बुधवार, 30 जून 2021

मोहजाल

Mohjal story

छोटा ही था प्रमोद जब उसके पिता देहांत हुआ बस माँ तक सिमटकर रह गयी थी उसकी दुनिया।

माँ ने ही उसे पढ़ा- लिखा कर काबिल इंसान बनाया ।   
बहुत प्यार और सम्मान था उसकी नजरों में माँ के लिए। माँ की उफ तक सुनकर उसकी तो जैसे रुह ही काँप जाती ।
बस माँ के इर्द गिर्द ही घूमता रहता । खूब ख्याल रखता माँ का। आखिर माँ के सिवाय उसका था भी कौन।

माँ भी बहुत खुश रहती थी उससे। 
अपने बेटे की काबिलियत और सेवाभाव का बखान करते करते मन नहीं भरता था उसका । जिससे भी कहती साथ में उसके रिश्ते की भी बात करती ।
 बस अब घर बस जाय मेरे प्रमोद का ।  सुन्दर सी लड़की मिले तो हाथ पीले कर अपना फर्ज निभा गंगा नहा आऊँ । 
और सुन ली भगवान ने उसकी । देखते ही देखते रिश्ता पक्का हुआ और फिर चट मँगनी पट ब्याह ।
प्रमोद अब अपनी दुनिया में व्यस्त हो गया।

मोह का जंजाल भी कैसा रचा है न ऊपर वाले ने।
जीते जी कहाँ खतम होता है।  पहले बेटे के ब्याह का फिर पोते-पोती का मोह , और फिर उन्हें बड़ा होते हुए देखने का । 

माँ - बेटे की छोटी सी दुनिया अब कुछ पसरने लगी । और साथ ही बदलने लगे प्रेम के एहसास भी।

माँ के प्रति भी उसका प्यार कम तो नहीं हुआ हाँ बँट जरूर गया था । माँ के साथ-साथ पत्नी और बच्चों में भी । 

अब गृहस्थी है तो झमेले भी हैं और जिम्मेदारियाँ भी । प्रमोद भी इन्हीं झमेले और जिम्मेदारियों में ऐसे उलझा कि इन्हें सुलझाने के अलावा कभी कुछ और न सोचा ना ही सूझा ।

उसकी मेहनत और लगन एवं माँ की छत्र-छाँव में उसकी गृहस्थी की गाड़ी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ ही रही थी, कि एक साँझ जब वह घर लौटा तो पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों के बीच सुबकते बीबी-बच्चे एवं जमीन में सफेद कफन ओढ़े चिरनिंद्रा में सोयी माँ को देख उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। आसमान मानों उसके सर पर उतर आया। 

मानव जीवन के इस शाश्वत सत्य की उसने अपनी माँ के बारे में कभी कल्पना भी नहीं की थी । माँ की आकस्मिक मौत से उसका मानसिक संतुलन डगमगाने लगा।उसके बचपन और पिता की मौत का हर दृश्य उसकी आँखों के सामने जीवंत हो उठा। 
जब पिता की बीमारी और घर की आर्थिक बेबसी उसके बालमन को कचोटती कि काश....
तब माँ उसे गले से लगाकर कहती बेटा ! जाने वाले को कौन रोक सकता है भला..? उनके नसीब में जो था वही हुआ । तू दिल छोटा मत कर जब तू बड़ा होगा न तब सब ठीक हो जायेगा...।

और अब माँ ! ....माँ ने तो कभी कुछ बताया भी नहीं कि वह अस्वस्थ है । फिर कैसे...?  माँ कैसे छोड़ सकती है मुझे ?...माँ जानती है न पापा के बाद तेरे सिवाय कौन है मेरा ?...और अब तो मैं बड़ा होकर सब ठीक भी कर रहा हूँ न, तो इलाज भी करवाता न तेरा....तू बताती तो सही...क्यों नहीं बताया माँ !...? 
दो बच्चों का पिता अपनी माँ के निश्चेत देह से लिपट  छोटे बच्चे की तरह बिलख - बिलख कर रो रहा था।  मन ही मन पछता रहा था ,वह खुद को कोस रहा था कि मैंने माँ को समझा क्यों नहीं , उसके बिना बोले ही डॉक्टर को दिखाया क्यों नहीं । सब मेरी गलती है...माँ माफ कर दे मुझे......

