गुरुवार, 23 मार्च 2023

मम्मा ! मैंने अपने लिए विश नहीं माँगी

 

Student

"बिन्नी चल जल्दी से नहा-धोकर मंदिर हो आ ! आज से तेरी बोर्ड परीक्षा शुरू हो रही है न, तो जाकर भोलेनाथ जी से प्रार्थना करना परीक्षा में सबसे अव्वल आने के लिए ! ठीक है ! चल जल्दी कर" !


"माँ ! मंदिर - वंदिर रहने दो न ! इत्ता मैं रिविजन कर लूँगी ! प्लीज मम्मा ! और वैसे भी मुझे सबसे अव्वल नहीं आना,  बस अच्छी पर्सेन्टिज चाहिए" ।


"अरे ! दिमाग तो ठीक है तेरा ! बोर्ड परीक्षा की शुरुआत में भला कौन बच्चा मंदिर में प्रभु दर्शन किए बगैर पेपर देने जाता है ? बहुत हो गया तेरा रिविजन वगैरा ! साल भर से कहाँ थी जो अब पढ़ने चली है ?  चल अब बिना बहाने के जल्दी कर और जा मंदिर  !  फिर कर लेना प्रार्थना भगवान जी से अच्छी परसेंटेज के लिए । सबसे अव्वल नहीं आना ! हुँह"....।


"ओह्हो मम्मा ! आप भी न" ! कहकर विन्नी ने किताबें छोड़ी और घुस गयी बाथरूम में । 

स्नान आदि के बाद फटाफट मंदिर गयी और जल्दी आकर पुस्तक उठायी ही थी कि माँ ने पूछा इतनी जल्दी आ गयी ?  "अरे ! प्रार्थना भी की या बस ऐसे ही " ?


"हाँ मम्मा ! विश की मैंने " कहते हुए विन्नी ने अपने दोनों हाथों की पहली दूसरी उंगलियां आपस में मोड़कर हाथ पीठ पीछे कर दिये ।


पीछे लगे शीशे में माँ ने सामने से देख लिया तो समझ गयी कि बिन्नी कुछ छुपा रही है, पर क्या  !


"बिन्नी ! गयी भी थी मंदिर या यहीं कहीं से वापस आ गयी ! क्या छिपा रही है मुझसे ? बता सच -सच" ?


"नहीं तो ! कुछ भी तो नहीं छुपा रही मम्मा ! मैं गयी थी मंदिर ! पक्का" !  विश्वास दिलाने के लिए उसने अपने गले को टच किया ।


 "ठीक है। तो फिर ये उँगलियाँ क्यों मोड़ रखी" ?


"वो...वो इसलिए कि विश नहीं की मैंने वहाँ अपने लिए" ।  हिचकिचाते हुए वह बोली तो माँ ने पूछा, "क्यों "? क्यों नहीं माँगी तूने विश ? बस यूँ ही जल चढ़ाकर भाग आई क्या" ?


तो वह बोली, "मम्मा ! वहाँ एक आंटी शिवलिंग के पास बैठी रो रही थी ! सच्ची !! खूब आँसू बह रह रहे थे उनके ! मम्मा मुझे उनके लिए बहुत बुरा लगा , तो मैंने भगवान जी से कहा कि भगवान जी आप आंटी की विश पूरी कर दीजिए। मैं अपना सम्भाल लूँगी । बस आप आंटी की सारी प्रॉब्लम सॉल्व करके सब ठीक कर दीजिएगा, प्लीज" !


सुनकर माँ का हृदय गदगद हो गया , "सही कहा तूने" कहते हुए माँ ने उसके सिर में बड़े प्यार से हाथ फेरा। मुड़ी उँगलियों को सीधा करते हुए विन्नी खुश होकर चहकती सी बोली,  "है न मम्मा !  सही कहा न मैने" ! 


"हम्म ! सही तो कहा, पर अब देख ले सारी जिम्मेवारी तेरी ही है अच्छी परसेंटेज की" ! कहकर माँ ने उसके माथे को चूम लिया उसने भी खुशी खुशी हाँ में सिर हिलाया और लग गयी अपनी तैयारी में ।



मंगलवार, 14 मार्च 2023

बेटियाँ खपती जाती हैं दो दो घरों की फिकर में ।

 

Daughter

कावेरी ने जब सुना कि बेटी इस बार होली पे आ रही है तो उसकी खुशियों की सीमा ही न थी । बड़ी उत्सुकता से लग गयी उसकी पसन्द के पकवान बनाने में ।  अड़ोस-पड़ोस की सखियों को बुलाकर उनके साथ मिलकऱ, ढ़ेर सारी गुजिया शक्करपारे और मठरियाँ बनाई । शुद्ध देशी घी में उन्हें तलते हुए वह बेटी कान्ति की बचपन के किस्से सुनाती जा रही थी सबको । पिछले एक साल से कान्ति मायके ना आ सकी तो माँ का मन तड़प रहा था बेटी से मिलने के लिए । 


