बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

नयी सोच【2】

Grandfather thinking
                      चित्र, साभार गूगल से..

डब्बू-- दादू ! आज मेरे फ्रेंड्स डिनर पे बाहर जा रहे हैं,   मैं भी जाऊँ उनके साथ ?...

प्लीज दादू ! हाँ कह दो न।

दादाजी--अरे नहीं बेटा ! तू अपने दोस्तों के साथ कैसे डिनर करेगा ?  आजकल ज्यादातर लड़के नॉनवेज खाते हैं  डिनर में, फिर एक ही टेबल पर !                  छिः छी...!    

अच्छा बता क्या खाना है तुझे ? 

अभी मँगवाता हूँ , बोल ! 

डब्बू-----  नहीं ना दादू! मुझे बाहर जाना है ।

दादाजी----  ओ के ! चल फिर तैयार हो जा ! अभी चलते हैं, आज मैं तुझे तेरी पसंद की हर चीज खिलाउंगा। चल चल !  जल्दी कर!

डब्बू-----  ओह दादू! नहीं जाना मुझे आपके साथ (गुस्से से खीझते हुए)   मुझे समझ नहीं आता नॉनवेज से आपको दिक्कत क्या है ?  हाँ खाते हैं सब लोग नॉनवेज !  खाने की चीज है तो खायेंगे ही न, और हम भी तो खाते हैं न अंडे!

दादाजी---  (सख्त लहजे में) अंडे नॉनवेज में नहीं आते डब्बू ! मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था।

डब्बू --  ये सब कहने की बाते हैं दादू ! अंडे से ही तो चूजा बनता है न...अंडा भ्रूण है दादू ! ... और छोड़िये ये सब ।    हमने खाया न,  तो क्या बिगड़ा हमारा  ?  हम नहीं खाते तो कोई और खाता,  ऐसे ही तो है नॉनवेज भी।

दादाजी----  ऐसे ही नहीं है नॉनवेज ! जानते हो न माँसाहार करना पाप है।                                 

तुम्हारी मति भ्रष्ट हो रही है डब्बू ! 

पेट भरने के लिए हमारे पास अन्न है फिर हम सिर्फ़ जीभ के चटोरेपन के कारण माँसाहार करके पाप के भागी क्यों बने ?...

डब्बू---    इसमें पाप कैसा दादू ? एक हमारे ना खाने से उस चिकन या मटन में वापस जान नहीं आ जानी । अरे हम नहीं खायेंगे कोई और खायेगा।                      

दादू वो तो पाले ही खाने के लिए हैं । और ना भी खायें कोई तो भी क्या? कौन सा हमेशा जीवित रहने वाले हैं वो ?

दादाजी--   अरे !  हम वेजिटेरियन हैं हमारे लिए मांसाहार पाप है ।  जीवहत्या पाप है ।।                  बस ! और बहस नहीं !

डब्बू-- मैं भी कहाँ माँसाहार करना चाहता हूँ दादू ! पर उनके साथ एक टेबल पर खाने में मुझे कोई घृणा या पाप जैसी बात नहीं लगती।                                 

दादू ! हम वेजिटेरियन क्या कोई हत्या या पाप नहीं करते  ?  

आप ही कहते हैं न फूल मत तोड़ो ! पेड़ मत काटो ! इनमें भी जान होती है। है न दादू ! पेड़ -पौधों में भी जान होती है न ।                                             

फिर पेड़-पौधों से फल सब्जी लेते समय और फसलें काटकर अनाज लेते समय हम इनकी जान नहीं लेते ?  पेड़-पौधों की जान लेना पाप क्यों नहीं है ?          

दादू ! हम दूध पीते हैं न। एक छोटी सी बछिया को उसकी माँ के थन से जबरन अलग कर उसे रूखा-सूखा घास खिलाते हैं और उसके हिस्से का दूध खुद पी जाते हैं, क्या ये गलत नहीं है दादू ? कोई पाप भी नहीं है ?    हमें इन गलतियों का पाप क्यों नहीं लगता दादू?।       

इनका पाप क्यों नहीं लगता दादू ?

