गुरुवार, 22 जून 2017

समय तू पंख लगा के उड़ जा......




माँँ !  मुझे भी हॉस्टल में रहना है,मेरे बहुत से दोस्त हॉस्टल में रहते हैं, कितने मजे है उनके !....हर पल दोस्तों का साथ नहीं कोई डाँट-डपट न ही कोई किचकिच । मुझे भी जाना है हॉस्टल, शौर्य अपनी माँ से कहता तो माँ उसे समझाते हुए कहती "बेटा ! जब बड़े हो जाओगे तब तुम्हे भी भेज देंगे हॉस्टल ।फिर तुम भी खूब मजे कर लेना" ।
समझते समझाते शौर्य कब बड़ा हो गया पता ही नहीं चला, और आगे की पढ़ाई के लिए उसे भी हॉस्टल भेज दिया गया। बहुत अच्छा लगा शुरू-शुरू में शौर्य को हॉस्टल मेंं ।परन्तु जल्दी ही उसे घर और बाहर का फर्क समझ में आने लगा ।
अब वह घर जाने के लिए छुट्टियों का इन्तजार करता है,और घर व अपनोंं की यादों में कुछ इस तरह गुनगुनाता है ।



समय तू पंख लगा के उड़ जाकर
उस पल को पास ले आ ।
जब मैंं मिल पाऊँ माँ -पापा से ,
माँ-पापा मिल पायें मुझसे
वह घड़ी निकट तो ला !
समय तू पंख लगा के उड़ जा ।

छोटे भाई बहन मिलेंगे प्यार से मुझसे,
हम खेलेंगे और लडे़ंगे फिर से ।
वो बचपन के पल फिर वापस ले आ !
समय तू थोड़ा पीछे मुड़ जा !

तब ना थी कोई टेंशन-वेंशन ना था कोई लफड़ा,
ना आगे की फिकर थी हमको ना पीछे का मसला।
घर पर सब थे मौज मनाते खाते-पीते तगड़ा ।
खेल-खेल में हँसते गाते या फिर करते झगड़ा ।

माँ-पापा की डाँट डपट में प्यार छिपा था कितना !
अपने घर-आँगन में हम सब मौज मनाते इतना 
उन लम्होंं को रात नींद में रोज बना दे सपना !
समय तू कुछ ऐसा कर जा !
समय तू पंख लगा के उड़ जा।
मैं मिल पाऊँ अपनों से वह घड़ी निकट ले आ।
समय तू पंख लगा के उड़ जा !
     

5 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है...
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका । रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

माँ - बाप की टोका टाकी से बच्चों को आज़ादी चाहिए होती है लेकिन जब अलग रहना पड़ता है तब पता चलता है कि घर और बाहर रहने में क्या अंतर है ।

Kamini Sinha ने कहा…

कविता और कहानी के माध्यम से बच्चों के मनोदशा का सुन्दर वर्णन 🙏

मन की वीणा ने कहा…

बचपन, माता-पिता और मायका कितनी भी उम्र हो यादों से कहां छूट पाया है।
हृदय स्पर्शी रचना।

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