 'काव्य प्रभा' नामक साझा संकलन एवं 2021 में साझा कविता संग्रह 'ओस की बूँदे' भी प्रकाशित हो चुकी हैं।
साहित्यिक गतिविधियों में शालीनता एवं संवेदनशीलता की परिचायक आदरणीया मीना शर्मा जी की पुस्तक 'तब गुलमोहर खिलता है' में इनकी पूरी 68 कविताएं संकलित हैं, जिन्हें दो भागों में विभक्त किया गया है प्रत्येक भाग में 34 , 34 कविताएं हैं।
बहुत ही मनमोहक सिंदूरी गुलमोहर की छटा बिखेरता आकर्षक कवर पृष्ठ एवं भूमिका में हिन्दी के प्राध्यापक प्रसिद्ध हिन्दी ब्लॉगर एवं लेखक आदरणीय दिलवाग सिंह विर्क जी द्वारा लिखित सम्पूर्ण रचनाओं का सारांश इसकी महत्ता को और भी रुचिकर बना रहा है ।
तदुपरांत 'पाठकों से' में स्वयं लेखिका के भावोद्गारों का समावेश हैं जिसमें आपने अपना परिचय देते हुए अपने जीवन के विभिन आयामों को साझा कर पाठकों से संवाद स्थापित किया है एवं अंत में अपनी इस बौद्धिक सम्पत्ति को अपने अराध्यदेव मीरा और राधा के प्राणप्यारे मनमोहन को सप्रेम समर्पित किया है।
अब स्वयं प्रेम के प्रतीक मुरलीधर मनमोहन जिनके अराध्य हैं उनकी लेखनी से प्रेम उद्धृत ना हो ऐसा कैसे हो सकता है , अतः इनकी रचनाओं का मुख्य स्वर प्रेम है। प्रेम और श्रृंगार रस से ओतप्रोत इनकी कविताओं में चिंतन उसके अर्थ को गहराई प्रदान करता है।
एक उदाहरण देखिये..
गीत के सुर सजे, भाव नुपुर बजे,
किन्तु मन में न झंकार कोई उठी।
चेतना प्राण से, वेदना गान से,
प्रार्थना ध्यान से, कब अलग हो सकी ?
लाख पर्वत खड़े मार्ग को रोकने,
प्रेम सरिता का बहना कहाँ थम सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गये
वो किसी छन्द में कोई कब लिख सका ?
प्रेम नयनों की भाषा है, अपरिभाषित प्रेम मूक है, प्रेम की अभिव्यक्ति करना आसान नहीं। और क्या- क्या है प्रेम ? देखिये क्या कहती हैं कवयित्री !
इसी प्रेम ने राधाजी को
कृष्ण विरह में था तड़पाया,
इसी प्रेम ने ही मीरा को,
जोगन बन, वन-वन भटकाया ।
आभासी ही सदा क्षितिज पर
गगन धरा से मिलता है ।
प्रेम बड़ा छलता है
साथी प्रेम बड़ा छलता है ।
तो प्रेम छलिया है ? नहीं सिर्फ छलिया नहीं । बहुत कुछ है प्रेम, तभी तो आप अपनेआप को असमर्थ पाती हैं प्रेम को परिभाषित करने में । 'उलझन' में कहती हैं-
परिभाषित प्रेम को कैसे करू्ँ,
शब्दों में प्यार कहूँ कैसे ?
जो वृंदावन की माटी है,
उसको श्रृंगार कहूँ कैसे ?
प्रेम नहीं शैय्या का सुमन,
वह पावन पुष्प देवघर का !
ना चंदा है ना सूरज है,
वह दीपक है मन मंदिर का !
है प्यार तो पूजा ईश्वर की,
उसको अभिसार कहूँ कैसे ?
है प्रेम तो नाम समर्पण का,
उसको अधिकार कहूँ कैसे ?
आपकी रचनाओं में प्रेम की ऐसी अनुभूति है जो हृदय को झंकृत कर दे । साथ ही एक अध्यापिका होने के कारण अभिव्यक्ति का हर शब्द बहुत ही संयमित और मर्यादित भी ।
अब जहाँ प्रेम वहाँ सुखद संयोग या फिर वियोग !इसीलिए तो कहते हैं इसे प्रेम रोग ! एक बार लग गया तो लग गया । ऐसा स्वयं कवयित्री करती हैं..
प्रीत लगी सो लगि गई, अब ना फेरी जाय ।
बूँद समाई सिंधु में, अब ना हेरी जाय ।।
परदेसी के प्रेम की , बड़ी अनोखी रीत ।
बिना राग की रागिनी, बिना साज का गीत ।।
इनकी कविताओं की नायिका परदेशी के प्रेम में बंध गयी है एक उदाहरण 'क्यों बाँधा मुझको बंधन में'..