कावेरी की पड़ोसी सखियाँ भी जानती थी कि कान्ति की सास जबसे बीमार पड़ी, तभी से वह मायके नहीं आ पायी । वरना शादी के बाद से ही कान्ति हर तीज त्यौहार पर मायके जरूर आती थी और बड़ी बेफिक्री से   कुछ दिन रहकर वापस ससुराल जाती। वह हमेशा अपनी सासूमाँ की तारीफ करते न थकती ।

कावेरी भी खुश होती कि समधन अच्छी है इसीलिए उसकी इकलौती बेटी ससुराल में सुख से है ।

परंतु समधन की बीमारी के कारण जब बेटी का आना जाना कम हुआ तो उसे वह मुसीबत लगने लगी। मन ही मन वह सोचती की बुढ़िया मर ही जाय तो बेटी को उसकी तिमारदारी से छुटकारा मिले ।


कान्ति आई तो घर में रौनक आ गयी । माँ की आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े । वह उसे बार-बार गले लगाती । कभी उसके हाथों को तो कभी सिर को सहलाती । परन्तु उसने महसूस किया कि कान्ति अब पहले सी माँ और मायके वाली नहीं रही । ना उसे माँ के इतने प्यार से बनाए पकवानों में पहले सी दिलचस्पी है और ना ही मायके की किसी भी अन्य चीजों से। उसे बार-बार मोबाइल स्क्रीन को चैक करते देख कावेरी ने टोकते हुए कहा , " कान्ति ! ये मोबाइल में क्या रखा है ? बेटा ! आई है तो थोड़ा इधर भी मन लगा न !

देख मैंने तेरे लिए क्या-क्या बनाया है ! आ ! बैठकर मजे से खा ! और मस्त होकर गपशप कर न मेरे साथ"!


"माँ ! आ तो गई पर अब सासूमाँ की बहुत फिकर हो रही है" । कान्ति चिंतित होते हुए बोली तो कावेरी ने समझाते हुए कहा , "जाने दे न बेटा ! किस बात की फिकर ? दामाद जी हैं न उनके पास ! उनका बेटा उनके पास हैं फिर और क्या चाहिए" ? 

"माँ ! कई चीजें होती हैं जो हम औरतें ही एक दूसरे का समझ पाती हैं सासूमाँ को कहीं कोई ऐसी दिक्कत ना हो जिसके लिए उन्हें मेरी जरूरत हो...बस यही चिंता है...उनकी जिद्द थी कि मैं आपसे मिलूँ इसीलिए आ गई पर अब उनकी फिकर हो रही है" ।

"अच्छा ! कभी मेरी भी फिकर कर लिया कर ! मैं तो माँ हूँ तेरी !. सास तो आखिर सास ही होती है । माँ से भी मन लगाया कर कभी" ! कावेरी ने कुछ रूठते हुए कहा तो कान्ति झट से माँ से चिपक गयी फिर प्यार से समझाते हुए बोली,  "माँ ! आपकी भी फिकर थी और मन यहीं लगा था यही समझकर तो सासूमाँ ने आज इनकी छुट्टी करवाई और मुझे जिद्द करके यहाँ भेजा आपसे मिलने । आप तो अभी तक पुराने रीति-रिवाजों में बंधी हैं कि बेटी के घर नहीं जाना !.पर क्यों माँ ?

"माँ ! मेरी सास भी अब सिर्फ़ सास नहीं, सासूमाँ हो गयी हैं मेरी । जैसा लाड-प्यार और संरक्षण मुझे आपसे मिला वैसा ही लाड-प्यार और संरक्षण मिला है मुझे सासूमाँ से । बड़ी खुशनसीब हूँ मैं , जो दो दो माँओं की छत्र - छाँव है मेरे सर पर । बस ये छाँव हमेशा बनी रहे  यही प्रार्थना है भगवान से और यही मन का डर भी है  माँ" !


कावेरी देख रही थी बेटी को और समझ रही थी उसके मनोभावों को। कहते हैं बेटी पराई हो जाती है ब्याह कर । पराई कहाँ हो पाती हैं बेटियाँ !...   ये तो बँट जाती हैं टुकड़ों में ! खप जाती हैं दो दो घरों की फिकर में ।


सारे पकवानों को अच्छे से पैक कर कावेरी झट से तैयार होकर बोली, "चल बेटा ये होली तेरे ससुराल में ही मनायेंगे ! तेरी दोनों माँएं तेरे साथ होंगी । चल अब बेफिकर हो कर  मनाना त्यौहार अपनी दोनों माँओं के साथ" ।

"क्या ! आप मेरे साथ चलेंगी" ! कान्ति ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, फिर अगले ही पल उदास होकर बोली "पर आप खाना - पानी के बगैर वहाँ कैसे रह पायेंगी , जाने दीजिए माँ ! अब मिल ली न आपसे , ऐसे ही आती रहूँगी"।

