गुरुवार, 23 मार्च 2023

मम्मा ! मैंने अपने लिए विश नहीं माँगी

 

Student

"बिन्नी चल जल्दी से नहा-धोकर मंदिर हो आ ! आज से तेरी बोर्ड परीक्षा शुरू हो रही है न, तो जाकर भोलेनाथ जी से प्रार्थना करना परीक्षा में सबसे अव्वल आने के लिए ! ठीक है ! चल जल्दी कर" !


"माँ ! मंदिर - वंदिर रहने दो न ! इत्ता मैं रिविजन कर लूँगी ! प्लीज मम्मा ! और वैसे भी मुझे सबसे अव्वल नहीं आना,  बस अच्छी पर्सेन्टिज चाहिए" ।


"अरे ! दिमाग तो ठीक है तेरा ! बोर्ड परीक्षा की शुरुआत में भला कौन बच्चा मंदिर में प्रभु दर्शन किए बगैर पेपर देने जाता है ? बहुत हो गया तेरा रिविजन वगैरा ! साल भर से कहाँ थी जो अब पढ़ने चली है ?  चल अब बिना बहाने के जल्दी कर और जा मंदिर  !  फिर कर लेना प्रार्थना भगवान जी से अच्छी परसेंटेज के लिए । सबसे अव्वल नहीं आना ! हुँह"....।


"ओह्हो मम्मा ! आप भी न" ! कहकर विन्नी ने किताबें छोड़ी और घुस गयी बाथरूम में । 

स्नान आदि के बाद फटाफट मंदिर गयी और जल्दी आकर पुस्तक उठायी ही थी कि माँ ने पूछा इतनी जल्दी आ गयी ?  "अरे ! प्रार्थना भी की या बस ऐसे ही " ?


"हाँ मम्मा ! विश की मैंने " कहते हुए विन्नी ने अपने दोनों हाथों की पहली दूसरी उंगलियां आपस में मोड़कर हाथ पीठ पीछे कर दिये ।


पीछे लगे शीशे में माँ ने सामने से देख लिया तो समझ गयी कि बिन्नी कुछ छुपा रही है, पर क्या  !


"बिन्नी ! गयी भी थी मंदिर या यहीं कहीं से वापस आ गयी ! क्या छिपा रही है मुझसे ? बता सच -सच" ?


"नहीं तो ! कुछ भी तो नहीं छुपा रही मम्मा ! मैं गयी थी मंदिर ! पक्का" !  विश्वास दिलाने के लिए उसने अपने गले को टच किया ।


 "ठीक है। तो फिर ये उँगलियाँ क्यों मोड़ रखी" ?


"वो...वो इसलिए कि विश नहीं की मैंने वहाँ अपने लिए" ।  हिचकिचाते हुए वह बोली तो माँ ने पूछा, "क्यों "? क्यों नहीं माँगी तूने विश ? बस यूँ ही जल चढ़ाकर भाग आई क्या" ?


तो वह बोली, "मम्मा ! वहाँ एक आंटी शिवलिंग के पास बैठी रो रही थी ! सच्ची !! खूब आँसू बह रह रहे थे उनके ! मम्मा मुझे उनके लिए बहुत बुरा लगा , तो मैंने भगवान जी से कहा कि भगवान जी आप आंटी की विश पूरी कर दीजिए। मैं अपना सम्भाल लूँगी । बस आप आंटी की सारी प्रॉब्लम सॉल्व करके सब ठीक कर दीजिएगा, प्लीज" !


सुनकर माँ का हृदय गदगद हो गया , "सही कहा तूने" कहते हुए माँ ने उसके सिर में बड़े प्यार से हाथ फेरा। मुड़ी उँगलियों को सीधा करते हुए विन्नी खुश होकर चहकती सी बोली,  "है न मम्मा !  सही कहा न मैने" ! 


"हम्म ! सही तो कहा, पर अब देख ले सारी जिम्मेवारी तेरी ही है अच्छी परसेंटेज की" ! कहकर माँ ने उसके माथे को चूम लिया उसने भी खुशी खुशी हाँ में सिर हिलाया और लग गयी अपनी तैयारी में ।



मंगलवार, 14 मार्च 2023

बेटियाँ खपती जाती हैं दो दो घरों की फिकर में ।

 

Daughter

कावेरी ने जब सुना कि बेटी इस बार होली पे आ रही है तो उसकी खुशियों की सीमा ही न थी । बड़ी उत्सुकता से लग गयी उसकी पसन्द के पकवान बनाने में ।  अड़ोस-पड़ोस की सखियों को बुलाकर उनके साथ मिलकऱ, ढ़ेर सारी गुजिया शक्करपारे और मठरियाँ बनाई । शुद्ध देशी घी में उन्हें तलते हुए वह बेटी कान्ति की बचपन के किस्से सुनाती जा रही थी सबको । पिछले एक साल से कान्ति मायके ना आ सकी तो माँ का मन तड़प रहा था बेटी से मिलने के लिए । 


