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मई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बीती ताहि बिसार दे

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  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

क्रिकेट जैसे खेल अमीरों के चोंचले

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  कन्स्ट्रक्शन एरिया में अकरम को देख शर्मा जी ने आवाज लगाई , "अरे अकरम ! बेटा आज तुम ग्राउण्ड में नहीं गये ? वहाँ तुम्हारी टीम हार रही है"। "नमस्ते अंकल ! नहीं, मैं नहीं गया" । (अकरम ने अनमने से कहा) तभी बीड़ी सुलगाते हुये कमर में लाल साफा बाँधे एक मजदूर शर्मा जी के सामने आकर बोला, "जी सेठ जी ! क्या काम पड़े अकरम से ? मैं उसका अब्बू" । "अरे नहीं भई, काम कुछ नहीं, वो,, मैं इसे क्रिकेट खेलते देखता हूँ । बहुत अच्छा खेलता है ये।  क्या कैच पकड़ता है !  बहुत बढ़िया !  क्रिकेट में आगे बढ़ाओ इसे। खूब खेलने दो। नाम रोशन कर देगा ये लड़का तुम्हारा ! शर्मा जी अकरम की तारीफों के पुल बाँधने लगे।  बड़ा सा कश भर बीड़ी को पत्थर पे बुझा वापस माचिस की डिबिया में रख,  कमर का साफा खोलकर सिर में बाँधते हुए मजदूर मुस्कुराकर बोला, "हाँ सेठ जी ! कैच तो बढ़िया पकड़े ये ! तभी तो आज से काम पर ले आया इसे ।  वो देखो ! फसक्लास ईंटा कैच कर रिया" । पहले माले में खड़ा अकरम बेसमेन्ट से फैंकी ईंटें बड़े अच्छे से कैच कर रहा था, बिल्कुल क्रिकेट बॉल की तरह । उसे देखते हुए शर्मा जी बोले ,  ...

आत्महत्या : माँ मेरी भी तो सुन लिया करो !

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  "माँ !  मैं बहुत परेशान हूँ , आप आ जाओ ना यहाँ मुझे मिलने, मुझे आपसे बात करनी है" । "बेटा परेशानियां तो आती जाती रहती हैं जीवन में , इनसे क्या घबराना । और मैं तेरे ससुराल आकर क्या करूँगी ! तेरे ससुराली मुझे देखकर पता नहीं क्या सोचेंगे, कहीं और न चिढ़ जायें ।  वैसे मैंने पंडित जी से तेरी और दामाद जी की कुण्डली दिखाई ।  कुछ ग्रहदोष हैं तो कल ग्रहशांति के लिए जप करवा रही हूँ, तू चिंता न कर ग्रहशांति के बाद सब ठीक हो जायेगा । सब्र से काम ले" । "माँ !  मैं जब भी आपसे बात करती हूँ आप पंडित और ग्रहदोष की बातें करने लगते हो , कभी मेरी भी तो सुन लिया करो ना" !   (माँ की बात बीच में काट कर सुषमा ने नाराज होते हुए कहा और फोन रख दिया) शीला को उसकी बहुत फिक्र थी परन्तु बेटी के घर का मामला है हमारे हस्तक्षेप से बात और ना बिगड़ जाय, यही सोचकर ना चाहते हुए भी टाल रही थी उसे। अगले दिन शीला ने मंदिर में  ग्रहशांति की पूजा रखवायी और बेटी के घर की सुख-शांति के लिए उपवास रखकर पूजन में बैठी ही थी कि तभी सुषमा का फोन आया । "माँ ! मैं बड़ी मुश्किल से इधर-उधर के बहाने बनाक...

लघु कविताएं - सैनर्यु

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  धार्मिक परम्पराओं एवं रीति रिवाजों पर बने हायकु सैनर्यु कहलाते हैं । हायकु की तरह ही सत्रह वर्णीय इस लघु कविता में तीन पंक्तियों में क्रमशः पाँच, सात, पाँच वर्णों की त्रिपदी में भावों की अभिव्यक्ति होती है।अतः सैनर्यु भी हायकु की तरह एक लघु कविता है जिसमें लघुता ही इसका गुण है और लघुता ही सीमा भी । प्राकृतिक बिम्ब एवं कीगो (~)  की अनिवार्यता के साथ कुछ सैनर्यु पर मेरा प्रथम प्रयास--   【1】 अक्षय तीज~ मूर्ति निकट खत रखे विद्यार्थी 【2】 ईद का चांद~ बालक मेमने को गोद में भींचे 【3】 कार्तिक साँझ~ पालकी में तुलसी बाराती संग 【4】 कार्तिक साँझ~ कदली पात पर हल्दी अक्षत 【5】 दुर्गा अष्टमी ~ बकरा सिर लेके मूर्तिपूजक 【6】 विवाहोत्सव~ शीश पे घट लिए धार पूजन (धार = पानी का प्राकृतिक स्रोत) एक नजर निम्न लिंक पर भी 👇🙏 वक्त यही अब बोल रहा है

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