शनिवार, 17 सितंबर 2016

'आइना' समाज का

प्रस्तुत आलेख कोई कहानी या कल्पना नहीं, अपितु सत्य घटना है ।

girl in tear



आज मॉर्निंग वॉक पर काफी आगे निकल गयी । सड़क  के पास बने स्टॉप की बैंच पर बैठी थोडा सुस्ताने के लिए । तभी सिक्योरिटी गार्ड को किसी पर गुस्सा करते हुए सुना, एक दो लोग भी वहाँ इकट्ठा होने लगे ।  
मैं भी आगे बढी, देखा एक आदमी बीच रोड़ पर लेटा है, नशे की हालत में ।  गार्ड उसे उठाने की कोशिश कर रहा है,गुस्से के साथ । 
तभी एक अधेड़ उम्र की महिला ने आकर गार्ड के साथ उस आदमी को उठाया और किनारे ले जाकर गार्ड का शुक्रिया किया । 
नशेड़ी शायद उस महिला का पति था। थोड़ा आँखें खोलते हुए,महिला के हाथ से खुद को छुड़ाते हुए, लड़खड़़ाती आवाज में चिल्ला कर बोला, "मैं घर नहीं आउँगा"। 
ओह ! तो  जनाब घर के गुस्से में पीकर आये हैं;  सोच कर मैने नजरें फेर ली, और फिर वापस वहीं जाकर बैठ गयी, थोड़ी देर बैठने के बाद घर के लिए निकली तो देखा रास्ते मे पुल पर खडी वही महिला गुस्से मे बड़बड़ा रही थी,  गला रूँधा हुआ था, चेहरे पर गुस्सा, दु:ख, खीज और चिंता ।
वह परेशान होकर पुल से नीचे की तरफ देख रही थी, एक हाथ से सिर पर रखे पल्लू को पकडे थी ,जो सुबह की मन्द हवा के झोंके से उड़ना चाहता था, महिला पूरी कोशिश से पल्लू संभाले थी जैसे वहाँ पर उसके ससुरजी हों ।
मैंने भी नीचे झाँका,तारबाड़ के पीछे ,खेतों से होते हुये  नदी की तरफ,वही आदमी लडखड़ाती चाल से चला  जा रहा है,बेपरवाह , अपनी ही धुन में । 
उसे देखकर लगता था जाने कब गिर पडेगा,  वह खेतों को लाँघकर नीचे नदी की तरफ जा रहा था, महिला उसे वापस आने को कह रही थी, कभी कहती "जो हुआ छोड़ दो,माफ कर दो, मान लिया मैंने, ये सब मेरी ही गलती है, माफ कर दो ,घर आ जाओ" । 
लेकिन वह न रुका । अब महिला गुस्से मे  "जा - जा...कभी मत आ मेरी बला से , मैं जा रही हूँ,बच्चे परेशान हो रहे होंगे" कहते हुए आगे बढ़ी,कुछ इस तरह कि उसे दिखाई न दे । शायद मन मे सोची होगी कि उसे न देख कर शायद वह वापस आ जाय ।
वापस आने के बजाय वह तो और नीचे खेत मे जाकर घास पर लम्बा होकर लेट गया ।  अब महिला से न रहा गया,शायद वह डर रही थी कि कहीं उसे कुछ हो न जाय, कहीं घास में साँप...या फिर वह नदी मे खुद के साथ कुछ.... ।  बेचारी तारबाड़ लाँघकर वहीं चली गयी उसे लेने....लेने की कोशिश करने, वैसे ही बड़बड़ाती हुई, मैं ज्यादा वहाँ रुक नही पाई बोझिल मन घर की तरफ लौटी,मन चाहता था,महिला से कहूँ वह घर जाए, नशा उतरने पर वो भी आ जायेगा ।  पर कैसे ? एक पत्नी से ये सब कैसे कहूँ ? क्या वह ऐसा कर पायेगी ? शायद नही, जो सिर के पल्लू को उड़ने के लिए नही छोड़ सकती, वह अपने पति को उसके हाल पर कैसे छोड़ सकती है  ।                                                                                                          

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

प्रकृति का संदेश

Nature

हरी - भरी धरती नीले अम्बर की छाँव
प्रकृति की शोभा बढाते ये गाँव।
सूर्य चमक कर देता खुशहाली का सन्देश,
हवा महककर बोली; "मैं तो घूमी हर देश"।।

चँदा ने सिखाया देना सबको नया उजाला,
तारे कहते ; गीत सुनाओ सबको मस्ती वाला।
देना सीखो ये ही तो  है प्रकृति का सन्देश !
हवा महक कर बोली;"मैं तो घूमी सब देश"।।


जीवन की जरूरत पूरी करते ये वृक्ष हमारे,
बिन इनके तो अधूरे हैं जीवन के सपने सारे।
धरती की प्यास बुझाना नदियों का लक्ष्य -विशेष,
हवा महक कर बोली; "मै तो घूमी सब देश" ।।

देखो ! आसमान ने पूरी, धरती को ढक डाला है,
धरती ने भी तो सबको ,माँ जैसा सम्भाला है।
अपनेपन  से सब रहना, ये है इनका सन्देश,
हवा महक कर बोली; "मैं त़ो घूमी सब देश"।।


पढिये प्रकृति पर आधारित मेरी एक और कविता  "प्रकृति की रक्षा, जीवन की सुरक्षा"


मरे बिना स्वर्ग ना मिलना

 कंधे में लटके थैले को खेत की मेंड मे रख साड़ी के पल्लू को कमर में लपेट उसी में दरांती ठूँस बड़े जतन से उस बूढ़े नीम में चढ़कर उसकी अधसूखी टहनिय...