जंग लगे/दीमक खाये खोखले से थे वे,
कलई / पालिस कर चमका दिये गये
नये /मजबूत से दिखने लगे एकदम...
ऐसे सामानों को बाजारों में बिकते देखा है।
खोखले थे सो टूटना ही था,
दोष लाने वालों पर मढ़ दिये गये...
शुभ और अशुभ भी हो गयी घड़ियाँ....
मनहूसियत को बहुओं के सर मढ़ते देखा है।
हाँ !मैने कुछ रिश्तों को टूटते-बिखरते देखा है।
झगड़ते थे बचपन मे भी,
खिलौने भी छीन लेते थे एक-दूसरे के....
क्योंकि खिलौने लेने तो पास आयेगा दूसरा,
हाँ! "पास आयेगा" ये भाव था प्यार/अपनेपन का....
उन्ही प्यार के भावों में नफरत को भरते देखा है।
हाँ ! मैने कुछ रिश्तों को टूटते -बिखरते देखा है।
वो बचपन था अब बड़े हुए,
तब प्यार था अब नफरत है.....
छीनने के लिए खिलौने थे,
औऱ अब पैतृक सम्पत्ति.....
तब सुलह कराने के लिए माँ-बाप थे,
अब वकील औऱ न्यायाधीश....
भरी सभा में सच को मजबूरन गूँगा होते देखा है ;
या यूँ कह दें-"झूठ के आगे सच को झुकते देखा है"।
हाँ ! मैने कुछ रिश्तों को टूटते -बिखरते देखा है ।।
हो गयी जीत मिल गये हिस्से,
खत्म हुए अब कोर्ट के किस्से...
जश्न मनाते सारे चमचे,
नाचते-गाते नये-नये रिश्ते...
अंधियारे -सूने कोने में छुप उसको सुबकते देखा है ;
या यूँ कह दे-"प्रेम के आगे दंभ को झुकते देखा है",
हाँ!मैने कुछ रिश्तों को टूटते -बिखरते देखा है ।।
पर क्या फायदा ? पहल करेगा कौन,
जब बड़ा बड़ा ही बनकर बैठा,
छोटा भी छुटपन में ऐंठा.....
पडौसी रिश्ते तमाशबीन हुए,
माँ-बाप परलोक जो गये.......
कौन सुलह करवाए इनकी,
झूठी शान खोखला अभिमान...
अक्ल पर भी तो जाने कब से बड़ा सा पत्थर फेरा है ;
ऐसे में भी कभी किसी ने रिश्तों को निभते देखा है ?
हाँ !मैने ऐसे ही रिश्तों को टूटते -बिखरते देखा है ।।
....सुधा देवरानी