शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

धन्य हुए योगिराज, बनाई पावन मूरत

कुण्डलिया छंद

Shree Ram
                                   चित्र साभार 'गूगल' से

                 


मूरत अद्भुत राम की, श्यामल सुन्दर रुप ।

स्मित अधर सरसिज नयन,शोभा अतुल अनूप ।

शोभा अतुल अनूप , वसन पीतांबर सोहे ।

गल भूषण बनमाल, छवि आलोक मनमोहे ।

निरखि सुधा सुध भूलि, मनोहर श्यामल सूरत।

धन्य हुए योगिराज, बनाई पावन मूरत ।


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राम विराजे अवधपुरी, मची देश में धूम ।

राम राम जपते सभी, नाच रहे हैं झूम ।

नाच रहे हैं झूम, लगी गणतंत्र में झाँकी ।

राम हि बस देखें सुने, भक्ति राम की आँकी ।

कहे सुधा सुन मीत,भक्ति का डंका बाजे ।

कर्म करें निष्काम, हृदय में राम विराजे ।


पढ़िएभक्ति भाव पर आधारित मनहरण घनाक्षरी छंद में मेरी एक और रचना ..

●  प्रभु फिर आइए








सोमवार, 22 जनवरी 2024

आज प्राण प्रतिष्ठा का दिन है

Shree RAm
                             चित्र साभार 'गूगल' से


हर शहर अवध सा सजा हुआ,

हर सदन राम मंदिर है बना ।

हर मन , मन ही मन, राम जपे,

हर रोम रोम में राम बसे ।


देखो तो राममय हवा चली,

सबके उर ऐसी भक्ति जगी ।

जिससे जितना ही बन पाया,

वह रत है राम की भक्ति में ।


कुछ कहते सियासी मुद्दे हैं,

पर किसको लगे ये भद्दे हैं ?

जगमग फिर पूरा देश हुआ,

आज दीप जले हर बस्ती में ।


खुशियों की ऐसी लहर चली,

उत्सुकता सबके हृदय पली ।

शिशिर अचरज स्तब्ध खड़ी,

है जोश भक्ति की शक्ति में ।


पक्ष विपक्ष गर छोड़ दें हम,

सियासत का भ्रम तोड़ दें हम ।

श्रद्धेय नमन उस साधक को

रत अनुष्ठान व्रत भक्ति में ।


आज प्राण प्रतिष्ठा का दिन है ,

आस्था भी कहाँ मन्दिर बिन है ।

पंच शतक की पूर्ण प्रतीक्षा,

हैं जयकारे अब जगती में ।


मूरत श्यामल अति मनभावन,

अभिजीत मुहूर्त द्वादश पावन ।

शुभ मंत्रोच्चार, पौष-उत्सव सा

रमें रामलल्ला की भक्ति में  ।


पढ़िए प्रभु श्रीराम पर कुण्डलिया छंद में मेरी रचना

धन्य हुए योगिराज, बनाई पावन मूरत




 











शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

प्राणायाम - दिल -दिमाग को स्वस्थ बनाये

Meditation


जिम एरोबिक एक्सरसाइज,
तन को स्वस्थ बनाते ।
हेल्दी-वेल्थी तो कहते सब ,
मन की सोच ना पाते ।

हर चौथे दिन बंक मारते,
मन नहीं जिम जाने का ।
हेल्दी वेल्थी छोड़ - छाड़,
मन जंक फूड खाने का ।

हास्य-आसन मे 'हा-हा' करते,
मूड नहीं खुश रहता ।
सब कुछ होकर भी नाखुश से,
मन खाली सा रहता ।

कुछ भी नहीं 'मन' पर मालिक बन,
अपना रौब दिखाता ।
कभी उछलता बच्चों सा बन
कभी ये रुग्ण बनाता ।

गौर करें आओ इस मन पर,
मन है बड़ा अलबेला !
कभी हँसाता कभी रुलाता,
खेले अद्भुत खेला ।

चेतन, अवचेतन ,अचेतन,
भेद हैं इसके ऐसे ।
आधिपत्य हो जिसका इनपे,
शासक स्व का जैसे ।

'स्व-राज' तन-मन पर जिसका,
मति एकाग्र कर पाता ।
हेल्दी-वेल्थी और वाइज बन,
जीवन सफल बनाता ।

समझें तो 'मन' समझ ना आता,
करें तो है आसान ।
एक्सरसाइज करते ही हैं,
बाद करें कुछ ध्यान ।

श्वासों की आवा-जाही पे,
धरें जो थोड़ा ध्यान ।
दिल दिमाग को स्वस्थ बनाये,
अद्भुत  प्राणायाम ।

करें भ्रामरी और भस्त्रिका,
फिर अनुलोम-विलोम ।
पुनः कपालभाति यदि करते,
पुलकित हो हर रोम ।

ओम(ऊँ) शब्द के उच्चारण से,
होती मन की शुद्धि ।
हृदय ज्ञान की ज्योति है जलती,
मिले कुशाग्र बुद्धि ।

नहीं भटकता विकृत होकर,
चंचल सा ये मन ।
विकसित होता आत्मज्ञान,
जब गहरा हो चिंतन ।

दीपित होता आभा मंडल,
चित्त वासना विगलित ।
संयम से ही निखरे जीवन,
देह दीप्त आलोकित ।







हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...