चाँद की चाँदनी में मेरी नजरों मे थी
माँ के चेहरे की सलवट दिखाई न दी।

मैं अपनी ही दुनिया में यूँ व्यस्त था
जिन्दगी थी नयी सी,और मैं मस्त था
वक्त कब यूँ बढ़ा, ये पता ना चला
मैंं पति फिर पिता बनके अलमस्त था

मैंने पूछा नहीं माँ ने बोला नहीं
माँ किधर खप रही मैंने सोचा नहीं
मेरी अपनी ही दुनिया के लफड़े बहुत
मैं उलझता रहा, माँ सुलझाती रही

नन्हे बच्चे की गूँजी जब किलकारियां
तो कराहना कभी माँ का सुन ना सका
वो कराहके ही सब कुछ निभाती रही
मेरी खुशियों में निज दुख भुलाती रही

मेरे अब की और कल की फिकर थी उसे
पाई-पाई बचाकर जुगाती रही
दर्द जोड़ों के अपने भुला करके माँ
नाती-पोतों संग वो मुस्कराती रही

आज चुप सो गयी फिर उठी न कभी
अनसुना कर गयी, मेरी आवाज को
पहले देखा न उसका ये पत्थर सा दिल
मैं बुलाता रहा माँ रुलाती रही

एक अवसर दिया ना मुझे आज क्यों 
ऐसा अपराध क्या मैंने अब कर दिया
उम्र भर अपने आँचल सहेजा मुझे
आज सब छाँव से दूर क्यों कर दिया

तेरे बिन माँ न जीवन मैं जी पाउँगा
मैं नहीं दूर तुझसे माँ रह पाउँगा
तेरे बिन अब सुबह ही कहाँ हो रही
इस अँधेरे में डरकर किधर जाउँगा

सोचा ना मैंने यूँ दूर जाओगी माँ !
जैसे ननिहाल से लौट आओगी माँ !
झिड़कियों में छुपा करके निज लाड को
मेरी गलती मुझी से गिनाओगी माँ !

सोचा ना मैने यूँ दूर जाओगी माँ !

तेरे बिन माँ ये जीवन जीवन कहाँ
अब तेरे बिन मुझे भी क्या रहना यहाँ
तेरे बिन यूँ तड़पता हूँ,  देखो न माँ !
तेरे बिन मेरा जीवन जीवन कहाँ?

माँ के बिछोह और दर्द की इम्तिहा में जीवन के प्रति विरक्ति अपने चरम पर पहुँची कि तभी नन्ही कोमल उँगलियों की छुवन का एहसास दोबारा जीवन में लौटा लाया। आँसुओं की बरसात और दुख के घने कोहरे के पार खड़े अपने मासूम से बच्चे और उनके प्रति जिम्मेवारियाँ और अपने फर्ज......

आज वह समझ पाया कि पिता को खोने के बाद माँ भी इसी तरह जीवन जीने को विवश हुई होंगी मेरे खातिर।

और साथ ही समझ पाया उस कलाकार की महिमा को। जिसने जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य का ज्ञान कराकर भी जीवन के प्रति आसक्ति का ऐसा मोहजाल रचा है कि अवश्यंभावी मृत्यु को अनदेखा कर रच बस रहा है उसका ये संसार।
   

  चित्र साभार;pixabay.com से...

बुधवार, 23 जून 2021

घिंडुड़ी (गौरैया)

       

Sparrow

               चित्र साभार, pixabay.com से....


गढ़वाली भाषा में लिखी मेरी 'पहली कविता' एवं उसका हिन्दी रूपांतरण भी....।


हे घिंडुड़ी! दिखे ने तू!

बोल घिंडुड़ी कनै गे तू !!


छज्जा अडग्यूँ घोल पुराणु

कन ह्वे तेकुण सब विराणु

एजा घिंडुड़ी ! सतै ना तू

बोल घिंडुड़ी कनै गे तू !!


