शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

बेटी----माटी सी


soil and daughter connection


कभी उसका भी वक्त आयेगा ?
कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते 
मन हल्का वह कर पायेगी ?

हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ ?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ ?

गर कुछ अच्छा हो जाता है
तो श्रेय तुम्ही को जाता है
इज्ज़त है तुम्हारी परमत भी
उससे कैसा ये नाता है ?

दिन रात की ड्यूटी करके भी
करती क्या हो सब कहते हैं
वह लाख जतन कर ले कोशिश
पग पग पर निंदक रहते हैं  ।

खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक  विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है ।

सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन 
इतिहास वही दुहराती है ।

बेटी को वर देती जल्दी
दुख सहना ही तो सिखाती है
बेटी माटी सी बनकर रहना
यही सीख उसे भी देती है ।

52 टिप्‍पणियां:

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति
बेटी माटी सी बनकर रहना
यही सीख उसे भी देती

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने कहा…

खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है...
बेटियाँ, जो इस समाज की संजोयी निधि की तरह हैं । इनके चतुर्दिक विकास हेतु एक अलग नजरिया होना अति आवश्यक है।
बहुत ही सुंदर रचना, कोमल भावों को पिरोती हुई ।शुभकामनाएं ।

Meena Bhardwaj ने कहा…

बेटी के लिए ममत्व प्रकट करती..., उसके लिए फिक्रमन्द लेकिन साथ ही उसे सर्वांगीण रूप सशक्त बनने की सीख देती सुन्दर रचना ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कभी उसका भी वक्त आयेगा ?
कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते
मन हल्का वह कर पायेगी ?
बहुत सुंदर भाव,सुधा दी।

Anuradha chauhan ने कहा…

सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन
इतिहास वही दुहराती है...... मर्मस्पर्शी रचना

मन की वीणा ने कहा…

बहुत ही शानदार सुधा जी गहन और सार्थक सृजन।

अनीता सैनी ने कहा…

हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ....?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ....?..बेहतरीन सृजन प्रिय सखी
सादर

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ रितु जी! बहुत बहुत धन्यवाद आपका...।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद, पुरुषोत्तम जी !
आपका प्रोत्साहन हमेशा उत्साहित करता है
सादर आभार आपका...।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी!
सस्नेह आभार...

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ ज्योति जी !बहुत बहुत धन्यवाद आपका...।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद, अनुराधा जी!
सादर आभार...

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ कुसुम जी!बहुत बहुत धन्यवाद..।

Sudha Devrani ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

बहुत सुंदर रचना,यथार्थ को भी आइना दिखाती। शुरू से,...... "सहमत हो जो तुम चुप सुनते
मन हल्का वह कर पायेगी ? और फिर अंत तक उसी आगे बढा देती हैं "बेटी को वर देती जल्दी
दुख सहना ही तो सिखाती है
बेटी माटी सी बनकर रहना
यही सीख उसे भी देती है"....

रवीन्द्र भारद्वाज ने कहा…

वाह.....
बेहद भावपूर्ण रचना

रेणु ने कहा…

प्रिय सुधा जी---- सौ में से कुछ ही कम बेटियों की आंतरिक पीड़ा को हुबहु लिख दिया आपने । मेरी दादी, मा ने जो मुझे सिखाया वही मैं बेटी को सिखाने के लिए प्रयासरत हूं। मेरीे दादी कहती थी, थोड़ा खाना ज्यादा करना ये उनकी मा की उन्हे सीख थी तो झुककर हर रीत निभाना ये उनकी सीख थी।, जो निभ जाए तो संस्कार नहीं तो बगावत। माटी सी बेटी ही दुनिया की सर्वोत्तम बहू, बेटी कहलाई है अपने आचरण से उसने यही बात बेटी तक पहुंचाई है। नारी मन की वेदना को खूब लिख दिया आपने। हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद, अनीता जी
सस्नेह आभार...

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार, रविन्द्र जी....

