दुखती रगों को दबाते बहुत हैं,
कुछ अपने, दुखों को बढ़ाते बहुत हैं ।
सुनकर सफलता मुँह फेरते जो,
खबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।
अंधेरों में तन्हा डरा छोड़़ जाते,
उजालों में वे साथ आते बहुत हैं ।
भूखे से बासी भी भोजन छुपाते,
मनभर को छक-छक खिलाते बहुत हैं ।
बनी बात सुनने की फुर्सत नहीं है,
बिगड़ी को फिर-फिर दोहराते बहुत हैं ।
पूछो तो कुछ भी नहीं जानते हैं ,
भटको तो ताने सुनाते बहुत है ।
बड़े प्यार से अपनी नफरत निभाते,
समझते नहीं पर समझाते बहुत हैं ।
दिखाना है इनको मंजिल जो पाके,
इसी होड़ में कुछ, कमाते बहुत हैं ।
तानों से इनके आहत ना हों तो,
अनजाने ही दृढ़ बनाते बहुत हैं ।