शनिवार, 21 अप्रैल 2018

हौले से कदम बढ़ाए जा...


mother holding her daughter


अस्मत से खेलती दुनिया में
चुप छुप अस्तित्व बनाये जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाये जा.....

छोड़ दे अपनी ओढ़नी चुनरी,
लाज शरम को ताक लगा
बेटोंं सा वसन पहनाऊँ तुझको
कोणों को अपने छुपाये जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे 
हौले से कदम बढ़ाए जा....

छोड़ दे बिंंदिया चूड़ी कंगना
अखाड़ा बनाऊँ अब घर का अँगना
कोमल नाजुक हाथों में अब 
अस्त्र-शस्त्र पहनाए जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा.....

तब तक छुप-छुप चल मेरी लाडो
जब तक तुझमेंं शक्ति न आये
आँखों से बरसे न जब तक शोले
किलकारी से दुश्मन न थरथराये
हर इक जतन से शक्ति बढ़ाकर
फिर तू रूप दिखाए जा...
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढाए जा....।।

रक्तबीज की इस दुनिया में
रक्तपान कर शक्ति बढ़ा
चण्ड-मुण्ड भी पनप न पायेंं
ऐसी लीला-खेल रचा  
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा.....

रणचण्डी दुर्गा बन काली
ब्रह्माणी,इन्द्राणी, शिवा....
अब अम्बे के रूपोंं में आकर 
डरी सी धरा का डर तू भगा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे 
हौले से कदम बढ़ाए जा...।




               चित्र : साभार pinterest से...

शनिवार, 14 अप्रैल 2018

लावारिस : "टाइगर तो क्या आज कुत्ता भी न रहा"



two different breed dogs having conversation


हैलो शेरू ! बडे़ दिनों बाद दिखाई दिया,कहाँ व्यस्त था यार ! आजकल ?  (डॉगी टाइगर ने डॉगी शेरू के पास जाकर बड़ी आत्मीयता से पूछा) तो शेरू खिसियाते हुए पीछे हटा और बुदबुदाते हुए बोला; ओह्हो!फँस गया...
अरे यार !  परे हट !  मालकिन ने देख लिया तो मेरी खैर नहीं ,  यूँ गली के कुत्तों से मेरा बात करना मालकिन को बिल्कुल नहीं भाता ,  मेरी बैण्ड बजवायेगा क्या ?..

टाइगर  -  "अरे शेरू! मैं कोई गली का कुत्ता नहीं ! अबे यार ! तूने मुझे पहचाना नहीं  ?  मैं 'टाइगर' तेरे मालिक के दोस्त वर्मा जी का टाइगर !

शेरू (आश्चर्य चकित होकर) -- टाइगर ! अरे ! ये तेरी क्या दशा हो गयी है यार !  कितना कमजोर हो गया है तू  !  मैं तो क्या तुझे तो कोई भी नहीं पहचान पायेगा ।क्या हुआ यार ! बीमार है क्या ?  इलाज-विलाज नहीं करवाया क्या तेरे मालिक ने ?  डींगें तो बड़ी-बड़ी हांकता है तेरा मालिक !  ओह ! माफ करना यार ! अपने मालिक के बारे में सुनकर गुस्सा आ रहा होगा,  हैं न !  मुझे भी आता है  , क्या करे ? वफादार प्राणी जो होते हैं हम कुत्ते... हैं न  ?..

टाइगर -  (पूँछ हिलाते हुए ) सही कहा यार तूने ! वफादार होते हैं हम कुत्ते । पर वफादार सिर्फ हम कुत्ते ही होते हैं यार !  ये मालिक तो सिर्फ मालिक होते हैं , वो भी हृदयहीन....(मुँह फेरते हुए) ।

शेरू - (आश्चर्य चकित होक) 🎂अरे ! टाइगर ! आज तू भी मालिकों के बारे में ऐसा बोल रहा है ?....  कुत्ते वाली वफादारी छोड़ना चाहता है क्या ? हैं हैं...(हँसते हुए)
मेरा मतलब मैं तो पहले से ही थोड़ा भड़बोला टाइप का ठहरा पर तू तो शरीफों में आता है। हैं न !  (टाइगर की तरफ देखते हुए मजाकिया अंदाज में)

टाइगर--(उदास होकर) अरे नहीं यार शेरू! शरीफ-वरीफ तो छोड़ , ये बता मैं क्या करूँ ? बहुत परेशान हूँ यार ! अब तुझसे क्या छुपाऊँ. , यार मेरी तो दशा ही खराब है । आज मैं टाइगर तो क्या कुत्ता भी न रहा यार !  बहुत बुरे हालात हैं यार मेरे !

