जब वह भी कुछ कह पायी
सहमत हो पति ने आज सुना
वह भी दिल हल्का कर पायी
आँखों में नया विश्वास जगा
आवाज में क्रंदन था उभरा
कुचली सी भावना आज उठी
कुचली सी भावना आज उठी
सोयी सी रुह ज्यों जाग उठी
हाँ ! बेटी जनी थी बस मैंने
तुम तो बेटे ही पर मरते थे
बेटी बोझ, परायी थी तुमको
उससे यूँ नजरें फेरते थे...
तिरस्कार किया जिसका तुमने
उसने देवतुल्य सम्मान दिया
निज प्रेम समर्पण और निष्ठा से
दो-दो कुल का उत्थान किया
आज बुढापे में बेटे ने
अपने ही घर से किया बेघर
बेटी जो परायी थी तुमको
बिठाया उसने सर-आँखोंं पर
आज हमारी सेवा में
वह खुद को वारे जाती है
सीने से लगा लो अब तो उसे
ये प्रेम उसी की थाती है.......
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सच कहती हो,खूब कहो !
शर्मिंदा हूँ निज कर्मों से......
वंश वृद्धि और पुत्र मोह में
उलझा था मिथ्या भ्रमोंं से
फिर भी धन्य हुआ जीवन मेरा
जो पिता हूँ मैं भी बेटी का
बेटी नहीं बोझ न पराया धन
वह तो टुकड़ा अपने दिल का !!!!!!
चित्र- साभार गूगल से...