बंधन यह उर से धड़कन का,
बंधन श्वासों से स्पंदन का,
यह बंधन था मन से मन का,
बंधन प्राणों से ज्यों तन का !
मन के अथाह अंधियारे में,
जीवन बीतेगा भटकन में !
क्यों बाँधा मुझको बंधन में ?
विछोह की पीड़ा में अपने प्रेम की यादों को अपना अवलंबन बनाया तो चेतना का 'दीप जल उठा' ।
प्राणों की वर्तिका,
बुझी-बुझी अनंत काल से !
श्वासों के अब सुमन
लगे थे, टूटने ही डाल से !
यूँ लगा था आत्मा
बिछड़ गई हो देह से !
चेतना का दीप
जल उठा, तुम्हारे स्नेह से !
प्रेम मे वियोग पीड़ादायक है लेकिन वफा हो तो वियोग की घड़ियां भी जैसे तैसे कट ही जाती हैं , इसके विपरीत धोखेबाज और बेवफाओं से आगाह करते हुए कवयित्री कहती हैं
मंजिल है दूर कितनी,
इसकी फिकर न करिए
बस हमसफर राहों के
चुनिए जरा सम्भलकर...
काँटे भी ढूँढ़ते हैं,
नजदीकियों के मौके
फूलों को भी दामन में,
भरिये जरा सम्भलकर...
कितना भी सम्भलकर चलो फिर भी कुछ अनहोनियाँ हो ही जाती हैं जिंदगी में । हमें तो बस कुछ सीखते जाना चाहिए जिन्दगी से, आपकी तरह...
जिंदगी हर पल कुछ नया सिखा गई,
ये दर्द में भी हँसकर जीना सिखा गई ।
यूँ मंजिलों की राह भी आसान नहीं थी,
बहके कदम तो फिर से सम्भलना सिखा गई ।
इतना कुछ सिखाती जिंदगी आखिर है क्या ये जिंदगी ? देखिये आपके अनुसार -
गम छुपाकर मुस्कराना, बस यही है जिंदगी !
अश्क पीकर खिलखिलाना, बस यही है जिंदगी !
टूटकर गिरना मेरे दिल का, तेरे कदमों में यूँ
और तेरा ठोकर लगाना, बस यही है जिंदगी !
कब तक कोई इस तरह ठोकरें सहे । इकतरफा प्यार नायक की बेरुखी आखिरकार नायिका ने जब एकाकी रहने का मन बनाया , निःशब्द करती रचना 'एकाकी मुझको रहने दो' ।
कोमल कुसुमों में,
चुभते काँटे हाय मिले,
चंद्र नहीं वह अंगारा था
जिसको छूकर हाथ जले,
सह-अनुभूति सही ना जाये
अपना दर्द स्वयं सहने दो ।
एकाकी मुझको रहने दो ।
मीना जी की सभी कविताएं पाठक के मन में एक कहानी सी बुनती हैं । कहीं-कहीं तो भाव इतने गहन हैं कि मन ठहर सा जाता है !
कह गया कुछ राज की बातें, मेरा नादान दिल
अब लगे उस अजनबी को क्यों सुनाई दोस्तों !
कुछ तड़प कुछ बेखयाली और कुछ गफलत मेरी,
उफ ! मोहब्बत नाम की आफत बुलाई दोस्तों !
एक से बढ़कर एक 'तल्खियां' उनके मन की जिन पर बीती हो । बीती भी ऐसी कि क्या कहें ,'हद हो गयी'
देखकर हमको, तेरा वो मुँह घुमा लेना सनम,
बेरुखी तेरी, दिल ए बेजार की हद हो गई ।
हद कितनी भी हो , मोहब्बत में बेरुखी मिले बेबफाई मिले, आपकी कविताओं की नायिका हौसला नही छोड़ती ।
एक उदाहरण - 'सजदे नहीं लिखती' से --
छुप-छुप के रोयें कब तलक, घुट-घुट के क्यों मरें?
जो सच लगा वह कह दिया, परदे नहीं लिखती ।
'हर दौर गुजरता रहा' में --
कच्चे घड़े सी ना मैं, छूते ही बिखर जाऊँ,
भट्टी में आफतों की, मजबूत दिल बनता रहा ।
प्रेम का प्रतिफल नहीं मिलने पर वे टूटकर बिखरती नहीं हैं बल्कि अपने अन्दर प्रेम की खुशबू को जज्ब कर लेती हैं। उनका प्रेम अमर्त्य है. इसलिए उनकी अंतरात्मा में प्रेम की लौ जलती रहती है।
'दर्द का रिश्ता' में देखिये--
निर्मलता की उपमा से,
क्यों प्रेम मलिन करूँ अपना
'जरूरत क्या दलीलों की' शीर्षक कविता में कहती हैं
तुम हारे तो मैं हारी जो तुम जीते तो मैं जीती
करूँ क्यों प्रेम को साबित, जरूरत क्या दलीलों की ?