"खाना - पानी ना है तेरे ससुराल में क्या ? जो तुम सब खाओगे वही खिला देना मुझे भी" !  कावेरी ने मुस्कराते हुए कहा तो कान्ति ने मारे खुशी के माँ को अपनी बाहों में भरकर झकझोर दिया ।

अपने बच्चों को बेफिक्री से खुशी-खुशी त्योहार मनाते देख दोनों समधन बहुत खुश हुए और एक-दूसरे पर टीका लगाकर गले मिल लिए।

शुक्रवार, 3 मार्च 2023

उत्तराखंड में मधुमास - दोहे

 

Spring season Uttarakhand


नवपल्लव से तरु सजे, झड़़े पुराने पात ।

महकी मधुर बयार है, सुरभित हुआ प्रभात ।।


पुष्पों की मुस्कान से, महक रही भिनसार ।

कली-कली पे डोलके, भ्रमर करे गुंजार ।।


भौरे गुनगुन गा रहे , स्नेह भरे अब गीत ।

प्रकृति हमें समझा रही ,परिवर्तन की रीत ।।


आम्र बौंर पिक झूमता , कोकिल कूके डाल ।

 बहती बासंती हवा   टेसू झरते लाल ।।


 गेहूँ बाली हिल रही, पुरवाई के संग ।

पीली सरसों खिल रही, चहुँदिशि बिखरे रंग ।।


पिघली बर्फ़ पहाड़ की, खिलने लगे बुरांस ।

सिंदूरी सेमल खिले, फ्यूंली फूली खास ।।


श्वेत पुष्प से लद रहे, हैं मेहल के पेड़ ।

पंछी घर लौटन लगे, शहर प्रवास नबेड़ ।।


बन-बन हैं मन मोहते, महके जब ग्वीराल ।

थड़िया-चौंफला गीत सु, गूँज उठी चौपाल ।।


बेडू तिमला फल पके, पके हिंसर किनगोड़ ।

काफल, मेलू भी पके,   लगती सबमें होड़ ।।


हरियाली चौखट लगी, सजे फूल दहलीज ।

फूलदेइ त्यौहार में, हर मन हुआ बहीज ।।


जीवन मधुमय हो गया , मन में है उल्लास ।

प्रकृति खुशी से झूमती,आया जब मधुमास ।।


भिनसार=सुबह

नबेड़=निपटाकर)

बहीज=आनंदित)

इसके अलावा उत्तराखंड के पर्व , लोकगीत-नृत्य और फल एवं फूलों के वृक्ष आदि का रचना में जिक्र जिनका है उनके विषय में संक्षिप्त जानकारी निम्न है ।

बुरांस, सेमल,फ्यूंली, मेहल, ग्वीराल आदि सुंदर फूलों वाले वृक्ष हैं जो उत्तराखंड के पहाड़ों पर बसंत ऋतु में खिलते हैं । बुरांस फूल जिसके सुंदर रंग रूप एवं औषधीय गुणों के कारण इसे राष्ट्रीय पुष्प भी घोषित किया गया है ।

थड़िया-चौंफला - ये उत्तराखंड के विशेष लोकगीत-नृत्य हैं , जिनका आयोजन बसंत पंचमी के दौरान किया जाता है । जब रातें लम्बी होती हैं तो मनोरंजन के लिए गाँव के लोग मिलकर थड़िया और चौंफला का आयोजन करते हैं  ।

बेडू, तिमला, हिंसर किनगोड़, मेलू, काफल  आदि बहुत से फल इस मौसम में पहाड़ों पर पकने शुरु होते हैं ।

फूलदेई त्योहार - फूलदेई पर्व उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्व है । इस पर्व को मुख्यतः बच्चे मनाते हैं इसलिए इसे लोक बाल पर्व भी कहा जाता है । चैत्र मास की प्रथम तिथि यानी 14 या 15 तारीख को जिस दिन हिन्दू नव वर्ष का प्रथम दिन होता है उसी दिन से शुरू होता है ये फूलदेई पर्व।

इस पर्व में गाँव के छोटे बच्चे पूरे चैत मास सुबह-सुबह सबके घरों की चौखट पर जौ की हरियाली टाँगते हैं एवं देहलीज पर फूल बिखेरते हैं । और बड़े उन्हें खाने-पीने की वस्तुएं एवं उपहार आदि भेंट देते हैं ।




सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

बदलाव - 'अपनों के खातिर'

Change story

 

आज जब आकाश ने धरा का हाथ अपने हाथ में लेकर बड़े प्यार से कहा, "इधर आओ धरा ! हमेशा जल्दी में रहती हो, जरा पास में बैठो तो" ! तो अपने कानों पर विश्वास नहीं कर पायी वह, विस्मित नेत्रों से आकाश को देखते हुए बोली, "क्या ?.. वो...मैं...मैंने ठीक से सुना नहीं " !