झंग्वर सरणा चौक मा दद्दी

चूँ-चूँ करीकि वखी ए जदी

खतीं झंगरयाल बुखै जै तू

बोल घिंडुड़ी कनै गे तू !!


त्वे बिना सुन्न हुँईं तिबारी

रीति छन कन  गौं-गुठ्यारी

छज्जा निसु घोल बणै जै तू

बोल घिंडुड़ी कनै गे तू !!


बिसकुण सुप्पु उंद सुखणा

खैजा कुछ बिखरैजा तू !

बोल घिंडुड़ी कनै गे तू !!


हे घिडुड़ी दिखे ने तू !

कख गेई बतै दे तू !!


तपती माटी सह नि पायी

टावरुन दिशा भटकायी

नयार सुखेन त रै ने तू

लुकीं छे कख बतै दे तू !!


आ घिंडुड़ी!

चौक म नाज-पाणि रख्यूँ च

हुणतालि डाल्यूँ क छैल कर्यूं च

निभा दगड़,  रुलै न तू

न जा कखि ,  घर एजा तू


एजा घिंडुड़ी ! एजा तू

प्यारी घिंडुड़ी!  एजा तू !!


प्रस्तुत कविता जाने - माने वरिष्ठ  ब्लॉगर एवं लेखक आदरणीय विकास नैनवाल 'अंजान' जी द्वारा संपादित ई पत्रिका 'लिख्वार' में प्रकाशित की गई है ।  इसके लिए मैं उनका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ ।   

ई पत्रिका लिख्वार में कविता का लिंक निम्न है....

https://likhwar.blogspot.com/2021/06/ghindudi-garhwali-poem-by-sudha-devrani.html


कविता का हिन्दी रूपांतरण----

            

            गौरैया(घिंडुड़ी)

हे गौरैया ! दिखाई नहीं देती तू !

    बोल गौरैया !कहाँ गयी तू !!


छज्जे में फँसे हैं तेरे घोंसले पुराने

कैसे हो गये हम सब तेरे लिए विराने   

आजा गौरैया! सता न तू!

बोल गौरैया ! कहाँ गयी तू !!


झंगोरा बीनती आँगन में दादी

चूँ-चूँ करके वहीं आ जाती

गिरे झंगरयाल खा जा तू !

बोल गौरैया !कहाँ गयी तू !!


तेरे बिना सूनी है तिबारी

खाली लगती हैं गौं-गुठ्यारी 

छज्जे के नीचे घोंसला बना दे तू!

बोल गौरैया !कहाँ गयी तू !!

 

सूप में सुखाने रखे अनाज को 

कुछ खा जा कुछ बिखरा जा तू !

कहाँ छुप गयी बता दे तू !!


धरती का तापमान सह न पायी

मोबाइल टावरों ने दिशा भटकायी

नदियाँ सूखी , न रह गयी तू !

कहाँ चली गयी बता दे तू !!


आ गोरैया !

आँगन में दाना-पानी रखा है

सुन्दर डालियों की छाया की है

साथ निभा ले , रुला मत तू !

 मत जा कहीं , घर आ जा  तू !

आ जा गौरैया! आ जा तू !!


आ जा गौरैया ! आ जा तू !

प्यारी गौरैया! आजा तू !


विरण (विराने)= पराये

झंगोरा = बारीक धान

सारती = बीनती (भूसा अलग करना)

झंगरयाल =भूसा अलग किया हुआ बारीक धान

गौं-गुठ्यार= गाँव की गौशाला (जहाँ गोरैया गोबर से कीड़े चुगती है)


रविवार, 20 जून 2021

बिना आपके भला जिंदगी कहाँ सँवरती

happyfathersday


पिता दिवस पर आज आपकी यादें लेकर,

हुई लेखनी मौन बस आँखें हैं बरसती ।


वो बीता बचपन दूर कहीं यादों में झिलमिल

झलक आपकी बस माँ की आँखों में मिलती।


वीरानी राहों में तन्हा सफर हमारा,

हर बढें कदम पर ज्यों शाबाशी आप से मिलती ।


मन का हौसला बन के हमेशा साथ हो पापा !

