गुरुवार, 6 जुलाई 2023

दुखती रगों को दबाते बहुत हैं

 

Gajal

दुखती रगों को दबाते बहुत हैं,

कुछ अपने, दुखों को बढ़ाते बहुत हैं ।


सुनकर सफलता मुँह फेरते जो,

खबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।


अंधेरों में तन्हा डरा छोड़़ जाते,

उजालों में वे साथ आते बहुत हैं ।


भूखे से बासी भी भोजन छुपाते,

मनभर को छक-छक खिलाते बहुत हैं ।


बनी बात सुनने की फुर्सत नहीं है,

बिगड़ी को फिर-फिर दोहराते बहुत हैं ।


पूछो तो कुछ भी नहीं जानते हैं ,

भटको तो ताने सुनाते बहुत है ।


बड़े प्यार से अपनी नफरत निभाते,

समझते नहीं पर समझाते बहुत हैं ।


दिखाना है इनको मंजिल जो पाके,

इसी होड़ में कुछ, कमाते बहुत हैं ।


तानों से इनके आहत ना हों तो,

अनजाने ही दृढ़ बनाते बहुत हैं ।







11 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

अरे वाह्ह दी,क्या सटीक रेखाचित्र खींच डाला है आपने। ऐसे मानसिक बीमार लोग तकरीबन हर गली-मुहल्ले में मिलते हैं ऐसी ओछी हरकतों से उन्हें शायद मानसिक सुख मिलता होगा।
सत्य उकेरती सराहनीय रचना दी।
सस्नेह
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।



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संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुनकर सफलता मुँह फेरते जो,

खबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।

मानवीय संतुष्टिकरण शायद कारण हो । सत्य को उकेरती रचना ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गज़ल कहने का अच्छा प्रयास है ... कहीं कहीं मात्राएँ (गज़ल की) गड़बड़ा रहो हैं पर बहुत भावपूर्ण और अच्छी कहन है ...

Jyoti Dehliwal ने कहा…

अपने आसपास की सच्चाई बताती बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।

Banjaarabastikevashinde ने कहा…

जी ! नमन संग आभार आपका .. आपने तो जो भी लिखा है, तथाकथित सामाजिक और पारिवारिक हालातों से बहुत ही भींज कर लिखा है या यूँ कहें की डूब कर लिखा है .. जितनी भी पँक्तियों को आपने उकेरा है .. हरेक शब्दों की छेनी की चोट की अनुगूँज अंतर्मन को आलोड़ित कर गया .. शायद ... उन सारी हालातों में से अधिकांश से रूबरू होना पड़ा है हमें भी .. जीवन के अब तक के पड़ावों पर .. बस यूँ ही ...

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

बड़े प्यार से अपनी नफरत निभाते,
समझते नहीं पर समझाते बहुत हैं ।

बहुत सुंदर... समाज की सच्चाई सटीकता से बयाँ करती रचना...

Meena sharma ने कहा…

वैसे तो इस कविता का हर छंद गहरे चिंतन का परिणाम नजर आता है सुधाजी, परंतु ये पंक्तियाँ तो बेहद सटीक हैं -
सुनकर सफलता मुँह फेरते जो,
खबर हार की वो फैलाते बहुत हैं ।
अंधेरों में तन्हा डरा छोड़़ जाते,
उजालों में वे साथ आते बहुत हैं ।
बहुत बार अनुभव हुआ है।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुधा दी, सॉरी। आपका मेरे पीछले ब्लॉग पर का कॉमेंट मैं देख नहीं पाई थी। दीदी, असल में मेरी बहुत सारी कहानियां बहुत सारे लोगों ने as it is you tube डाली है। ऐसे ही मेरी नजर में एक कहानी आने पर मैं ने सर्च करी तब दिखी। तब मैं ने सोचा कि यदि लोग मेरी कहानियां यू ट्यूब पर डाल रहे है तो मैं खुद ही क्यो न डालू? इसलिए मैं ने Jyoti Stories नाम से अपना चैनल बनाया है। अभी वीडियो बनाने में व्यस्त हूं। ब्लॉगर के रूप में तो थोड़ी बहुत पहचान बना पाई थी। अब यू ट्यूबर के रूप में कोशिश कर रही हूं। हो सके तो एक बार मेरा चैनल जरूर देखिएगा। और बताइएगा कि मैं बराबर कर रही हूं या नही। मेरे चैनल का लिंक है https://www.youtube.com/channel/UCOMUpA4L1zKxp4QYa2ajpNw

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

बहुत ख़ूब !
ऐसे दोस्तों, ऐसे रिश्तेदारों से और ऐसे पड़ौसियों से, राम बचाए !
ऐसे ही मेहरबान दोस्तों पर एक शायर ने कहा है -
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए

MANOJ KAYAL ने कहा…

बड़ी ही उम्दा अभिव्यक्ति

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

ऐसे लोग हर जगह हर समय मिलते रहते है, बस इनसे बचके रहना ही उपाय है।
यथार्थ पर बहुत सुंदर रचना लिखी है सखी। बधाई।

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