"सुना नहीं या सुनकर भी दोबारा सुनना चाहती हो ! मुस्कुराते हुए उसे प्यार से अपने पास खींचकर आकाश बोला तो आश्चर्य से उसकी आँखें फैल गयी ! 

आकाश को इतने रोमांटिक मूड में वह सालों बाद देख रही थी । उसने खुद को हल्की चूटी काटी कि ये मैं हमेशा की तरह कोई सपना तो नहीं देख रही, उम्ह!...दर्द से कराह उठी वो ! फिर संयत होकर इधर उधर देखकर बोली , "जी ! आप ठीक तो हैं ? कहिए क्या बात है ?

उसके ऐसे व्यवहार से आकाश भी झेंप सा गया । फिर नरम लहजे में बोला, "क्या बात है धरा ! आजकल तुम कुछ बदल सी गयी हो ? घरवाले भी कह रहे हैं और मुझे भी लग रहा है कि तुम पहले सी नहीं रही अब !क्यों धरा ! क्या जरूरत है इस बदलाव की ? एक तुम ही तो हो जिसके कारण इस घर में सुख शांति रहती आयी है । 

मैं दिल से मानता हूँ धरा ! कि तुम्हारी जगह कोई और होता तो ये घर कबका बिखर चुका होता । तुमने मेरे गुस्सैल स्वभाव को तो झेला ही साथ ही मेरी माँ के ताने भी सहे हैं हमेशा । पक्षाघात से पीड़ित मेरे पिताजी की सेवा में कभी कोई कसर नहीं की । और तो और मेरे भाई -बहनों को भी निभाया, उनके बड़बोलेपन को हमेशा नजरअंदाज करती आई हो तुम । और हमारे बच्चों की सबसे अच्छी माँ बनने में भी कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है तुमने,उनके पालन-पोषण पढ़ाई-लिखाई सब तुम ही तो अकेले सम्भालती आयी हो।

पहली बार पति से अपने बारे में सुनकर धरा की आँखों से गंगा - जमुना बह निकली । आकाश आज उसके गुण गा रहा था ,जो हमेशा अपने व्यवहार से उसे यही जताता आया था कि वह करती ही क्या है ! हमेशा चिढ़ा और नाखुश रहता । वह उसके आगे-पीछे घूमती रहती , उसकी हर जरूरत की चीजें उसके कहने से पहले देती । फिर भी वह कभी उसकी कदर ना करता।

उसकी बेरुखी से धरा टूट सी जाती , समझ ही नहीं पाती कि आखिर कहाँ कसर रह गयी । ये नफरत क्यों ? फिर भी उम्मीद करती कि शायद कभी तो ये समझेंगे । सुबह से शाम तक वह कोल्हू के बैल सी खटती रहती, सबकी जरुरतों का ख्याल रखती फिर भी ज्यों ही साँझ को उसके आने का समय होता, ना जाने क्यों बेवजह ही सासूमाँ की बड़बड़ शुरू हो जाती और फिर वही... दिन भर के किए - कराए में पानी फिर जाता, जब आकाश सवालिया और क्रोध भरी दृष्टि से उसे देखता , तो उसके आँसू छलक जाते, वह चाहती कि एक बार आकाश कुछ पूछे तो... मुझे नहीं तो अपनी माँ से ही सही । जाने तो कि वह किस बात पर नाराज हैं, शायद समझ पाये कि इसमें मेरी क्या गलती  !  या फिर मुझे और बेहतर करने की सलाह ही दे , मैं कर लूँगी । परंतु ये खामोशी और नफरत कैसे सहूँ !

इसी तरह समय आगे बढ़ता गया और उनका परिवार भी । उनके दोनों बच्चे भी बड़े हो रहे थे और देवरानी भी घर आ चुकी थी परंतु धरा की जीवनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया । 

सोचा था देवरानी आने पर घर के कामों में तो मदद मिलेगी परंतु नौकरी पेशा देवरानी से यह उम्मीद करना ही बेकार था । बल्कि वह तो धरा को घर की कामवाली जैसे समझने लगी जेठानी सा सम्मान तो दूर वह तो हक से अपने भी सारे काम भी धरा पर ही छोड़ने लगी ।

और धरा भी तो ज्यों भूल ही गयी अपने आत्मसम्मान को । हमेशा कुण्ठित और दुखी रहने से उसका आत्मविश्वास जैसे खत्म हो गया । 'ना' कहना तो जैसे पाप हो गया उसके लिए । घर का हर सदस्य छोटा या बड़ा कोई भी आकर उसे आदेश दे जाता और वह अपनी परवाह किए बगैर दिन रात लगी रहती ।

इतना कुछ करने के बाद भी घर या बाहर नाते-रिश्तेदारों में उसकी छवि जरा भी सुधरी हुई नहीं थी । सुधरती भी कैसे ! जब सास ही हर वक्त उसकी निंदा में लगी रहती । आजकल लोगों के पास न अपनी परख है और न ही अपना कोई नजरिया । बस जो सुनते हैं वही मान लेते हैं, नतीजतन कोई भी घर पर ससुरजी को देखने आते तो सासूमाँ की बातों में आकर सलाहकार बन चार बातें सुना जाते उसे ।

