रविवार, 30 मई 2021

उदास पाम

 

Palm tree


जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है

लगता नही है मन कहीं उसी के पास है


वह तो मुझे बता रहा

मुझे  समझ न आ रहा

कल तक था सहलाता मुझे

अब नहीं लहरा रहा

क्या करूँ अबुलन है ये पर मेरा खास है

लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है

जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है


पहली नजर में भा गया

फिर घर मेरे ये आ गया

रौनक बढ़ा घर की मेरी 

सबका ही मन चुरा गया

माना ये भी सबने कि इससे शुद्ध श्वास है

लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है

जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है



खाद पानी भी दिया

नीम स्प्रे भी किया

झुलसी सी पत्तियों ने सब

अनमना होके लिया

दुखी सा है वो पॉट जिसमें इसका वास है

लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है

जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है।


यदि जानते हैं आप तो

कृपया सलाह दें

मरते से मेरे पाम के 

इस दुख की थाह लें

बस आपकी सलाह ही इकमात्र आस है

लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है

जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है।।


रविवार, 23 मई 2021

अब दया करो प्रभु सृष्टि पर

To plead


भगवान तेरी इस धरती में 

इंसान तो अब घबराता है

इक कोविड राक्षस आकर

मानव को निगला जाता है


तेरे रूप सदृश चिकित्सक भी

अब हाथ मले पछताते हैं

वरदान से इस विज्ञान को छान

संजीवनी पा नहीं पाते हैं


अचल हुआ इंसान कैद

जीवनगति रुकती जाती है

तेरी कृपादृष्टि से वंचित प्रभु

ये सृष्टि बहुत पछताती है


जब त्राहि-त्राहि  साँसे करती

दमघोटू तब अट्हास करे !

अस्पृश्य तड़पती रूहें जब

अरि एकछत्र परिहास करे !


तन तो निगला मन भी बदला

मानवता छोड़ रहा मानव

साँसों की कालाबाजारी में

कफन बेच बनता दानव


अब दया करो प्रभु सृष्टि पर 

भूलों को अबकी क्षमा कर दो!

कोविड व काले फंगस को

दुनिया से दूर फ़ना कर दो



चित्र साभार;photopin.com से।


शनिवार, 15 मई 2021

अभी भी हाथ छोटे हैं



Coronavirus


 सिसकती है धरा देखो

गगन आँसू बहाता है

ग्रीष्म पिघली बरफ जैसी

मई भी थरथराता है


रुकी सी जिन्दगानी है

अधूरी हर कहानी है

शवों से पट रही धरती

प्रलय जैसी निशानी है


ये क्या से क्या हुआ जीवन

थमी साँसें बिलखती हैं

दवा तो क्या, दुआ भी ना

रूहें तन्हा तड़पती हैं


नजर किसकी जमाने को

आज इतना सताती है

अद्यतन मास्क में छुपता

तरक्की भी लजाती है


सदी बढ़ते जमाने से

सदी भर पीछे लौटे हैं

समझ विज्ञान को आया

अभी भी हाथ छोटे हैं


       चित्र साभार, photopin.com  से




हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...