बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला
बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन, माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित, फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता , ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर, स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो, जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से, मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे, पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से, निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा, मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर, ...
अरे वाह्ह दी,क्या सटीक रेखाचित्र खींच डाला है आपने। ऐसे मानसिक बीमार लोग तकरीबन हर गली-मुहल्ले में मिलते हैं ऐसी ओछी हरकतों से उन्हें शायद मानसिक सुख मिलता होगा।
जवाब देंहटाएंसत्य उकेरती सराहनीय रचना दी।
सस्नेह
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
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सुनकर सफलता मुँह फेरते जो,
जवाब देंहटाएंखबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।
मानवीय संतुष्टिकरण शायद कारण हो । सत्य को उकेरती रचना ।
गज़ल कहने का अच्छा प्रयास है ... कहीं कहीं मात्राएँ (गज़ल की) गड़बड़ा रहो हैं पर बहुत भावपूर्ण और अच्छी कहन है ...
जवाब देंहटाएंअपने आसपास की सच्चाई बताती बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंजी ! नमन संग आभार आपका .. आपने तो जो भी लिखा है, तथाकथित सामाजिक और पारिवारिक हालातों से बहुत ही भींज कर लिखा है या यूँ कहें की डूब कर लिखा है .. जितनी भी पँक्तियों को आपने उकेरा है .. हरेक शब्दों की छेनी की चोट की अनुगूँज अंतर्मन को आलोड़ित कर गया .. शायद ... उन सारी हालातों में से अधिकांश से रूबरू होना पड़ा है हमें भी .. जीवन के अब तक के पड़ावों पर .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंबड़े प्यार से अपनी नफरत निभाते,
जवाब देंहटाएंसमझते नहीं पर समझाते बहुत हैं ।
बहुत सुंदर... समाज की सच्चाई सटीकता से बयाँ करती रचना...
वैसे तो इस कविता का हर छंद गहरे चिंतन का परिणाम नजर आता है सुधाजी, परंतु ये पंक्तियाँ तो बेहद सटीक हैं -
जवाब देंहटाएंसुनकर सफलता मुँह फेरते जो,
खबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।
अंधेरों में तन्हा डरा छोड़़ जाते,
उजालों में वे साथ आते बहुत हैं ।
बहुत बार अनुभव हुआ है।
सुधा दी, सॉरी। आपका मेरे पीछले ब्लॉग पर का कॉमेंट मैं देख नहीं पाई थी। दीदी, असल में मेरी बहुत सारी कहानियां बहुत सारे लोगों ने as it is you tube डाली है। ऐसे ही मेरी नजर में एक कहानी आने पर मैं ने सर्च करी तब दिखी। तब मैं ने सोचा कि यदि लोग मेरी कहानियां यू ट्यूब पर डाल रहे है तो मैं खुद ही क्यो न डालू? इसलिए मैं ने Jyoti Stories नाम से अपना चैनल बनाया है। अभी वीडियो बनाने में व्यस्त हूं। ब्लॉगर के रूप में तो थोड़ी बहुत पहचान बना पाई थी। अब यू ट्यूबर के रूप में कोशिश कर रही हूं। हो सके तो एक बार मेरा चैनल जरूर देखिएगा। और बताइएगा कि मैं बराबर कर रही हूं या नही। मेरे चैनल का लिंक है https://www.youtube.com/channel/UCOMUpA4L1zKxp4QYa2ajpNw
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंऐसे दोस्तों, ऐसे रिश्तेदारों से और ऐसे पड़ौसियों से, राम बचाए !
ऐसे ही मेहरबान दोस्तों पर एक शायर ने कहा है -
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
बड़ी ही उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंऐसे लोग हर जगह हर समय मिलते रहते है, बस इनसे बचके रहना ही उपाय है।
जवाब देंहटाएंयथार्थ पर बहुत सुंदर रचना लिखी है सखी। बधाई।