बिना आपके भला जिन्दगी कहाँ सँवरती ।


ना होकर भी सदा अवलम्बन रहे हमारे,

पिता से बढ़कर कौन प्रभु की पूजा बनती ।


हर पल अपने होने का एहसास कराया,

मन आल्हादित पर दर्शन को आँख तरसती ।


हर इक जन्म में पिता आप ही रहें हमारे,

काश प्रभु से जीते जी यह आशीष मिलती ।।


        चित्र , साभार photopin.com  से...



मंगलवार, 15 जून 2021

बदलती सोच 【2】

guldaudi (chrysanthemum)flower


आज शीला कुछ और सहेलियों के साथ विमला के घर बिन बताए पहुँची उसे सरप्राइज देने... लेकिन दरवाजे पर उसके पति नीलेश को देख  सभी के मुँह लटक गये...।

ओह! नीलेश जी आप! ?...सबके मुँह से एक साथ निकला....

जी ! क्यों... मेरा मतलब ,..नमस्ते... आ..आइए...! आइए न..! आ..आप बाहर क्यों हैं ...नीलेश ने हकलाते हुए कहा।

वो... सॉरी नीलेश जी ! हमें लगा कि आप भी अब ऑफिस जाने लगे होंगे...। लॉकडाउन तो अब खत्म हो गया न...।   तो हम विमला से मिलने आ गये बिन बताए......सोचा सरप्राइज देंगे उसे.......पर कोई नहीं हम अभी चलते हैं फिर कभी आयेंगें... माफ करना आपको डिस्टर्ब किया" हिचकिचाते हुए शीला बोली।

अरे नहीं ! डिस्टर्ब कैसा !!  डिस्टर्ब जैसी कोई बात ही नहीं !..आप सभी ने बहुत अच्छा किया ..आइए न..... दीजिए उसे सरप्राइज!!..वो पीछे गेस्ट रूम की सफाई कर रही है......। आप सभी को देखकर सचमुच बहुत खुश एवं आश्चर्यचकित हो जायेगी। वैसे भी कब से बोर हो रहे हैं सब घरों में कैद होकर...।

(नीलेश उन सब को गेस्ट रूम तक छोड़ आये)

अचानक सभी सहेलियों के देखकर विमला सचमुच चौंक गयी,बड़ी खुशी-खुशी हालचाल पूछते हुए सबको बिठाया....।

तो एक सखी बोली ;  "विमला हमें नहीं पता था कि नीलेश जी घर पर हैं हम बिन बताए आ गये, चल अब मिल लिए न हम सब।  अब हमें चलना चाहिए....हैं न ! और सब उसकी की हाँ में हाँ मिलाकर उठने लगे।

"अरे! ऐसे कैसे.....?.. अब आ गये तो बैठना तो पड़ेगा ही ..चलिये आप सब बैठिये  ! मैं अभी चाय नाश्ता लेकर आती हूँ" ।  कहकर विमला जैसे ही निकलने लगी सखियों ने उसका हाथ पकड़कर उसे बिठा दिया और बोली ; "नहीं नहीं...इसकी कोई जरुरत नहीं , वैसे तो हमें निकलना चाहिए पर तुम जिद्द कर रही हो तो थोड़ी देर रुक जाते हैं और गप्पें मारते है यार ! कोई चाय-वाय नहीं....तुम बैठो हमारे साथ। चाय बनाने चली गयी तो गपशप कैसे होंगी हमारी, हैं न"...?   "हाँ सही बात है"  कहकर सब हँसने लगे।

"और अगर चाय-नाश्ता बना बनाया मिल जाय तो ?   गपशप में कोई व्यवधान भी नहीं होगा , है न... दरवाजे पर चायनाश्ते की ट्रे हाथ में लिए नीलेश ने हँसते हुए मजाकिया लहजे में कहा ।

"अरे! नीलेश जी ! ओह !...आपने क्यों कष्ट किया"?...नीलेश को देखकर सब एक साथ सकुचाते हुए  हिचकिचाकर  बोली।

विमला ने झट से नीलेश के हाथ से ट्रे ली और बोली,  "मैं आ ही रही थी आपने क्यों ? ओह! (अफसोस और हिचक उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था)

उन सबकी मनोस्थिति भाँपकर नीलेश अपनी पत्नी विमला के और करीब आकर बड़े प्यार से बोला; "श्शश.. क्यों...मैं क्यों नहीं ? जब मेरे दोस्त घर पर आते हैं,  तो आप भी इसी तरह लाती हैं न हमारे लिए चाय नाश्ता!.. फिर मैं ले आया तो कष्ट कैसा...?

