कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते
मन हल्का वह कर पायेगी ?
हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ ?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ ?
गर कुछ अच्छा हो जाता है
तो श्रेय तुम्ही को जाता है
इज्ज़त है तुम्हारी परमत भी
उससे कैसा ये नाता है ?
दिन रात की ड्यूटी करके भी
करती क्या हो सब कहते हैं
वह लाख जतन कर ले कोशिश
पग पग पर निंदक रहते हैं ।
खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है ।
सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन
इतिहास वही दुहराती है ।
बेटी को वर देती जल्दी
दुख सहना ही तो सिखाती है
बेटी माटी सी बनकर रहना
यही सीख उसे भी देती है ।