कावेरी की पड़ोसी सखियाँ भी जानती थी कि कान्ति की सास जबसे बीमार पड़ी, तभी से वह मायके नहीं आ पायी । वरना शादी के बाद से ही कान्ति हर तीज त्यौहार पर मायके जरूर आती थी और बड़ी बेफिक्री से   कुछ दिन रहकर वापस ससुराल जाती। वह हमेशा अपनी सासूमाँ की तारीफ करते न थकती ।

कावेरी भी खुश होती कि समधन अच्छी है इसीलिए उसकी इकलौती बेटी ससुराल में सुख से है ।

परंतु समधन की बीमारी के कारण जब बेटी का आना जाना कम हुआ तो उसे वह मुसीबत लगने लगी। मन ही मन वह सोचती की बुढ़िया मर ही जाय तो बेटी को उसकी तिमारदारी से छुटकारा मिले ।


कान्ति आई तो घर में रौनक आ गयी । माँ की आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े । वह उसे बार-बार गले लगाती । कभी उसके हाथों को तो कभी सिर को सहलाती । परन्तु उसने महसूस किया कि कान्ति अब पहले सी माँ और मायके वाली नहीं रही । ना उसे माँ के इतने प्यार से बनाए पकवानों में पहले सी दिलचस्पी है और ना ही मायके की किसी भी अन्य चीजों से। उसे बार-बार मोबाइल स्क्रीन को चैक करते देख कावेरी ने टोकते हुए कहा , " कान्ति ! ये मोबाइल में क्या रखा है ? बेटा ! आई है तो थोड़ा इधर भी मन लगा न !

देख मैंने तेरे लिए क्या-क्या बनाया है ! आ ! बैठकर मजे से खा ! और मस्त होकर गपशप कर न मेरे साथ"!


"माँ ! आ तो गई पर अब सासूमाँ की बहुत फिकर हो रही है" । कान्ति चिंतित होते हुए बोली तो कावेरी ने समझाते हुए कहा , "जाने दे न बेटा ! किस बात की फिकर ? दामाद जी हैं न उनके पास ! उनका बेटा उनके पास हैं फिर और क्या चाहिए" ? 

"माँ ! कई चीजें होती हैं जो हम औरतें ही एक दूसरे का समझ पाती हैं सासूमाँ को कहीं कोई ऐसी दिक्कत ना हो जिसके लिए उन्हें मेरी जरूरत हो...बस यही चिंता है...उनकी जिद्द थी कि मैं आपसे मिलूँ इसीलिए आ गई पर अब उनकी फिकर हो रही है" ।

"अच्छा ! कभी मेरी भी फिकर कर लिया कर ! मैं तो माँ हूँ तेरी !. सास तो आखिर सास ही होती है । माँ से भी मन लगाया कर कभी" ! कावेरी ने कुछ रूठते हुए कहा तो कान्ति झट से माँ से चिपक गयी फिर प्यार से समझाते हुए बोली,  "माँ ! आपकी भी फिकर थी और मन यहीं लगा था यही समझकर तो सासूमाँ ने आज इनकी छुट्टी करवाई और मुझे जिद्द करके यहाँ भेजा आपसे मिलने । आप तो अभी तक पुराने रीति-रिवाजों में बंधी हैं कि बेटी के घर नहीं जाना !.पर क्यों माँ ?

"माँ ! मेरी सास भी अब सिर्फ़ सास नहीं, सासूमाँ हो गयी हैं मेरी । जैसा लाड-प्यार और संरक्षण मुझे आपसे मिला वैसा ही लाड-प्यार और संरक्षण मिला है मुझे सासूमाँ से । बड़ी खुशनसीब हूँ मैं , जो दो दो माँओं की छत्र - छाँव है मेरे सर पर । बस ये छाँव हमेशा बनी रहे  यही प्रार्थना है भगवान से और यही मन का डर भी है  माँ" !