अल्फाज दादाजी के जेहन में उतर गये।शब्द मौन और तर्क क्षीण हो गये।


शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

गति मन्द चंद्र पे तरस आया

 

Morning moon
                 चित्र साभार,pixabay.com से


बाद पूनम के चाँद वृद्ध सा

सफर न पूरा कर पाया।

बादल में छुपा तब भोर भानु 

गति मन्द चंद्र पे तरस आया।


दी शीतलता दान विश्व को

पूनम में है पाया मान

नन्हा सा ये बढ़ा शुक्ल में 

पाक्षिक उम्र में वृहद ज्ञान

आज चतुर्थी के अरुणोदय

नभ में दिखी यूँ मलिन काया

बादल में छुपा तब भोर भानु

गति मन्द चंद्र पे तरस आया


हर भोर उद्भव चमक रवि

हर साँझ फिर अवसानी है

दिन मात्र जीवन सफर विश्व

सम और ना गतिमानी है

आदि अंत का जटिल सत्य

इनको न कभी भरमा पाया

बादल में छुपा तब भोर भानु

गति मन्द चंद्र पे तरस आया


नसीहत सदा देती प्रकृति

हम सीखते ही हैं कहाँ

नीयत से ही बनती नियति

कर्मठ बताते हैं यहाँ

प्रखर रवि और सौम्य शशि

दोनों ने ही जग चमकाया

बादल में छुपा तब भोर भानु

गति मन्द चंद्र पे तरस आया


मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

हायकु

    

Bird
चित्र, साभार picabay.com से

  

    [1]

कर स्पर्श से

लाजवन्ती सिकुड़ी ~

गाँव की राह

     

     [2]

मावठ भोर~

फटी बंडी की जेब

टटोले वृद्ध

    

    [3]

मकड़ीजाले~

जीर्ण झुग्गी में बैठे

वृद्ध युगल

      

     [4]

ठूँठ झखाड़~

झरोखे में चिड़िया

तिनका दाबे

 

      [5]

ज्येष्ठ मध्याह्न~

गन्ने लादे नारी के

नंगे कदम

   

      [6]

कुहासा भोर~

मुड़ा खत पकड़े

माँ दूल्हे संग

     

       [7]

भोर कुहासा~

बाला बाँधी फूलों की 

तिरंगी बेणी


     [8]

भोर लालिमा~

कूड़े के ढ़ेर संग

शिशु रूदन

 

     [9]

श्रावण साँझ~

दलदल में फँसा 

हाथी का बच्चा

    

    [10]

मावठ भोर~

लहसुन की क्यारी में

नन्ही चप्पल 


    [11]

फाग पूर्णिमा~

महिला मुख पर

गोबर छींटे


     [12]

गोस्त की गन्ध~

बालिका की गोद में

लेटा मेमना


     


गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

कबूतर की दादागिरी


Pigeon'sdadagiri
                    चित्र साभार pixabay से


एक कबूतर जमा रहा है,

 बिखरे दानों पर अधिकार ।

शेष कबूतर दूर हो रहे,

उसकी दादागिरी से हार ।


गोल घूमता गुटर-गुटर कर ,

गुस्से से फूला जाता ।

एक-एक के पीछे पड़कर,

उड़ा सभी को दम पाता ।


श्वेत कबूतर तो कुष्ठी से,

हैं अछूत इसके आगे ।

देख दूर से इसके तेवर,

बेचारे डरकर भागे ।


बैठ मुंडेरी तिरछी नजर से,

सबकी बैंड बजाता वो ।

सुबह से पड़ा दाना छत पर,

पूरे दिन फिर खाता वो ।


समझ ना आता डर क्यों उसका,

इतना माने पूरा दल ?

मिलकर सब ही उसे भगाने,

क्यों न लगाते अपना बल ?


किस्सों में पढ़ते हैं हम जो,

क्या ये सच में है सरदार ?

या कोई बागी नेता ये,

बना रहा अपनी सरकार ?


नील गगन के पंछी भी क्या,

झेलते होंगे सियासी मार ?

इन उन्मुक्त उड़ानों का क्या,

भरते होंगे ये कर भार ?


शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

व्रती रह पूजन करते





Godprayer
चित्र : साभार pixabay से......



{1}

 बदली में छुपते फिरे, सावन मास मयंक।

दर्शन को मचले धरा, गगन समेटे अंक ।

गगन समेटे अंक , बहुत  ही लाड-लड़ाये।

भादो बरसे मेघ, कौन अब तुम्हें छुपाये।

कहे धरा मुस्काय, शरद में मत छुप जाना।

व्रती निहारे चाँद, प्रेमरस तुम बरसाना ।।


                         {2}

नवराते में गूँजते, माँ के भजन संगीत ।

जयकारे करते सभी,  माँ से जिनको प्रीत।

माँ से जिनको प्रीत, व्रती रह पूजन करते।

पा माँ का आशीष, कष्ट जीवन के हरते।

कहे सुधा करजोरि, करो माँ के जगराते।

हो जीवन भयमुक्त, सफल जिनके नवराते।


व्रती -- उपवासी

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...