फिर वह भी दिल से लगा बैठती । ऐसी नकारात्मकता के चलते उसका मन ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन हरपल उसे कचोटता रहता और वह दुखियारी सी सब सहती रहती ।

तभी एक दिन उसने ध्यान दिया कि उसकी बेटी भी उसी की तरह दुखी-दुखी रहती है।  गौर किया तो पाया कि उसका बेटा जो बेटी से छोटा है फिर भी सारे हुक्म अपनी दीदी पर झाड़ता है कोई काम खुद नहीं करता ।सब दीदी के ऊपर छोडता है और बेटी बिना ना-नुकर किए अपने कामों के साथ अनमने से ही उसके भी काम करती है ।

उसने बेटी को पास बुलाकर इस बारे में बात की तो बेटी बोली मम्मा ! मैं उसके काम नहीं करुँगी तो वह आपसे करवायेगा और आप तो पहले ही सारे घर के काम करती हो, फिर एक और काम...! मम्मा ! मुझे अच्छा नहीं लगता । और आप भी तो सबका कहना मानती हो ना , बस मैं भी वही करती हूँ ।

सुनकर स्तब्ध सी रह गयी वह । उसकी चेतना जैसे झंकृत सी हुई ! लगा जैसे लम्बी तंद्रा से जागी हो । उसने विचार किया कि अक्सर बेटियाँ माँ की प्रतिच्छाया होती हैं । और वह अपने रूप में अपनी बेटी को सोचकर ही काँप उठी ।

कहना मानना और काम करने में कोई बुराई नहीं । परन्तु कोई  बेवजह हर वक्त तुम पर अधिकार जताये और तुम्हें अपने काम छोड़ उसके अधीनस्थ सा बन काम करना पड़े तो इस अनमनेपन में जीवन सजा सा बन जाता है।

सवालों की झड़ी सी लग गयी उसके मन में...। पूछने लगी खुद से ही कि आखिर उसका दुख क्या है ? और अपने दुख से निबटने के लिए उसने किया क्या ? क्यों दुखियारी बनी फिरती है ? क्या घर के अत्यधिक काम से वह दुखी है ?  तो किसने कहा कि अकेले घिसती-पिटती रह ? ननद देवर कोई छोटे बच्चे तो नहीं । और देवरानी ! उसकी भी चाकरी करने की क्या जरूरत पड़ गयी उसे ? सासूमाँ भगवान की कृपा से अभी ठीक-ठाक हैं, सुबह-शाम घूमने-फिरने जा सकती हैं तो अपनी छोटी-छोटी जरूरतें जैसे पानी वगैरह भी बिस्तर पर क्यों माँगती हैं ?  घर में उसके अलावा और भी सदस्य हैं जो कभी-कभार तो उनकी मदद कर ही सकते हैं, पर सब उसी के ऊपर छोड़ हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे रहते हैं ?  हाँ ! ससुरजी जरूर लाचार हैं उनकी सेवा मेरा फर्ज है ।

इसके अलावा मेरे दुखी रहने के कारण क्या है ?पतिदेव ने आज तक ना समझा तो अब क्या खाक समझेंगें ?  क्या उनकी उपेक्षा से दुखी रहती हूँ मैं ?उनकी उपेक्षा या अपनी अपेक्षा ? यदि मैं उनसे ऐसी अपेक्षा ही ना करूँ तो.. ?

क्यों सजा देती आई हूँ मैं खुद को  ?  सजा ही नहीं  बल्कि आदत में सुमार कर दिया मैंने तो दुख को ! ऐसी दुखियारी माँ बनकर बेटी को क्या शिक्षा दे रही हूँ मैं ?जीवन को नरक बनाकर जीने की शिक्षा ?..

नहीं ! अब ऐसा नहीं करुँगी, अगर मुझे देखकर मेरी बेटी ने बिना ना-नुकर किए खुद को झोंकना सीख लिया, सभी विसंगतियों को अनचाहे ही स्वीकार कर मन मारकर दुखी रहना सीख लिया, यूँ मजबूर और बेबस होकर दूसरों के हुक्म पूरे करना सीख लिया तो अब मुझे देखकर ही वह अपने में मस्त और खुशी -खुशी जीना भी सीखेगी । हाँ ! मुझे सिखाना होगा उसे अपने आप को प्राथमिकता देना ! सिर्फ़ जरूरतमंद की मदद करना और ऐसे हुक्मरानों के निठल्लेपन का कारण न बनना ! हाँ ! मुझे देखकर ही सीखेगी अब वह अपने अधिकारों का प्रयोजन करना ! अपना मूल्यांकन कर सबको अपना महत्व समझाना !

