शरद भोर
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGa2PE-KPAIJYT58HZWPC9myiFO3bdWkeEwhjPezv3aL5F9fuEuemXcfjA3vzZHaJiycX5kcm8xymo4g3daFT2Mv_qaRUl6jHIZlF0aVZjLBK6Iwut9cBryIk6fANBhLRp0GgEyDgXEMtGIQ0TcK9ZLNO6ThcFJj9aS8liYGr_BcyC2P9uiY1ObD3HyA/w200-h113/1665984234991.jpg)
मनहरण घनाक्षरी मोहक निरभ्र नभ भास्कर विनम्र अब अति मनभावनी ये शरद की भोर है पूरब मे रवि रथ शशि भी गगन पथ स्वर्णिम से अंबरांत छटा हर छोर हैं सेम फली झूम रही पवन हिलोर बही मालती सुगंध भीनी फैली चहुँ ओर है महकी कुसुम कली विहग विराव भली टपकन तुहिन बिंदु खुशी की ज्यों लोर है लोर - अश्रु