आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए एक और रचना इसी ब्लॉग पर ● बच्चों के मन से
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 27 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंजय श्रीराम बहुत ही सुन्दर सार्थक और मनभावन रचना सखी
जवाब देंहटाएंजय श्री राम
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंनिरखि सुधा सुध भूलि, मनोहर श्यामल सूरत।
जवाब देंहटाएंधन्य हुए योगिराज, बनाई पावन मूरत ।
सचमुच अद्भभुत सृजन किया है मूर्तिकार ने
बहुत ही सुन्दर सृजन सुधा जी 🙏
जय श्री राम 🙏
वाह सुधा जी, एक अद्भुत रचना...वाह..क्या खूब कहा कि -
जवाब देंहटाएंगल भूषण बनमाल, छवि आलोक मनमोहे ।
निरखि सुधा सुध भूलि, मनोहर श्यामल सूरत।
#जयश्रीराम
कमाल के भाव … स्वतः मन में उपज रहे हैं भाव है राम जी की …
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