हाँ ! ऐसा मैंने पहले कभी नहीं किया इस गलती का एहसास हो गया है मुझे....पर वो कहते हैं न जब जागो तभी सवेरा ! (मुस्कुराते हुए)

बस समझो कि मैं भी अभी - अभी जागा हूँ...। अब आप सभी बेफ्रिक होकर आराम से गपशप करते हुए चाय-नाश्ता कीजिए "। 

हाथ में ट्रे लिए विमला मन्त्रमुग्ध सी पति को देखती ही रह गयी...आश्चर्य खुशी और ढ़ेर सारा प्यार उसकी आँखों में साफ झलक रहा था और सभी सखियों की नजरों में नीलेश के लिए सम्मान।



बुधवार, 9 जून 2021

पिज्जा का भोग

 

Pizza

"अभी कोई नहीं खायेगा, पहले मुझे भगवान जी को़ भोग लगाने दो" विक्की डाइनिंग टेबल में रखे पिज्जा से एक पीस उठाते हुए बोला, तो माँ  उसे समझाते हुए बोली ;...

"बेटा! ये प्रसाद नहीं जो भोग लगाएं, और किस खुशी में भोग लगाना है तुम्हें....?     बता दिया होता हम थोड़े पेड़े ले आते। पर तुमने तो पिज्जा मंगवाया था न"।

"हाँ मम्मी ! पिज्जा ही चाहिए था भगवान जी के लिए। उन्होंने मेरी इतनी बड़ी विश पूरी की, तो पिज्जा तो बनता है न, उनके लिए"....।

"अरे ! पिज्जा का भोग कौन लगाता है भला " ?...

"वही तो मम्मी ! कोई नहीं लगाता पिज्जा का भोग.....   बेचारे भगवान जी भी तो हमेशा से पेड़े और मिठाई खा- खा के बोर हो गये होंगे ,   हैं न.......।

और जब मुझे सेलिब्रेशन के लिए पिज्जा चाहिए तो भगवान जी को वही पुराने पेड़े क्यों "?...

"पर बेटा पिज्जा का भोग नहीं लगाते !

वैसे तुम्हारी कौन सी विश पूरी हुई"? माँ ने कोतुहलवश पूछा ;....

"मम्मी ! वो हमारी इंग्लिश टीचर हैं न ...वो चेंज हो गयी हैं, अब वे हमें इंग्लिश नहीं पढायेंगी, इंग्लिश तो क्या वे हमें अब कुछ भी नहीं पढ़ायेंगी....हमारी क्लास में आयेंगी ही नहीं....ये....ए....( खुशी से शोर मचाते हुए उछलता है)।

तो ये विश थी तुम्हारी....? पर क्यों ?  उसकी बाँह पकड़कर रोकते हुये मम्मी ने पूछा,

रहने दीजिए मम्मी!आप नहीं समझेंगे।

बाँह छुड़ाते हुए विक्की बोला और पिज्जा लेकर घर में बने मंदिर में घुस गया।

        चित्र साभार,pixabay  से..


शुक्रवार, 4 जून 2021

सीख दुनियादारी की


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छि! क्या दुनिया है ?...कैसी दुनिया है?...बड़ी अजीब दुनिया है....ऐसी ही है ये दुनियादारी...!!!

लोगों से बार-बार ऐसे शब्द सुन तंग आ गयी दुनिया की रूह!

फिर लिया फैसला और चली  हर एक नवजात शिशु को दुनिया में आते ही दुनिया का हाल बताने.......   ताकि उसे न लगे अजीब ये दुनिया....  न हो दुनिया से शिकायत...और न सुनाये वह भी दुनिया को दुनियादारी के ताने...... ।

वह मिली हर उस नवजातक से....