आपकी कविताओं की नायिकाएं सिर्फ रोती नहीं हैं. वे संघर्ष करती हैं और अपने सम्मान एवं स्वाभिमान को अंत तक बचाए रखती हैं । यही आपके काव्य की खासियत भी है ।
जहाँ मिल रहे गगन धरा
मैं वहीं तुमसे मिलूँगी,
अब यही तुम जान लेना
राह एकाकी चलूँगी ।
संग्रह की पहली कविता 'तब गुलमोहर खिलता है'(जो इस संग्रह का शीर्षक भी है) में भी कवियत्री गुलमोहर के माध्यम से विकट परिस्थितियों में भी हार न मानकर जीवन संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देते हुए कहती हैं-
फूले पलाश खिल जाते हैं,
टेसू आँसू बरसाते हैं,
दारुण दिनकर की ज्वाला में,
जब खिले पुष्प मुरझाते हैं,
सृष्टि होती आकुल व्याकुल,
हिमगिरि का मुकुट पिघलता है
तब गुलमोहर खिलता है !
भावों की गहनता में छुपा संदेश मंत्रमुग्ध करता है गुलमोहर जो प्रेम मे खिला है समस्त सृष्टि से प्रतिकार में उसे क्या मिला है ? तब भी गुलमोहर खिलता है।
ऐसे ही जीवन अनुभवों एवं मानवीय संवेदनाओं को काव्य रूप में संप्रेषित करती रचनाएं ' नदिया के दो तट', मैं वहीं रह गयी, शरद पूर्णिमा के मयंक से, इन्द्रधनुष, कवि की कविता, कहो न कौन से सुर में गाऊँ, मौन दुआएं अमर रहेंगी, ओ मेरे शिल्पकार, बाँसुरी (1)और (2) , द्वीप, स्वप्न गीत, एक कहानी अनजानी, फासला क्यूँ है, सपना, सवाल अजीब से, नुमाइश करिये, कहता होगा चाँद, बंदिश लबों पर, शिकायत, ढूढ़े दिल आदि बहुत ही उत्कृष्ट, अप्रतिम एवं पठनीय कविताओं का संग्रह है - 'तब गुलमोहर खिलता है' ।
मानवीय संवेदनाओं एवं गरिमामय प्रेम पर आधारित आपकी कविताओं की भाषा सहज एवं सरल है ।अधिकांश कविताएं गीत एवं गजल विधा में हैं विभिन्न अलंकारों से अलंकृत तत्सम एवं देशज शब्दों का सुन्दर प्रयोग काव्य को और आकर्षक बना रहा है।
कवयित्री स्वयं हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं अतः भाषागत त्रुटियाँ एवं किसी तरह की कोई कमी काव्य संग्रह में ढूँढकर भी नहीं मिल सकती फिर भी समीक्षा के नियमानुसार आलोचना की कोशिश करूँ तो बस एक कमी जो मुझे लगी वह है काव्य संग्रह का शीर्षक । चूँकि अधिकांश कविताएं प्रेम पर आधारित हैं तो शीर्षक प्रेम से सम्बंधित होता तो और भी बेहतर होता क्योंकि सतही तौर पर देखकर पाठक शीर्षक से शायद अंदाजा ना लगा पायें कि पुस्तक का आधार प्रेम है । हालांकि प्रस्तुत शीर्षक में वह संदेश छुपा है जो कवयित्री अपनी लेखनी के जरिए पाठकों तक पहुँचाना चाहती हैं एवं यही उनकी अधिकांश रचनाओं का सार भी है ।
अन्ततः काव्य सृजन की दृष्टि से प्रस्तुत काव्य संग्रह शिल्प सौंदर्य से युक्त बेहद उत्कृष्ट, पठनीय एवं संग्रहणीय हैं जो पाठक को अपने काव्याकर्षण में बाँध सकने में पूर्णतः सक्षम है ।
मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मीना जी की यह पुस्तक साहित्य जगत में अपना स्थान निहित करेगी । मेरी समीक्षा की सत्यता को परखने हेतु आप भी पुस्तक अवश्य पढ़िएगा !
अंत में मीनाजी को हार्दिक बधाई असीम शुभकामनाएं।
पुस्तक :- तब गुलमोहर खिलता है
लेखक :- मीना शर्मा
प्रकाशकईमेल :- publish@bookrivers.com
मूल्य :- 200/-रूपये
बेबसाइट :-www.bookrivers.com