बस एक ही दिन...एक ही दिन में घर में कोहराम मच गया । देवर देवरानी आकर चिढ़ने लगे कि कमरा ठीक-ठाक तक नहीं किया है । आये हैं तो ना चाय ना नाश्ता... कोई पूछ भी नहीं रहा । सासूमाँ बोली आज तो मेरे बगैर माँगे चाय तक नसीब नहीं हुई। पानी वगैरह की क्या उम्मीद करूँ । महारानी बस अपने ससुरजी की सेवा कर लापता हो गयी, सास के लिए तो जैसे इसके कोई फर्ज ही नहीं ।

आकाश की सवालिया और क्रोधित नजर को देख डरी सहमी और अपराधबोध महसूस करने वाली धरा आज इयरफोन लगा अपने में मस्त , आसन बिछाकर योगाभ्यास में व्यस्त ! 

बच्चे कुछ डरे सहमें से कोने से झाँक रहे  । आकाश का पारा सातवें आसमान पर था । एक झटके में उसके कानों से इयरफोन खींच गुस्से में हाँफते चिल्लाते हुए बोला, " ये क्या हो रहा है ? दिमाग तो ठीक है तुम्हारा" ?

हाथ से रुकने का इशारा कर आसन से पूर्ववत हो, उसने गम्भीर स्वर में कहा,  शाँन्त हो जाइए ! गुस्सा करना ठीक नहीं !  जाकर फ्रैश होइए ! मैं आपकी चाय लाती हूँ ।

आज उसका रुख देख आकाश का सारा गुस्सा फुर हो गया , उसके चेहरे के तेज और आत्मविश्वास से आकाश की नजरें झुक गयी । कदाचित पहली बार देखा था उसने धरा का यह रूप । नहीं समझ पा रहा था कि ऐसा क्या हो गया, जो उसमें कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं रही ।

इधर आकाश की चुप्पी देख पूरे घर में सन्नाटा छा गया।सासूमाँ जो कान लगाए बैठी थी कि आज तो उनके मनकी होगी । वह भी असमंजस में पड़ गयी । कुछ बोलना तो दूर बेटा आज चीजों की उठापटक भी नहीं कर रहा।

योगभ्यास पूरा कर धरा ने चाय बनाई कुछ स्नैक्स के साथ कप ट्रै में सजाकर टेबल पर रख आवाज दी कि सभी अपनी चाय ले लें,  मैं किसी के कमरे में चाय नहीं लाउँगी । और वह बच्चों के लिए दूध एवं ससुरजी के लिए चाय लेकर चली गयी  ।

सासूमाँ भी कराहते हुए चाय पीने पहुँच गयी उसने चुपके से देखा तो बहुत खुश हुई देखकर कि सभी एक साथ एक ही कमरे में बैठे चाय नाश्ता कर रहे हैं । हाँ ! मन मे तूफान तो घुमड़ रहे हैं सबके । बस आकाश की क्रोधाग्नि जो ठंडी पड़ी है , वरना तो....

वह खुद भी हैरान थी कि अपने इसी परिवार से वह इतने सालों से डरी सहमी और दुखी रही !  हैरान थी अवचेतन मन की दृढ़ संकल्प शक्ति से ! हैरान थी कि कैसे सिर्फ़ सोच बदलने भर से काफी कुछ बदल रहा है । सोच रही थी कि अपनी स्थिति के लिए तो वह खुद ही कितने हद तक जिम्मेदार थी !

बस अब तो रोज का सिलसिला था । पीठ पीछे खुसर-फुसर । पर आश्चर्य ये था कि सामने बोलने की हिम्मत नहीं कर रहे थे कोई । सासूमाँ भी अब दबी आवाज में बड़बड़ाती तो आकाश भी अपने गुस्सा जताने के पुराने नुख्सों को बारी -बारी से आजमाकर जैसे फेल हो चुका था । 

शायद इसीलिए उसने आज प्यार का सहारा लेकर अपनी बात कहने की सोची । उसकी बात शांति से सुन धरा अपने बहते आँसुओंं को पोंछकर भावनाओं को नियंत्रित कर बिना कुछ कहे उसका हाथ पकड़ उसे बच्चों के कमरे में ले गयी । जहाँ बेटा उछलकूद कर खेलते हुए बेटी की पढाई में बाधा डाल रहा था और बेटी परेशान होकर एक कोने मे जैसे-तैसे अपना होमवर्क कर रही थी ।

आकाश समझने की कोशिश में था कि धरा क्या दिखाना चाहती है तभी धरा ने बेटे से कहा कि आपके पापा को पानी चाहिए, जाओ ले आओ  ! तो बेटे ने फोरन दीदी की नोटबुक उठा ली जिसमें वह काम कर रही थी। और तुरंत बोला, " दीदी ! सुना नहीं पापा को पानी चाहिए" । और फिर बेटी वही रोनी सी सूरत बना बिना ना-नुकर किए अनमने से पानी लेने चली गयी । आकाश को बेटे के ऐसे व्यवहार पर बहुत गुस्सा आया ।वह बेटे को डाँटता तभी धरा ने उसे रोककर वापस अपने कमरे में चलने को कहा।

