डब्बू-- दादू ! आज मेरे फ्रेंड्स डिनर पे बाहर जा रहे हैं, मैं भी जाऊँ उनके साथ ?...
प्लीज दादू ! हाँ कह दो न।
दादाजी--अरे नहीं बेटा ! तू अपने दोस्तों के साथ कैसे डिनर करेगा ? आजकल ज्यादातर लड़के नॉनवेज खाते हैं डिनर में, फिर एक ही टेबल पर ! छिः छी...!
अच्छा बता क्या खाना है तुझे ?
अभी मँगवाता हूँ , बोल !
डब्बू----- नहीं ना दादू! मुझे बाहर जाना है ।
दादाजी---- ओ के ! चल फिर तैयार हो जा ! अभी चलते हैं, आज मैं तुझे तेरी पसंद की हर चीज खिलाउंगा। चल चल ! जल्दी कर!
डब्बू----- ओह दादू! नहीं जाना मुझे आपके साथ (गुस्से से खीझते हुए) मुझे समझ नहीं आता नॉनवेज से आपको दिक्कत क्या है ? हाँ खाते हैं सब लोग नॉनवेज ! खाने की चीज है तो खायेंगे ही न, और हम भी तो खाते हैं न अंडे!
दादाजी--- (सख्त लहजे में) अंडे नॉनवेज में नहीं आते डब्बू ! मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था।
डब्बू -- ये सब कहने की बाते हैं दादू ! अंडे से ही तो चूजा बनता है न...अंडा भ्रूण है दादू ! ... और छोड़िये ये सब । हमने खाया न, तो क्या बिगड़ा हमारा ? हम नहीं खाते तो कोई और खाता, ऐसे ही तो है नॉनवेज भी।
दादाजी---- ऐसे ही नहीं है नॉनवेज ! जानते हो न माँसाहार करना पाप है।
तुम्हारी मति भ्रष्ट हो रही है डब्बू !
पेट भरने के लिए हमारे पास अन्न है फिर हम सिर्फ़ जीभ के चटोरेपन के कारण माँसाहार करके पाप के भागी क्यों बने ?...
डब्बू--- इसमें पाप कैसा दादू ? एक हमारे ना खाने से उस चिकन या मटन में वापस जान नहीं आ जानी । अरे हम नहीं खायेंगे कोई और खायेगा।
दादू वो तो पाले ही खाने के लिए हैं । और ना भी खायें कोई तो भी क्या? कौन सा हमेशा जीवित रहने वाले हैं वो ?
दादाजी-- अरे ! हम वेजिटेरियन हैं हमारे लिए मांसाहार पाप है । जीवहत्या पाप है ।। बस ! और बहस नहीं !
डब्बू-- मैं भी कहाँ माँसाहार करना चाहता हूँ दादू ! पर उनके साथ एक टेबल पर खाने में मुझे कोई घृणा या पाप जैसी बात नहीं लगती।
दादू ! हम वेजिटेरियन क्या कोई हत्या या पाप नहीं करते ?
आप ही कहते हैं न फूल मत तोड़ो ! पेड़ मत काटो ! इनमें भी जान होती है। है न दादू ! पेड़ -पौधों में भी जान होती है न ।
फिर पेड़-पौधों से फल सब्जी लेते समय और फसलें काटकर अनाज लेते समय हम इनकी जान नहीं लेते ? पेड़-पौधों की जान लेना पाप क्यों नहीं है ?
दादू ! हम दूध पीते हैं न। एक छोटी सी बछिया को उसकी माँ के थन से जबरन अलग कर उसे रूखा-सूखा घास खिलाते हैं और उसके हिस्से का दूध खुद पी जाते हैं, क्या ये गलत नहीं है दादू ? कोई पाप भी नहीं है ? हमें इन गलतियों का पाप क्यों नहीं लगता दादू?।
इनका पाप क्यों नहीं लगता दादू ?
अल्फाज दादाजी के जेहन में उतर गये।शब्द मौन और तर्क क्षीण हो गये।