गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

लघुकथा - विडम्बना



Short story





 "माँ ! क्या आप पापा की ऐसी हरकत के बाद भी उन्हें उतना ही मानती हो " ?  

अपने और माँ के शरीर में जगह-जगह चोट के निशान और सूजन दिखाते हुए बेटे ने पूछा ।

आँसुओं का सैलाब लिए माँ बेटे के उन जख्मों को सहलाती रही जो पापा की मार से उसे को बचाते समय लगे, परन्तु कुछ कह ना सकी तो बेटा बोला, "माँ ! मैं अब बड़ा हो गया हूँ, समझ और सहनशक्ति जबाब दे रही है, आपके पति-परमेश्वर की इन हरकतों के विरोध में मेरी जुबान या हाथ चलें, इससे पहले मैं घर छोड़कर कहीं दूर जा रहा हूँ , क्योंकि मैं भी आपकी नफरत बरदाश्त नहीं कर पाउँगा" । 




  पढिए एक और लघुकथा 




5 टिप्‍पणियां:

Rohitas Ghorela ने कहा…

मारपीट को सहन करना और एक हद्द के बाद भी सहन करना है गुनाह है.
बहुत मार्मिक लघू कथा.

पधारें- तुम हो तो हूँ 

शुभा ने कहा…

हृदयस्पर्शी सृजन सुधा जी ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

समय और परिस्थितियों के साथ साथ घरेलू हिंसा के पहलू को उजागर करती बेहतरीन और हृदयस्पर्शी लघुकथा। बहुत बधाई प्रिय सखी।

हरीश कुमार ने कहा…

😢

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत ही सुंदर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी लघु कथा

हो सके तो समभाव रहें

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