फिर बैठकर आराम से समझाते हुए बोली,  " बच्चे हमेशा बड़ों से सीखते हैं , बस यही देखकर और सोचकर मैं बदल रही हूँ। हाँ ! मैं बदल रही हूँ ताकि हमारे बच्चों की मानसिकता बदले , बेबजह किसी को दबाना, अधिकार जताना या दबकर अनमने से जीना  गलत है । मैं नहीं चाहती कि हमारी बेटी कुण्ठित मानसिकता के साथ दुखी जीवन जिए । और बेटा निठल्ला बन दूसरों को ऑर्डर देने में अपनी शान समझे" । 

आकाश भी सब समझ चुका था, उसके लिए ना भी सही तो अपने बच्चों के लिए उसे समझना ही पड़ा।अपनों के खातिर ये बदलाव जरूरी जो था ।



रविवार, 29 जनवरी 2023

असर


Messy room

माँजी खाना खा लीजिए न ! ऐसे खाने पर क्यों गुस्सा उतारना ? चलिए न माँजी ! फिर आपकी दवाओं का समय हो रहा है , तबियत बिगड़ जायेगी ! चलिए खाना खा लीजिए न !

कितनी देर से सीमा ऐसे ही अपनी सासू माँ को मना रही थी, पर सासू माँ आज  मुँह फुलाए बैठी थी , आखिर उनके लाडले पोते बंटी को उसके पापा से डाँट जो पड़ गयी थी ।

बंटी आजकल अपनी दादी के इसी प्यार का गलत फायदा उठा रहा था , कोई भी गलती करता और डाँट पड़े तो दादी से शिकायत !

वह जानता था कि दादी सबको डाँट-डपट कर उसे बचा लेंगी , नतीजतन वह बहुत ही लापरवाह होता जा रहा था ।

उसका सामान पूरे घर भर में बिखरा रहता । जूते - चप्पल भी वह कभी सही तरीके से सही जगह न रखता । उसका कमरा भी हमेशा अस्त-व्यस्त रहता, किताबें और कपड़े पूरे कमरे में तितर-बितर फैले रहते ।

सीमा (उसकी माँ) उसके कमरे में बिखरे सामानों को समेटते - समेटते थक जाती और जब भी कभी उसे इस बारे में डाँटती या कुछ भी कहती तो वह साथ-साथ जुबान लड़ाता ।

माँ को तो जैसे कुछ समझता ही नहीं था । तंग आकर सीमा ने आज उसके पापा से शिकायत कर दी । पापा की डाँट पड़ी तो घड़ियाली आँसू बहा आया दादी से लिपटकर ।

बस फिर दादी शुरू हो गयी, बेटा तो ऑफिस के लिए निकल पड़ा, बची बहू !  खूब सुनाया । फिर भी चैन न आया तो बाकी का गुस्सा खाने पे भी...।

छोटी बबली ये सब देख रही थी । देख रही थी कि माँ के मनाने पर भी दादी मान नहीं रही । भूखी बैठी हैं , और मम्मी ने भी तो कुछ नहीं खाया है । 

वह सोचने लगी, क्यों करते हैं भैया ऐसा ? बड़े हैं पर अकल नहीं है जरा भी ! और दादी को भी क्या ही हो जाता है भैया को लेकर ! मुझे तो हर छोटी-बड़ी बात पर खूब समझाती हैं ।  छोटी सी गलती पर भी खूब डाँटती हैं । पर भैया की गलतियाँ और लापरवाहियां तो जैसे दिखती ही नहीं इन्हें । पर क्यों ? क्यों अनदेखा करती हैं दादी भैया की गलतियाँ ?

उसने सोचा आज दादी से पूछ ही लूँ  । पास जाकर बोली, "दादी ! क्या हुआ ? गुस्सा क्यों हो" ? सुनकर दादी तो जैसे बिफर ही पड़ी । बोली,  "अपनी माँ पूछ ! पूछ अपनी माँ से ! जिसने बेवजह मेरे बंटी की शिकायत करके उसे डाँट खिलाई । वैसे ही तेरा पापा है जो इसके कहने में आ जाता है । कितना रो रहा था मेरा बंटी" ! कहते हुए दादी का गला भर आया। दादी को दुखी देख बबली भी दुखी होकर दादी से चिपक गयी ।

दादी फिर गुस्से में बोली , "हाथ झड़ रहे थे तेरी माँ के उसका कमरा साफ करके ?  बिना बात में पापा - बेटे के बीच मन-मुटाव करवा दिया। बबली ! सुन ! आज से तू साफ-सफाई करेगी बंटी के कमरे की ! ठीक है ! सुन लिया तूने" ? 

