
कितनी आसानी से कह देते हैं न हम कि
क्या करें गुस्सा आ गया था ...
गुस्से में कह दिया....गुस्सा !!
गुस्सा (क्रोध) आखिर बला क्या है ?
सोचें तो जरा !
क्या सचमुच क्रोध आता है.....?
मेरी नजर में तो नहीं
क्रोध आता नहीं
बुलाया जाता है
सोच समझ कर
हाँ ! सोच समझ कर
किया जाता है गुस्सा
अपनी सीमा में रहकर......
हाँ ! सीमा में !!!!
वह भी
अधिकार क्षेत्र की ......
तभी तो कभी भी
अपने से ज्यादा
सक्षम पर या अपने बॉस पर
नहीं कर पाते क्रोध
चाहकर भी नहीं......
चुपचाप सह लेते हैं
उनकी झिड़की, अवहेलना
या फिर अपमानजनक डाँट
क्योंकि जानते हैं
कि भलाई है सहने में......
और इधर अपने से छोटों पर
अक्षम पर या अपने आश्रितों पर
उड़ेल देते हैं सारा क्रोध
बिना सोचे समझे.....
बेझिझक, जानबूझ कर
हाँ ! जानबूझ कर ही तो
क्योंकि जानते हैं.....
कि क्या बिगाड़ लेंगे ये
दुखी होकर भी........
तो क्या क्रोध हमारी शक्ति है ?
या शक्ति का प्रदर्शन ?
हाँ! मात्र प्रदर्शन !!!
और कुछ भी नही......
यदि सच को स्वीकारें तो
ये क्रोध है .......
हमारी बौद्धिक निर्बलता/अज्ञानता
जिससे उपजती असहिष्णुता
और फिर प्रदर्शन !
वह भी
अधिकार क्षेत्र की सीमा में........
तो क्रोध आता नहीं ,
बुलाया जाता है.....
........है ना.........
चित्र साभार गूगल से....