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अगस्त, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

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बहुत समय से बोझिल मन को  इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें  उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से  उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी  कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन,  माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित,  फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता ,  ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर,  स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो,  जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से,  मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे,  पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से,  निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा,  मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर,  ...

जरा अलग सा अबकी मैंने राखी पर्व मनाया

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🌺   रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 🌺 जरा अलग सा अबकी मैने राखी पर्व मनाया । रौली अक्षत लेकर अपने माथे तिलक लगाया ।। एक हाथ से राखी लेकर दूजे पर जब बाँधी ! लगी पूछने खुद ही खुद से क्यों सीमाएं लाँघी ? भाई बहन का पर्व है राखी, क्यों अब इसे भुलाया ?  रक्षा सूत्र को ऐसे खुद से खुद को क्यों पहनाया ? दो मत दो रूपों में मैं थी अपने पर ही भारी ! मतभेदों की झड़ी लगी मुझ पे ही बारी-बारी। तिरछी नजर व्यंगबाण धर  मुझसे ही मैं बोली ! सीमा पर तैनात है तू, जो भय था लगे ना गोली ? रक्षा सूत्र बाँध स्वयं की किससे रक्षा करती  ? ऐसी भी कुछ खास नहीं ,जो बुरी नजर से डरती ! ठंडी गहरी साँस भरी फिर शाँतचित्त कह पायी ! मुझसे ही मेरी रक्षा का बंधन आज मनायी ! मैं ही हूँ दुश्मन अपनी अब जाकर मैंने जाना । अपने ही अंतर्मन रिपु को अच्छे से पहचाना । राग द्वेष, ईर्ष्या मद मत्सर ये दुश्मन क्या कम थे ! मोह चाह महत्वाकांक्षा के अपने ही गम थे । तिस पर मन तू भी बँट-छँट के यूँ विपरीत खड़ा है । वक्त-बेबक्त बात-बेबात अटकलें लिए पड़ा है शक,संशय, भय, चिंता और निराशा साथ सदा से। देता रहता बिन माँगे भी, ...

मन में भरे उमंग, मनोहर पावन सावन

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  सावन बरसा जोर से, नाच उठा मनमोर । कागज की कश्ती बही , बाल मचाये शोर ।। बाल मचाये शोर, पींग झूले की भरते । रिमझिम बरसे मेघ, भीग अठखेली करते ।। कहे सुधा सुन मीत, कि पावस है मनभावन । मन में भरें उमंग, मनोहर पावन सावन ।। आया सावन मास अब, मन शिव में अनुरक्त । पूजन अर्चन जग करे, शिव शिव जपते भक्त ।। शिव शिव जपते भक्त, चल रहे काँवर टाँगे । करते शिव अभिषेक,  मन्नतें प्रभु से माँगे ।। चकित सुधा करजोरि, देखती शिव की माया । भक्ति भाव उल्लास ,  लिये अब सावन आया ।।

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