कावेरी देख रही थी बेटी को और समझ रही थी उसके मनोभावों को। कहते हैं बेटी पराई हो जाती है ब्याह कर । पराई कहाँ हो पाती हैं बेटियाँ !...   ये तो बँट जाती हैं टुकड़ों में ! खप जाती हैं दो दो घरों की फिकर में ।


सारे पकवानों को अच्छे से पैक कर कावेरी झट से तैयार होकर बोली, "चल बेटा ये होली तेरे ससुराल में ही मनायेंगे ! तेरी दोनों माँएं तेरे साथ होंगी । चल अब बेफिकर हो कर  मनाना त्यौहार अपनी दोनों माँओं के साथ" ।

"क्या ! आप मेरे साथ चलेंगी" ! कान्ति ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, फिर अगले ही पल उदास होकर बोली "पर आप खाना - पानी के बगैर वहाँ कैसे रह पायेंगी , जाने दीजिए माँ ! अब मिल ली न आपसे , ऐसे ही आती रहूँगी"।

"खाना - पानी ना है तेरे ससुराल में क्या ? जो तुम सब खाओगे वही खिला देना मुझे भी" !  कावेरी ने मुस्कराते हुए कहा तो कान्ति ने मारे खुशी के माँ को अपनी बाहों में भरकर झकझोर दिया ।

अपने बच्चों को बेफिक्री से खुशी-खुशी त्योहार मनाते देख दोनों समधन बहुत खुश हुए और एक-दूसरे पर टीका लगाकर गले मिल लिए।

शुक्रवार, 3 मार्च 2023

उत्तराखंड में मधुमास - दोहे

 

Spring season Uttarakhand


नवपल्लव से तरु सजे, झड़़े पुराने पात ।

महकी मधुर बयार है, सुरभित हुआ प्रभात ।।


पुष्पों की मुस्कान से, महक रही भिनसार ।

कली-कली पे डोलके, भ्रमर करे गुंजार ।।


भौरे गुनगुन गा रहे , स्नेह भरे अब गीत ।

प्रकृति हमें समझा रही ,परिवर्तन की रीत ।।


आम्र बौंर पिक झूमता , कोकिल कूके डाल ।

 बहती बासंती हवा   टेसू झरते लाल ।।


 गेहूँ बाली हिल रही, पुरवाई के संग ।

पीली सरसों खिल रही, चहुँदिशि बिखरे रंग ।।


पिघली बर्फ़ पहाड़ की, खिलने लगे बुरांस ।

सिंदूरी सेमल खिले, फ्यूंली फूली खास ।।


श्वेत पुष्प से लद रहे, हैं मेहल के पेड़ ।

पंछी घर लौटन लगे, शहर प्रवास नबेड़ ।।


बन-बन हैं मन मोहते, महके जब ग्वीराल ।

थड़िया-चौंफला गीत सु, गूँज उठी चौपाल ।।


बेडू तिमला फल पके, पके हिंसर किनगोड़ ।

काफल, मेलू भी पके,   लगती सबमें होड़ ।।


हरियाली चौखट लगी, सजे फूल दहलीज ।

फूलदेइ त्यौहार में, हर मन हुआ बहीज ।।


जीवन मधुमय हो गया , मन में है उल्लास ।

प्रकृति खुशी से झूमती,आया जब मधुमास ।।


भिनसार=सुबह

नबेड़=निपटाकर)

बहीज=आनंदित)

इसके अलावा उत्तराखंड के पर्व , लोकगीत-नृत्य और फल एवं फूलों के वृक्ष आदि का रचना में जिक्र जिनका है उनके विषय में संक्षिप्त जानकारी निम्न है ।

बुरांस, सेमल,फ्यूंली, मेहल, ग्वीराल आदि सुंदर फूलों वाले वृक्ष हैं जो उत्तराखंड के पहाड़ों पर बसंत ऋतु में खिलते हैं । बुरांस फूल जिसके सुंदर रंग रूप एवं औषधीय गुणों के कारण इसे राष्ट्रीय पुष्प भी घोषित किया गया है ।

थड़िया-चौंफला - ये उत्तराखंड के विशेष लोकगीत-नृत्य हैं , जिनका आयोजन बसंत पंचमी के दौरान किया जाता है । जब रातें लम्बी होती हैं तो मनोरंजन के लिए गाँव के लोग मिलकर थड़िया और चौंफला का आयोजन करते हैं  ।

बेडू, तिमला, हिंसर किनगोड़, मेलू, काफल  आदि बहुत से फल इस मौसम में पहाड़ों पर पकने शुरु होते हैं ।

फूलदेई त्योहार - फूलदेई पर्व उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्व है । इस पर्व को मुख्यतः बच्चे मनाते हैं इसलिए इसे लोक बाल पर्व भी कहा जाता है । चैत्र मास की प्रथम तिथि यानी 14 या 15 तारीख को जिस दिन हिन्दू नव वर्ष का प्रथम दिन होता है उसी दिन से शुरू होता है ये फूलदेई पर्व।

इस पर्व में गाँव के छोटे बच्चे पूरे चैत मास सुबह-सुबह सबके घरों की चौखट पर जौ की हरियाली टाँगते हैं एवं देहलीज पर फूल बिखेरते हैं । और बड़े उन्हें खाने-पीने की वस्तुएं एवं उपहार आदि भेंट देते हैं ।


पढिए बसंत ऋतु के आगमन पर आधारित गीत

        बसंत की पदचाप




हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...