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा रेणु जी! पहले हर माँएं ऐसी ही सीख बेटियों को बचपन से ही देने लगती थी संघर्षमय जीवन स्वयं जीकर बच्चों की प्रेरणा बनती थी...
और बेटी अपनी सुखी गृहस्थी के लिए हर चुनौती
सहती छोटे बड़े सबको सर आँखों पर लेकर माटी सी शान्त बन माँ की सीख पर खरी उतरने की कोशिश करती थी परन्तु अब जमाना बदल रहा है बेटी ससुराल की हर खबर मोबाइल से रोज माँ को दे रही हैं और माँएंं रोज नई सीख.......
सारगर्भित प्रतिक्रिया एवं विमर्श के लिए हृदयतल से धन्यवाद सखी !...
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद भाई !

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

रोती सदियों से तू आई, कभी तो बन जा काली माई !

Sudha Devrani ने कहा…

आपका हृदयतल से धन्यवाद, सर !
सादर आभार...

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' ने कहा…

आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/117.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कई बार सोचता हूँ माँ ऐसा क्यों करती है ... बेटी को माटी क्यों बनाती है ... हर दर्द, दुःख सहने और चुप रखने की सीख क्यों देती है ... फिर ये सोचता हूँ ये सीख गलत नहीं हाँ बेटी के साथ बेटे को भी ऐसी ही कुछ सीख देनी चाहिए माँ को ... शायद समाज आज कुछ और होता ...
मन से निकली हुयी रचना मन तक जाती है ... बहुत गहरा लाजवाब लिखा है ...

Meena sharma ने कहा…

खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है...
मन की बात, गहरी टीस दे गई कलेजे में...सुंदर रचना।

विश्वमोहन ने कहा…

खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है...बस वहीँ बात जो मीनाजी ऊपर कह गयीं. मर्म को छूती हकीक़त बयानी.

Sudha Devrani ने कहा…

आपका हृदयतल से धन्यवाद राकेश जी!
मित्र मंडली में मेरी रचना लिंक करने के लिए...
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा नासवा जी! यही सीख बेटों को भी दी जाय तो समाज आज कुछ और होता...
सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका....
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ मीना जी ! उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका...।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी !आपके आशीर्वचन पाकर बहुत प्रोत्साहित हूँ...
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद, जोशी जी!
सादर आभार...

deepa joshi ने कहा…

अति सुंदर अभिव्यक्ति ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार दीपशिखा जी !...

Atoot bandhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

Kailash Sharma ने कहा…

सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन
इतिहास वही दुहराती है....
... सत्य कहा है...आवश्यकता है आज बेटियों को भी आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की... बहुत मर्मस्पर्शी और सटीक रचना...

M VERMA ने कहा…

बहुत सुंदर भावयुक्त रचना

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद, अटूट बंधन...
आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद, सर!
सादर आभार...

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से आभार, वर्मा जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है...

संजय भास्‍कर ने कहा…

मन से निकली हुयी रचना मन तक जाती है

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद संजय जी !

Ravindra Singh Yadav ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Ravindra Singh Yadav ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव

Satish Rohatgi ने कहा…

Sunder

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 27 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sweta sinha ने कहा…

गहन भाव लिए बहुत सुंदर रचना प्रिय सुधा जी।
सीख हमेशा बेटियों के लिए ही क्यूँ.. .
अब तो समय बदल रहा है , बेटियों के लिए ज़माने की सोच बदलता देखना सुखद होगा।

सस्नेह।

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा आपने प्रिय श्वेता जी!कि अब तो समय बदल रहा है , बेटियों के लिए ज़माने की सोच बदलता देखना सुखद होगा।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नारी की स्थिति को सटीक शब्द दिए हैं ।
सुंदर सृजन ।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, तहेदिल से धन्यवाद आपका।

Radhey ने कहा…

इस लेख को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आप रहस्यों के बारे में जान सकते है

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