मोहजाल
छो टा ही था प्रमोद जब उसके पिता देहांत हुआ बस माँ तक सिमटकर रह गयी थी उसकी दुनिया। माँ ने ही उसे पढ़ा- लिखा कर काबिल इंसान बनाया । बहुत प्यार और सम्मान था उसकी नजरों में माँ के लिए। माँ की उफ तक सुनकर उसकी तो जैसे रुह ही काँप जाती । बस माँ के इर्द गिर्द ही घूमता रहता । खूब ख्याल रखता माँ का। आखिर माँ के सिवाय उसका था भी कौन। माँ भी बहुत खुश रहती थी उससे। अपने बेटे की काबिलियत और सेवाभाव का बखान करते करते मन नहीं भरता था उसका । जिससे भी कहती साथ में उसके रिश्ते की भी बात करती । बस अब घर बस जाय मेरे प्रमोद का । सुन्दर सी लड़की मिले तो हाथ पीले कर अपना फर्ज निभा गंगा नहा आऊँ । और सुन ली भगवान ने उसकी । देखते ही देखते रिश्ता पक्का हुआ और फिर चट मँगनी पट ब्याह । प्रमोद अब अपनी दुनिया में व्यस्त हो गया। मोह का जंजाल भी कैसा रचा है न ऊपर वाले ने। जीते जी कहाँ खतम होता है। पहले बेटे के ब्याह का फिर पोते-पोती का मोह , और फिर उन्हें बड़ा होते हुए देखने का । माँ - बेटे की छोटी सी दुनिया अब कुछ पसरने लगी । और साथ ही बदलने लगे प्रेम के एहसास भी। माँ के प्रति भी उसका प्यार कम तो नहीं हुआ हाँ