(शेरू कुछ कहता तभी उसकी मालकिन की आवाज सुनाई दी )--- शेरू ! शेरू ! आवाज सुनकर शेरू हड़बड़ाकर बोला ; यार भाई टाइगर ! मालकिन बुला रही है ,जाना पडे़गा यार ! थोड़ी देर की तो मेरी खैर नहीं ।  आजकल मेरी मालकिन को गुस्सा बहुत आता है,जब से उन्हे बी.पी.की बिमारी हुई बड़ी चिड़चिड़ी सी हो गयी हैं,मुझे तो क्या अपने बच्चों को भी नहीं बक्शती ।
कल सुबह मिलते हैं यार सामने वाले पार्क में,  मेरे मालिक मुझे लेकर घूमने आते हैं वहीं आना, ठीक है न ।

टाइगर - (अनमने से) ठीक है,मैं इन्तज़ार करुंगा।
(फिर दोनों ने बड़ी आत्मीयता से दुम हिलायी और शेरू दुम दबाके भागा)

सुबह-सुबह  शेरू अपने मालिक के साथ पार्क पहुंचा, मालिक ने शेरू के गले से पट्टा खोल दिया, और खुद भी पार्क में सैर करने लगा।

सामने बैंच के नीचे से टाइगर को निकलता देख शेरू बोला "हैलो टाइगर ! कमाल है! तू तो मुझसे पहले ही पहुँच गया"! ?

टाइगर (दुखी होकर)--  पहुँचना कहाँ से यार ?  मैं तो यहीं था रात भर ।

शेरू -- (आश्चर्य से आँखें फाड़ते हुए)-- यहीं था ! मतलब ? घर पर नहीं था ? क्या हुआ टाइगर ! तेरे मालिक ने तुझे घर से निकाल दिया क्या ?

टाइगर - (दुखी होकर) हाँ यार ! उन्होंने मुझे त्याग दिया।उनका तबादला हो गया दूसरे शहर मे । वहाँ वे मुझे नहीं ले गये  (अपने आगे के पंजे फैलाकर सिर पंजों में टिकाते हुए) क्या करूँ यार! मैं तो लावारिस और बेघर हो गया हूँ । (कहते हुए उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े) ।

 शेरू - (बहुत दुखी होकर उसके करीब जाते हुए)-- ओह ! ये तो बड़े दुख की बात है ! समझ नहीं आ रहा तेरे मालिक ने ऐसा क्यों किया  ?  वैसे तो बड़ी परवाह करता था वो तेरी, ओह्हो !  फिर अब क्या कर रहा है तू ? कहाँ रहता है ? किसी पड़ौसी ने पनाह दी क्या ?

टाइगर-- नहीं यार ! कोई पूछता भी नहीं ,बची-खुची रोटी ऐसे फैंकते हैं जैसे गली के आवारा कुत्तों के लिए फैंक रहे होंगे, साथ में न दूध न कुछ और ।  अब गली के कुत्तों सी आदत तो है नहीं अपनी, कि जो मिले सो खा लूँ,   सूखी रोटी गले से कहाँ उतरती है ।  बुरा हाल है यार !

शेरू - (सहानुभूति के साथ जीभ से उसे चाटते हुए) --शिकार-विकार कुछ कर यार ! जीने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा ! है,न । तेरी गली में चूहे, बिल्ली तो खूब हैं । दबोच लिया कर !

टाइगर --  क्या बताऊँ शेरू मेरे मालिक तो शाकाहारी थे, उनके साथ रहकर  मैं भी शाकाहारी हो गया , इन चूहे बिल्लियों पर तो मुझे बहुत ही दया आती है, अब ये सब कैसे ?

शेरू -- ओह ! यार क्या होगा तेरा ? मुझे तेरे लिए बहुत दुख हो रहा है।

टाइगर --  (दुखी होकर) क्या करूँ यार ! हमेशा टाइगर बनकर खूब भौंका मैं गली के तमाम कुत्तों पर,
मेरी गली में तो एक भी आवारा कुत्ता नहीं आ पाता था मेरे डर से । ये देख न ! इंसानों के साथ रहकर उन्हीं की भाषा बोल रहा हूँ । अपनी ही जाति को आवारा कह रहा हूँ,आज वे ही कुत्ते शेर बनकर मुझ पर भौंक रहे हैं,और  मैं उनसे डर रहा हूँ, क्या करूँ ? अब उन्हींं की टीम में जाना चाहता हूँ पर उन्हें तो मुझसे बहुत चिढ़ है ।नहींं शामिल कर रहे हैं वे मुझे अपनी टीम में । गलती मेरी ही थी इन्सानों के बल पर अपनी जाति से दुश्मनी जो मोल ली । देख न आज कितना तन्हा हो गया हूँ ,मालिक और उनके बच्चों की बहुत याद आती है ,उन्होंने तो कितनी जल्दी मुझे भुला दिया, (क्यांऊं-क्यांऊं  करते हुए टाइगर बुरी तरह रोने लगा)।

