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सब क्या सोचेंगे !

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  "मोना !.. ओ मोना" !... आवाज देते हुए माँ उसके स्टडी रूम में पहुँची तो देखा कि बेटी ने खुली किताब के ऊपर डॉल हाउस सजा रखा और अपनी गुड़िया को सजाने में इतनी तल्लीन है कि ना तो उसे कोई आवाज सुनाई दे रही और ना ही माँ के आने की आहट । कल इसकी परीक्षा है और आज देखो इसे ! ये लड़की पढ़ने के नाम पर खेल में बिजी है । गुस्से में माँ ने उसकी बाँह पकड़कर उसे झिझोड़ा तो वो एकदम झसक सी गई  । सामने माँ को देखकर आँख बंद कर गहरी साँस ली फिर बोली "ओह ! मम्मी ! आप हो ! मुझे लगा पापा ही पहुँच गए"। "अच्छा ! पापा का डर और मम्मी ऐवीं" ! गुस्से के कारण माँ की आवाज ऊँची थी । "श्श्श...क्या मम्मी ! आपके अंदर पापा की आत्मा घुस गई क्या" ? "देख मोना ! मुझे गुस्सा मत दिला ! बंद कर ये खेल खिलौने ! और चुपचाप पढ़ने बैठ !  कल तेरी परीक्षा है, कम से कम आज तो मन लगाकर पढ़ ले" ! "वही तो कर रही हूँ मम्मी ! मन बार -बार इसके बारे में सोच रहा था तो सोचा पहले इसे ही तैयार कर लूँ , फिर मन से पढ़ाई करूँगी" । "बेटा ! तुझे समझ क्यों नहीं आता ? क्यों नहीं सोचती कि तेरे कम मार्

ज्ञान के भण्डार गुरुवर

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 ख्याति लब्ध पत्रिका 'अनुभूति' के 'अपनी पाठशाला' विशेषांक में मेरी रचना 'ज्ञान के भण्डार गुरुवर ' प्रकाशित करने हेतु आ.पूर्णिमा वर्मन दीदी का हार्दिक आभार । ज्ञान के भंडार गुरुवर,  पथ प्रदर्शक है हमारे । डगमगाती नाव जीवन,  खे रहे गुरु के सहारे । गुरु की पारस दृष्टि से ही ,  मन ये कुंदन सा निखरता । कोरा कागज सा ये जीवन,  गुरु की गुरुता से महकता । देवसम गुरुदेव को हम,  दण्डवत कर, पग-पखारें  । ज्ञान के भंडार गुरुवर,  पथ प्रदर्शक है हमारे । गुरु कृपा से ही तो हमने , नव ग्रहों का सार जाना । भू के अंतस को भी समझा,  व्योम का विस्तार जाना । अनगिनत महिमा गुरु की,  पा कृपा, जीवन सँवारें । ज्ञान के भंडार गुरुवर,  पथ प्रदर्शक है हमारे । तन में मन और मन से तन,  के गूढ़ को बस गुरु ही जाने । बुद्धि के बल मन को साधें,  चित्त चेतन के सयाने । अथक श्रम से रोपते , अध्यात्म शिष्योद्यान सारे। ज्ञान के भंडार गुरुवर,  पथ प्रदर्शक है हमारे । पढ़िए पत्रिका 'अनुभूति' में प्रकाशित मेरी एक और रचना ●  बने पकौड़े गरम-गरम

जीवन की राहों में

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बचपन से परीक्षाओं में उत्तीर्ण और कक्षा में अव्वल रहने वाले ज्यादातर लोगों को अपनी बुद्धिमानी पर कोई शक नहीं रहता । उन्हें विश्वास हो जाता है कि जीवन की अन्य परीक्षाएं भी वे अपनी बुद्धि के बल पास कर ही लेंगे ।  अक्सर उन्हें नहीं पता होता कि जीवन की ये परीक्षाएं कुछ अलग ही होंगी जिसमें प्रतिस्पर्धी अपने ही होंगे । जब पता चलता भी है तो वे सोचते हैं कि अपनों से ही प्रतिस्पर्धा में भला क्या डर ! हार भी अपनी तो जीत भी अपनी । वे प्रतिस्पर्धा में इसी भाव के साथ सम्मिलित होते है सबसे अपनापन और स्नेह के भाव लिए ।  और अपने प्रतिस्पर्धियों से दो कदम आगे बढ़ते ही अकेले हो जाते हैं । क्योंकि अपनों के साथ होने वाली ऐसी प्रतिस्पर्धाएं अक्सर आगे बढ़ने की होती ही नहीं, ये प्रतिस्पर्धाएं तो किसी को आगे ना बढ़ने देने की होती हैं ।  हाँ ! ये प्रतिस्पर्धाएं ऊपर उठने की भी नहीं होती, बल्कि ऊपर उठने वाले को र्खीचकर नीचे गिराने की होती हैं । जो ना पीछे धकेले जाते हैं और ना ही नीचे गिराए जाते हैं ,  वे अकेले हो जाते हैं जीवन की राहों में । और फिर अक्सर भुला दिये जाते हैं , अपनों द्वारा ।  या फिर त्याग दिए जाते है

पावस के कजरारे बादल

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पावस के कजरारे बादल, जमकर बरसे कारे बादल , उमस धरा की मिटा न पाए, बरस बरस कर हारे बादल । घिरी घटा गहराये बादल, भर भर के जल लाये बादल, तीव्र ताप से तपी धरा पर, मधुर सुधा बरसाये बादल । सूरज से घबराए बादल, चढ़ी धूप छितराए बादल, उमड़-घुमड़ पहुँचे गिरि कानन, घन घट फट पछताए बादल । भली नहीं अतिवृष्टि बादल, करे याचना सृष्टि बादल, कहीं बाढ़ कहीं सूखा क्यों ? समता की रख दृष्टि बादल ! छोड़ भी दो मनमानी बादल, बहुत हुई नादानी बादल, बरसो ऐसा कि सब बोलें, पावस भली सुहानी बादल । पढ़िए बादलों पर आधारित मेरी एक और रचना ●  ये भादो के बादल

हरते सबके कष्ट सदाशिव भोले शंकर

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                         【1】 शंकर भोलेनाथ शिव , नंदीश्वर, भगवान । बाघम्बर भैरव शिवा, शम्भू कृपा निधान । शम्भू कृपा निधान, उमापति बम बम भोले । अवढर दानी नाथ, सभी की किस्मत खोले । जपते नमः शिवाय, भक्त सावन में घर घर  । हरते सबके कष्ट, सदाशिव भोले शंकर  ।।                            【2】 शिवशंकर कैलाशपति , महिमा अपरम्पार । शशिशेखर विरुपाक्ष शिव,जग के पालनहार । जग के पालनहार,  दीन के हैं रखवारे । बम बम भोले घोष, भक्त करते जयकारे । भजे सुधा कर जोरि, नमामि जै गिरिजेश्वर । करो सृष्टि उद्धार, कृपानिधि जै शिवशंकर ।। पढ़िए सावन और शिव भक्ति पर आधारित अन्य कुण्डलिया छंद निम्न लिंक पर । ●  मन में भरे उमंग, मनोहर पावन सावन

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