कुछ सपने जो आधे -अधूरे
यत्र-तत्र बिखरे मन में यूँ
जाने कब होंगे पूरे .....?
मेरे सपने जो आधे -अधूरे
दिन ढ़लने को आया देखो
सांझ सामने आयी.....
सुबह के सपने ने जाने क्यूँ
ली मन में अंगड़ाई......
बोला; भरोसा था तुम पे
तुम मुझे करोगे पूरा.....
देख हौसला लगा था ऐसा
कि छोड़ न दोगे अधूरा....
डूबती आँखें हताशा लिए
फिर वही झूठी दिलाशा लिए
चंद साँसों की आशाओं संग
वह चुप फिर से सोया......
देख दुखी अपने सपने को
मन मेरा फिर-फिर रोया.....
सहलाने को प्यार से उसको
जो अपना हाथ बढ़ाया....
ढ़ेरों अधूरे सपनों की फिर
गर्त में खुद को पाया......
हर पल नित नव मौसम में
सपने जो मन में सजाये.....
अधूरेपन के दुःख से दुखी वे
कराहते ही पाये.....
गुनाहगार हूँ इन सपनों के
जिनको है छोड़ा अधूरा....
वक्त हाथों से निकला है जाता
करूँ कैसे अब इनको पूरा.........?
लोगों की नजर में सफल हुए हम
कि मंजिल भी हमने है पायी.......
बड़े भागवाले हो कहती है दुनिया
कि मेहनत जो यूँ रंग लायी.......
सपने अधूरे तो अरमां अधूरे
मन में है बस तन्हाई.....
मन खुश हो कैसे कुछ पाने पर
उन सपनोंं का जो शैदाई.....
कुछ सपने जो आधे-अधूरे
जाने कब होंगे पूरे.......?
चित्र : साभार गूगल से....