"जी, दादी ! मैं कर लूँगी ! पर दादी ! भैया तो मुझसे भी बड़े हैं न, फिर वे खुद क्यों नहीं करते हैं अपने काम ? आपने ही ने तो बताया है न दादी ! कि अपना काम खुद करना चाहिए । और अगर काम करने में कुछ गलती हो भी जाय तो अपनी ही गलतियों से हमेशा कुछ सीखना भी चाहिए । है न दादी !  तभी तो मैं हमेशा करती हूँ, पर भैया कभी नहीं करते । क्या उन्हें ऐसा करने की जरुरत नहीं है" ?

बबली ने पूछा तो दादी समझाते हुए बोली, "जरूरत तो है उसे भी, पर क्या करें बेटा ! आजकल उसकी ग्रहदशा ठीक नहीं है। पंडित जी से कुंडली दिखवाई थी मैंने उसकी। उन्होंने बताया कि अभी उसके ग्रहों की स्थिति खराब है, उसी के असर से वह कुछ चिड़चिड़ा हो गया है ।  ऐसे ग्रहदोष में बच्चे चिड़चिड़े और उग्र हो ही जाते हैं । हमें ही ध्यान रखना होगा उसका । और ग्रहशांति का पाठ करवाना होगा तब वह भी समझदार और शांत स्वभाव का हो जायेगा तेरी तरह...। पर देख न तेरी मम्मी के हाल ! अरे ! ग्रहशांति का पाठ तो करवाने को तो कहा नहीं तेरे पापा से, ऊपर से ये गृहक्लेश करवा दिया। अब तू ही समझा अपनी माँ को" !

"ठीक है दादी ! मैं जरूर बात करुँगी मम्मी-पापा से।पर दादी ! मैंने एक बुक में पढ़ा कि अगर हम अच्छे से नहीं रहते , अपना काम अपनेआप नहीं करते , चीजों को अस्त-व्यस्त फैलाकर रखते हैं और घर में जूते-चप्पल सही जगह सलीके से नहीं रखते तो हमारे ग्रहों पर भी इसका गलत असर पड़ता है। मतलब वही... ग्रहदोष लगता है, और फिर ऐसी गलतियों पर जब हमें बार-बार बड़ों की डाँट पड़ती है तो हम चिड़चिड़े भी हो जाते हैं" ।

"कहाँ पढ़ा तूने "? दादी ने पूछा तो उसने कहा, "एक बुक में ,  आप पढ़ोगे ? मैं लाती हूँ , आप अपना चश्मा पहनिए"। वह जाने लगी तो दादी बोली, "रूक ! जाने दे ! उसमें तो अंग्रेजी मे लिखा होगा न ? हाँ दादी ! पर यही लिखा है। उसने देखा कि दादी उसकी बात बड़े ध्यान से सुन रही हैं तो समझाते हुए बोली, 

"दादी ! देखिए न , जैसे मम्मी को जल्दी से गुस्सा नहीं आता, पर पापा को आता है, क्योंकि पापा अपने छोटे-मोटे काम अपनेआप नहीं करते, अपनी चीजें भी इधर-उधर कहीं भी रख देते हैं । मम्मी ही सम्भालती है न उनके वॉलेट, हैंकी वगैरह। तो उन्हें भी ग्रहदोष लगता है । तभी तो पापा के जन्मदिन पर आप ग्रहशांति का पाठ करवाती हैं न पंडित जी से । दादी ! क्या आपने कभी अपने और मम्मी के जन्मदिन पर ग्रहशांति का पाठ करवाया" ?

व्यंगपूर्ण हँसते हुए दादी बोली, "नहीं हम औरतों को भला ग्रहशान्ति के पाठ की क्या जरूरत" !

"वही तो दादी ! हमें नहीं पड़ती इसकी जरूरत । क्योंकि हमारे ग्रह कभी खराब होते ही नहीं। हम तो अपना काम हमेशा अपने आप करते हैं और पूरे घर को भी ठीक ठाक करते रहते हैं। फिर हमारे ग्रह हमेशा शांत ही रहते होंगे , काश भैया और पापा भी"...


तभी दादी बीच में ही टोककर बोली, "जा,जाकर खाना लगा ! मेरा भी और अपनी माँ का भी । वह भी भूखी बैठी होगी अभी तक" । जी दादी ! आप आ जाओ कहकर बबली खुशी-खुशी खाना लगाकर लायी ।

और तब से घर के सारे नियम बदल गये, मम्मी को अब पहले सी हड़बड़ी और भागम-भाग नहीं थी क्योंकि अपना वॉलेट वगैरह सही जगह रखकर अपने आप लेने लगे और बंटी का कमरा भी अब व्यवस्थित रहने लगा ।


मम्मा ! मैंने अपने लिए विश नहीं माँगी

  "बिन्नी चल जल्दी से नहा-धोकर मंदिर हो आ ! आज से तेरी बोर्ड परीक्षा शुरू हो रही है न, तो जाकर भोलेनाथ जी से प्रार्थना करना परीक्षा में...