लौट आये फिर कहीं प्यार
सांझ होने को है, रात आगे खड़ी। बस भी करो अब शिकवे, बात बाकी पड़ी । सुनो तो जरा मन की, वह भी उदास है । ऐसा भी क्या तड़पना अपना जब पास है । ना कर सको प्रेम तो, चाहे झगड़ फिर लो । नफरत की दीवार लाँघो, चाहे उलझ फिर लो । शायद सुलझ भी जाएंं, खामोशियों के ये तार । लौट आयेंं बचपन की यादें, लौट आये फिर कहीं प्यार ? खाई भी गहरी सी है, चलो पाट डालो उसे । सांझ ढलने से पहले, बगिया बना लो उसे । नन्हींं नयी पौध से फिर, महक जायेगा घर-बार । लौट आयें बचपन की यादें, लौट आये फिर कहीं प्यार ? अहम को बढाते रहोगे, स्वयं को भुलाते रहोगे । वक्त हाथों से फिसले तभी, कर न पाओगे तुम कुछ भी सार । लौट आयें बचपन की यादें लौट आये फिर कहीं प्यार ? ढले साँझ समझे अगर बस सिर्फ पछताओगे बस में न होगा समय फिर क्या तुम कर पाओगे आ भी जाओ जमीं कह रही अब गिरा दो अहम की दीवार लौट आयें बचपन की यादें लौट आये फिर कहीं प्यार ? लौट आओ वहींं से जहाँँ हो, बना लो पुनः परिवार लौट आयेंं बचपन की यादें, लौट आये फिर कहीं प्यार ? चित्र साभार गूगल से......