जो दुनिया और दुनियादारी से बेखबर आँखे मूँदे मन्द-मन्द मुस्करा रहा....बन्द मुट्ठी में लायी अपनी तकदीर को होले होले से घुमा रहा..... नहीं जानता वो दुनिया के दुख-सुख, रिश्ते -नाते.....  और नहीं पता उसे अच्छाई क्या और बुराई क्या....अभी तो मानो विधाता से ही चलती है उसकी गुप्तगू .......  विधाता के सिवा उसके लिए कहीं भी कुछ है ही क्या....

उसके पास जाकर धीरे से बोली ;.....                               "हे नन्हें नाजुक प्यारे से नवजातक ! मुझे सुनो! बड़े ध्यान से सुनो !                                                       

जिस दुनिया में आज तुम्हारा अवतरण हुआ है न,      

 मैं रूह हूँ उसी दुनिया की । और अपनी यानी दुनिया की कड़वी परन्तु सच्ची सच्चाई तुम्हें बताने आई हूँ, ताकि तुम भी औरों की तरह ये न कहो कि "छि ! ये क्या दुनियादारी है....कैसी दुनिया है ये" ....

हाँ !तुम अभी जान लो इस दुनियादारी को....

इसकी कठोरता से कुछ कठोरता लेकर अपने नन्हें कोमल मन के बाहर एक आवरण बनाना शुरू करो आज से नहीं अभी से ही....

हाँ ! एक मजबूत कठोर आवरण !...  

जिसके भीतर सम्भाल सको तुम इस कोमल मन की संवेदनाओं को ....छिपाकर रखना उन्हें दुनियादारी की नजर से,

क्योंकि यहाँ कोमल नाजुक पंखुड़ियों को रौंदना बहुतों का शौक है।

हे नाजुक नवजातक ! अभी तुम्हें अपने जन्मदाता का स्नेह और सानिध्य भरपूर मिलेगा.....।    

तुम उनके कन्धों से जब उतरो तो झट से सीख लेना खड़ा होना अपने पैरों पर पूरी मजबूती से।

और जैसे ही ये कन्धे झुकने लगें, उठा लेना तुम भी इन्हें अपने कन्धों पर । कर लेना हिसाब बराबर......

 क्योंकि ऋणी रहे इनके और न सम्भाल पाये स्वयं को तो स्नेह की जगह एहसान देख आहत होगा तुम्हारा ये नाजुक मन कितने ही कठोर आवरण के भीतर भी।

हे नवजातक ! अगर तुम कन्या हो तो और भी सम्भलकर रहना होगा ।

जन्मदाता के संरक्षण में रहकर जल्द ही तन मन से मजबूत बनना होगा तुम्हें।  

नहीं तो बड़ी होकर कोई वस्तु या जागीर सी बनकर रह जाओगी पिता और पति के अधिकार क्षेत्र की ।  

तुम पति में पिता सा स्नेह न पाकर जब  साधिकार वापस पितृगृह लौटोगी तो आहत होगा तुम्हारा नाजुक मन ये जानकर कि अब तुम पिता की लाडली नहीं उन पर बोझ हो।

इसीलिए आज के स्नेह और सानिध्य से अपने मन को इतना मजबूत बनाना कि कल औरों को अपना स्नेह और सानिध्य दे सको ।

 स्नेह की आकांक्षी न रहकर सच्ची सहचरी बन जीवनसफर में कन्धे से कन्धा मिला गृहस्थी की गाड़ी को पूरी सक्षमता से खींच सको।

हे नवजातक ! दुनिया अच्छी है या बुरी है जैसी भी है तुम्हारी है तुम सब ही निर्मित हो इसके।

ये बहुत अच्छी थी जब तुम अच्छे थे और अब भी अच्छी होगी जब तुम अच्छाई की नींव पुनः रखोगे .....।

अपनी, अपनों की,  हमारी और हम सबकी खुशियों के खातिर दुनिया को पहले सा अच्छा बनाने की दिशा में प्रयास करना मेरे नन्हे नवजातक !

क्योंकि तुम सही दिशा अपनाओगे तो दुनिया की दशा स्वतः बदल जायेगी।

    

           चित्र साभार pixabay.com से

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...