नवगीत: यादें गाँव की
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दशकों पहले शहर आ गये नहीं हुआ फिर गाँव में जाना ऊबड़-खाबड़ सी वो राहें, शान्ति अनंत थी घर-आँगन में। अपनापन था सकल गाँव में, भय नहीं था तब कानन में। यहाँ भीड़ भरी महफिल में, मुश्किल है निर्भय रह पाना। दशकों पहले शहर आ गये, नहीं हुआ फिर गाँव में जाना। मन अशांत यूँ कभी ढूँढ़ता, वही शान्त पर्वत की चोटी। तन्हाई भी पास न आती, सुनती ज्यूँ प्रतिध्वनि वो मोटी। यूँ कश्ती भी भूल गई है, कागज वाली आज ठिकाना। दशकों पहले शहर आ गये, नहीं हुआ फिर गाँव में जाना।