गई शरद आया हेमंत ,
हुआ गुलाबी दिग दिगंत ।
अलसाई सी लोहित भोर,
नीरवता पसरी चहुँ ओर ।
व्योम उतरता कोहरा बन,
धरा संग जैसे आलिंगन ।
तुहिन कण मोती से बिखरे,
पल्लव पुष्प धुले निखरे ।
उजली छिटकी गुनगुनी धूप,
प्रकृति रचती नित नवल रूप ।
हरियाये सुन्दर सब्ज बाग,
पालक बथुआ सरसों के साग ।
कार्तिक,अगहन व पूस मास,
पंछी असंख्य उतरे प्रवास ।
हुलसित सुरभित यह ऋतु हेमंत
आगत शिशिर, स्वागत वसंत ।।