लघुकथा - विडम्बना
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifALx6Dpp9vEqiy2pEeVzqnyzhq1hInpjXupbvtR1lBq5_CYO2aEcPlanbK4x7N8gtKEvjtHVy04K7s0NUC30fSKY6SbKcLLXei6hLatHQsTQH1yxgb10W4aJ40XG93GabpqxBFvTbxq-gc4Aj1_FLJoQRZqRsFSTsTn7Mc0EGMhyyNe_TL77ic1qy0jYl/w200-h133/1708603462133.jpg)
"माँ ! क्या आप पापा की ऐसी हरकत के बाद भी उन्हें उतना ही मानती हो " ? अपने और माँ के शरीर में जगह-जगह चोट के निशान और सूजन दिखाते हुए बेटे ने पूछा । आँसुओं का सैलाब लिए माँ बेटे के उन जख्मों को सहलाती रही जो पापा की मार से उसे को बचाते समय लगे, परन्तु कुछ कह ना सकी तो बेटा बोला, "माँ ! मैं अब बड़ा हो गया हूँ, समझ और सहनशक्ति जबाब दे रही है, आपके पति-परमेश्वर की इन हरकतों के विरोध में मेरी जुबान या हाथ चलें, इससे पहले मैं घर छोड़कर कहीं दूर जा रहा हूँ , क्योंकि मैं भी आपकी नफरत बरदाश्त नहीं कर पाउँगा" । पढ़िए एक और लघुकथा ● ये माँ भी न