सोमवार, 27 अप्रैल 2020

नवगीत: यादें गाँव की

Beautiful memories of village


दशकों पहले शहर आ गये
नहीं हुआ फिर गाँव में जाना

ऊबड़-खाबड़ सी वो राहें,
शान्ति अनंत थी घर-आँगन में।
अपनापन था सकल गाँव में,
भय नहीं था तब कानन में।
यहाँ भीड़ भरी महफिल में,
मुश्किल है निर्भय रह पाना।
दशकों पहले शहर आ गये,
नहीं हुआ फिर गाँव में जाना।

मन अशांत यूँ कभी ढूँढ़ता,
वही शान्त पर्वत की चोटी।
तन्हाई भी पास न आती,
सुनती ज्यूँ प्रतिध्वनि वो मोटी।
यूँ कश्ती भी भूल गई है,
कागज वाली आज ठिकाना।
दशकों पहले शहर आ गये,
नहीं हुआ फिर गाँव में जाना।


33 टिप्‍पणियां:

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

क्या बात वाह खूबसूरत भाव,खूबसूरत रचना।

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

वाह सुन्दर प्रस्तुति गावों में ही वास्तविक जिंदगी जी जाती है

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर नव गीत सृजन सुधा जी।
भूली बिसरी ही सही यादें बार बार जेहन में मचलती है जरूर।
सुंदर।

Sweta sinha ने कहा…

क्या बात वाह सुधा जी अति भावपूर्ण लेखन।
----
स्मृतियाँँ राह ढूँढ रही गाँव की
मजबूरियाँ बेड़ी बन रही पाँव की

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

मन अशांत यूँ कभी ढूँढ़ता,
वही शान्त पर्वत की चोटी।
तन्हाई भी पास न आती,
सुनती ज्यूँ प्रतिध्वनि वो मोटी।

सुंदर रचना, मैम।

जयप्रकाश ने कहा…

वाह! सुन्दर चित्रण 👌🌹💕

शुभा ने कहा…

वाह!सुधा जी ,बेहतरीन सृजन!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ...
सच ही है ... बीता समय ... बीती बातें ... ये माहोल .... ये मौसम ... सब कुछ ही तो याद आता है ...
फिर गाँव का जीवन ... सादा, स्वक्ष, आनद भरा .... उसको भुलाना आसान नहीं होता ,,,

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार भाई उत्साह वर्धन हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, रितु जी सही कहा आपने..
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, कुसुम जी हृदयतल से धन्यवाद आपका...
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!श्वेता जी बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियाँ...
सहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ विकास जी!हार्दिक धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार, जयप्रकाश जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ शुभा जी! सहृदय धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, नासवा जी!अपनी जन्मभूमि की यादों को बिसराना आसान नहीं होता।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Meena Bhardwaj ने कहा…

अपनापन था सकल गाँव में,
भय नहीं था तब कानन में।
यहाँ भीड़ भरी महफिल में,
मुश्किल है निर्भय रह पाना।
दशकों पहले शहर आ गये,
नहीं हुआ फिर गाँव में जाना।..
गाँव से जुड़ी यादों को भुलाना कहाँ आसान होता है...बहुत ही भावपूर्ण सृजन सुधा जी !!

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुधा दी, आपने तो बचपन की गांव में बिताए मधुर क्षणों की याद दिला दी।

उर्मिला सिंह ने कहा…

वाह.... बहुत सुन्दर

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 28 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ मीना जी ! तहेदिल से धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

बचपन की यादें हमेशा साथ रहती हैं ज्योति जी!
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद उर्मिला जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद सर!रचना साझा करने हेतु।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. जोशी जी !

Jyoti Singh ने कहा…

जरूरतें खींच तो लाई शहर मे ,मगर सुकून वो नही दे पाई जो रहा गांव में ,सादा जीवन उच्च विचार ,जीवन के है ये दो आधार , गांव में रहकर ही संभव है ,अति उत्तम रचना नमन

Sudha Devrani ने कहा…

जी , सही कहा आपने जरूरतों की आपूर्ति के लिए ही शहर निकले...जीवन का सच्चा सुख तो गाँवों में ही है
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०२-०५-२०२०) को "मजदूर दिवस"(चर्चा अंक-३६६८) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद अनीता जी!प्रतिष्ठित चर्चा मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु...
सस्नेह आभार।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

बेनामी ने कहा…

मन अशांत यूँ कभी ढूँढ़ता,
वही शान्त पर्वत की चोटी।
तन्हाई भी पास न आती,
सुनती ज्यूँ प्रतिध्वनि वो मोटी।

इस lock-down में गाँव घुमा लाये आप, बहुत सुन्दर रचना गाँव की याद आ गयी.....

ANIL DABRAL ने कहा…


मन अशांत यूँ कभी ढूँढ़ता,
वही शान्त पर्वत की चोटी।
तन्हाई भी पास न आती,
सुनती ज्यूँ प्रतिध्वनि वो मोटी।

इस lock-down में गाँव घुमा लाये आप, बहुत सुन्दर रचना गाँव की याद आ गयी.....

Sudha Devrani ने कहा…

जी, मन लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन कर गाँँव घूम आया...पहाड़ों पर बसे अपने गाँव भुलाये नहीं भूल पाते...
हृदयतल से धन्यवाद आपका उत्साहवर्धन हेतु...।
सादर आभार।

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