भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी । बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 27 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंजय श्रीराम बहुत ही सुन्दर सार्थक और मनभावन रचना सखी
जवाब देंहटाएंजय श्री राम
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंनिरखि सुधा सुध भूलि, मनोहर श्यामल सूरत।
जवाब देंहटाएंधन्य हुए योगिराज, बनाई पावन मूरत ।
सचमुच अद्भभुत सृजन किया है मूर्तिकार ने
बहुत ही सुन्दर सृजन सुधा जी 🙏
जय श्री राम 🙏
वाह सुधा जी, एक अद्भुत रचना...वाह..क्या खूब कहा कि -
जवाब देंहटाएंगल भूषण बनमाल, छवि आलोक मनमोहे ।
निरखि सुधा सुध भूलि, मनोहर श्यामल सूरत।
#जयश्रीराम
कमाल के भाव … स्वतः मन में उपज रहे हैं भाव है राम जी की …
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