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बीती ताहि बिसार दे

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  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

जरा अलग सा अबकी मैंने राखी पर्व मनाया

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🌺   रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 🌺 जरा अलग सा अबकी मैने राखी पर्व मनाया । रौली अक्षत लेकर अपने माथे तिलक लगाया ।। एक हाथ से राखी लेकर दूजे पर जब बाँधी ! लगी पूछने खुद ही खुद से क्यों सीमाएं लाँघी ? भाई बहन का पर्व है राखी, क्यों अब इसे भुलाया ?  रक्षा सूत्र को ऐसे खुद से खुद को क्यों पहनाया ? दो मत दो रूपों में मैं थी अपने पर ही भारी ! मतभेदों की झड़ी लगी मुझ पे ही बारी-बारी। तिरछी नजर व्यंगबाण धर  मुझसे ही मैं बोली ! सीमा पर तैनात है तू, जो भय था लगे ना गोली ? रक्षा सूत्र बाँध स्वयं की किससे रक्षा करती  ? ऐसी भी कुछ खास नहीं ,जो बुरी नजर से डरती ! ठंडी गहरी साँस भरी फिर शाँतचित्त कह पायी ! मुझसे ही मेरी रक्षा का बंधन आज मनायी ! मैं ही हूँ दुश्मन अपनी अब जाकर मैंने जाना । अपने ही अंतर्मन रिपु को अच्छे से पहचाना । राग द्वेष, ईर्ष्या मद मत्सर ये दुश्मन क्या कम थे ! मोह चाह महत्वाकांक्षा के अपने ही गम थे । तिस पर मन तू भी बँट-छँट के यूँ विपरीत खड़ा है । वक्त-बेबक्त बात-बेबात अटकलें लिए पड़ा है शक,संशय, भय, चिंता और निराशा साथ सदा से। देता रहता बिन माँगे भी, ...

मन में भरे उमंग, मनोहर पावन सावन

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  सावन बरसा जोर से, नाच उठा मनमोर । कागज की कश्ती बही , बाल मचाये शोर ।। बाल मचाये शोर, पींग झूले की भरते । रिमझिम बरसे मेघ, भीग अठखेली करते ।। कहे सुधा सुन मीत, कि पावस है मनभावन । मन में भरें उमंग, मनोहर पावन सावन ।। आया सावन मास अब, मन शिव में अनुरक्त । पूजन अर्चन जग करे, शिव शिव जपते भक्त ।। शिव शिव जपते भक्त, चल रहे काँवर टाँगे । करते शिव अभिषेक,  मन्नतें प्रभु से माँगे ।। चकित सुधा करजोरि, देखती शिव की माया । भक्ति भाव उल्लास ,  लिये अब सावन आया ।।

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