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दिसंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

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बहुत समय से बोझिल मन को  इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें  उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से  उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी  कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन,  माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित,  फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता ,  ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर,  स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो,  जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से,  मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे,  पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से,  निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा,  मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर,  ...

मैं मन्दोदरी बनूँ कैसे....?

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        प्रिय ! मैं हारा, दुख का मारा  लौट के आया      तेरे द्वार...... अब नयी सरकार जागी जनता !! भ्रष्टाचार पर मार...     "तिस पर " सी.बी.आई.के छापे मुझ जैसे डर के भागे...  पछतावा है मुझको अब  प्रिय ! मैने तुझको छोड़ा...  मतलबी निकले वे सब  नाता जिनसे मैंने जोड़ा..... आज मेरे दुख की इस घड़ी में उन सबने मुझसे है मुँह मोड़ा !!! अब बस तू ही है मेरा आधार ! मेरी धर्मपत्नी, मेरा पहला प्यार ! है तुझसे ही सम्भव,अब मेरा उद्धार ।  तू क्षमाशील, तू पतिव्रता....  प्रिय ! तू  बहुत ही चरित्रवान, सर्वगुण सम्पन्न है तू प्रिय ! तुझ पर प्रसन्न रहते भगवान !! अब जप-तप या उपवास कर प्रभु से माँगना ऐसा वरदान!!! वे क्षमा मुझे फिर कर देंगे..... मैं पुनः बन जाउँगा धनवान!!! आखिर मैं तेरा पति-परमेश्वर हूँ   कर्तव्य यही है फर्ज यही , प्रिय ! मैं ही तो तेरा ईश्वर हूँ !!! ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;          ...

रिश्ते

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थोड़ा सा सब्र , थोड़ी वफा ... थोड़ा सा प्यार , थोड़ी क्षमा जो जीना जाने रिश्ते रिश्तों से है हर खुशी । फूल से नाजुक कोमल ये महकाते घर-आँगन खो जाते हैं गर  ये तो लगता सूना सा जीवन ।         क्या खोया क्या पाया, नानी -दादी ने बैठे-बैठे, यही तो हिसाब लगाया क्या पाया जीवन में ,जिसने इनका प्यार न पाया ।        दादाजी-नानाजी की वो नसीहत  मौसी-बुआ का प्यार ।  चाचू-मामू संग सैर-सपाटे  झट मस्ती तैयार ।        कोई हँसाए तो कोई चिढ़ाए  कोई पापा की डाँट से बचाए  जीवन के सारे गुर सीख जायें  हो अगर संयुक्त परिवार ।   कितनी भी दौड़ लगा लें, कितना भी आगे जा लें । सूरज चंदा से मिले या, तारे भी जमीं पर ला लें । दुनिया भर की शाबासी से दिल को चैन कहाँ है ? अपनोंं के आशीष में ही , अपना तो सारा जहाँ है । जो जीना जाने रिश्ते रिश्तों से  है हर खुशी । बड़ी ही कोमल नाजुक सी डोरी से बंधे प्रेम के रिश्ते । समधुर भावोंं की प्रणय बन्धन से जीवन  को सजाएं रिश्ते । जोश-ज...

नारी : अतीत से वर्तमान तक

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कुछ करने की चाह लिए अस्तित्व की परवाह लिए  मन ही मन सोचा करती थी बाहर दुनिया से डरती थी...... भावों में समन्दर सी गहराई हौसले की उड़ान भी थी ऊँची  वह कैद चहारदीवारी में भी, सपनों की मंजिल चुनती थी.... जग क्या इसका आधार है क्या ? धरा आसमां के पार है क्या,? अंतरिक्ष छानेगी वह इक दिन ख्वाबों में उड़ाने भरती थी..... हिम्मत कर निकली जब बाहर, देहलीज लाँघकर आँगन तक । आँगन खुशबू से महक उठा, फूलों की बगिया सजती थी........ अधिकार जरा सा मिलते ही, वह अंतरिक्ष तक हो आयी... जल में,थल में,रण कौशल में सक्षमता अपनी  दिखलायी....... बल, विद्या, हो या अन्य क्षेत्र इसने परचम अपना फहराया सबला,सक्षम हूँ, अब तो मानो अबला कहलाना कब भाया........ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx जब सृष्टि सृजन की थी शुरूआत सोच - विचार के बनी थी बात....... क्योंकि....... दिल से दूर पुरुष था तब, नाकाबिल, अक्षम, अनायास... सृष्टि सृजन , गृहस्थ जीवन हेतु किया था सफल प्रयास..... पुरूषार्थ जगाने, प्रेम उपजाने, सक्षमता  का आभास कराने । कोमलांगी नाजुक गृहणी ब...

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