शेरू-- (अपना एक पंजा उठाकर टाइगर की गरदन पर रखकर अपनी लम्बी पतली जीभ से उसे चाटते हुए) ---हाँ यार ! कैसे भुला दिया उन्होंने तुझे ! एक बार भी नहीं सोचा कि उनके बाद तेरा क्या होगा ? पर तू चुप हो जा /सब ठीक हो जायेगा.। भगवान पर भरोसा रख अब वे ही कुछ करेंगे।

 टाइगर--  हाँ यार ठीक कहा तूने अब भगवान ही कुछ करेंगे ।  ये इन्सान तो भरोसे के काबिल ही नहीं हैं
बड़े स्वार्थी होते हैं , भाई-बहनो से मुँह मोड़ देते हैं ,बूढे माँ-बाप को छोड़ देते हैं.।
जब इन्सान इन्सान का ही नहीं होता तो हम कुत्तों का क्या होगा ?....हमें तो अपने बड़प्पन और शौक के लिए पालते हैं ये ।(मुँह बिचकाते हुए)

शेरू--   बिल्कुल ठीक कह रहा है टाइगर तू ....पहले तो ये लोग हमसे घर की रखवाली की उम्मीद करते थे,
अब तो उसकी भी जरूरत नहीं रही...जगह-जगह पुलिस-चौकी, सड़कों पर ,  गली-गली में या फिर घर-घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं । धन भी बैंक में जमा ः कौन चोर आयेगा ? और कैसे आयेगा ? क्या लेके जायेगा ? भला अब हमारी क्या जरूरत ?......
हमें तो शौक और बड़प्पन के लिए पाल रहे हैं ये मालिक ।  अपनी सहूलियत के हिसाब से रख लिया
जब मन न हो तो छोड़ दिय.हम ही हैं जो मालिक और उनके परिवार से दिल लगा बैठते हैं उन्हें अपना समझ लेते है ।

तभी मालिक की आवाज आती है शेरू ! शेरू !
ओह ! यार टाइगर ! क्या करूँ जाना पड़ेगा .बहुत बुरा लग रहा है तेरे लिए...। (दुम हिलाते हुए)
अपना ख्याल रखना यार ! गली के कुत्तों से मेल-मिलाप बढ़ाने की कोशिश करना ।उनसे मिलकर बाहर के माहौल में जीने के तरीके सीखना । अकेले कैसे रहेगा..? है न ।

टाइगर --  (अपने पंजों से आँसू पौंछते हुए)  ठीक है शेरू ! तूने मेरा दुख बाँटा शुक्रिया !अब तू जा अलविदा !
शेरू भी अलविदा कहकर मालिक के पास जाकर उसके पैर सूंघने लगता है, मालिक उसके गले में पट्टा डाल कर उसे ले जाता है ।
टाइगर वहीं खड़ा- खड़ा सोचता है जब पहली बार ये पट्टा पहना था तो  कितना बुरा लगा था, सोचता था कब आजादी मिलेगी इस पट्टे से ,आज तरस रहा हूँ इस पट्टे के लिए । इस पट्टे के बिना लावारिस जो हो गया हूँ।



                                    चित्र:साभार गूगल से.....





शनिवार, 7 अप्रैल 2018

अधूरी उड़ान


girl tied with ropes(expressing helplessness of a women not being able to fulfill her dreams)

एक थी परी
हौसला और उम्मीदों
के मजबूत पंखों से
उड़ने को बेताब
कर जमाने से बगावत
पढ़कर जीते कई खिताब
विद्यालय भी था सुदूर
पैदल चलती रोज मीलों दूर
अकेले भी निर्भय होकर
वीरान जंगली,ऊबड़-खाबड़
पहाड़ी राहों पर
खूंखार जंगली जानवर भी
जैसे साथी बन गये थे उसके
हर विघ्न और बाधाएं
जैसे हार गयी थी उससे
कदम कदम की सफलता पाकर
पंख उसके मजबूत बन गये
उड़ान की प्रकिया के लिए
पायी डिग्रियां सबूत बन गये
एक अनोखा व्यक्तित्व लिए
आत्मविश्वास से भरपूर
बढ़ रही थी अनवरत आगे
कि मंजिल अब नहीं सुदूर
तभी अचानक कदम उसके
उलझकर जमीं पर लुढ़क गये
सम्भलकर देखा उसने हाय!
आँखों से आँसू छलक गये
आरक्षण रूपी बेड़ियों ने
जकड़ लिए थे बढ़ते कदम
उड़ान भरने को आतुर पंखों ने
फड़फड़ तड़प कर तोड़ा दम।।





               चित्र;साभार गूगल से...

मरे बिना स्वर्ग ना मिलना

 कंधे में लटके थैले को खेत की मेंड मे रख साड़ी के पल्लू को कमर में लपेट उसी में दरांती ठूँस बड़े जतन से उस बूढ़े नीम में चढ़कर उसकी अधसूखी टहनिय...