तुम गुनगुनाए तो मैने यूँ समझा
प्रथम गीत तुमने मुझे ही सुनाया
तुम पास आये तो मैं खिल उठी यूँ
अनोखा बसेरा मेरे ही संग बसाया ।
हमेशा रहोगे तुम साथ मेरे,
बसंत अब हमेशा खिला ही रहेगा
तुम मुस्कुराये तो मैंं खिलखिलाई
ये सूरज सदा यूँ चमकता रहेगा ।
न आयेगा पतझड़ न आयेगी आँधी,
मेरा फूलमन यूँ ही खिलता रहेगा।
तुम सुनाते रह़ोगे तराने हमेशा
और मुझमें मकरन्द बढता रहेगा।
तुम्हें और जाने की फुरसत न होगी
मेरा प्यार बस यूँ ही फलता रहेगा ।।
"मगर अफसोस" !!!
तुम तो भ्रमर थे मै इक फूल ठहरी
वफा कर न पाये ? / था जाना जरूरी ?
मैंं पलकें बिछा कर तेरी राह देखूँ
ये इन्तजार अब यूँ ही चलता रहेगा ।
मौसम में जब भी समाँ लौट आये
मेरा दिल हमेशा तडपता रहेगा
कि ये "शुभ मिलन" अब पुनः कब बनेगा
...सुधा देवरानी*
28 टिप्पणियां:
बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌
पुष्प और भ्रमर सुन्दर चित्रण
गजब चित्रण आ0
आपकी लेखनी को नमन । आज वो गीत भी याद आ गई "भँवरे ने खिलाया फूल, फूल को वे गए राज कुंवर....."
तुम गुनगुनाए तो मैने यूँ समझा........
प्रथम गीत तुमने मुझे ही सुनाया
तुम पास आये तो मैं खिल उठी यूँ.....
अनोखा बसेरा मेरे ही संग बसाया ।
शुभकामनाएँ ....व बधाई
हृदयतल से धन्यवाद सखी उत्साहवर्धन हेतु
सस्नेह आभार...।
सहृदय धन्यवाद रितु जी !
सस्नेह आभार...।
हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी !
सादर आभार...।
हार्दिक धन्यवाद, पुरुषोत्तम जी ! उत्साहवर्धन हेतु...
सादर आभार।
बहुत सुंदर रचना।
आभारी हूँ विश्वमोहन जी! बहुत बहुत धन्यवाद आपका...।
बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।
सहृदय धन्यवाद ज्योति जी !
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
आँचल पाण्डेय
तहेदिल से धन्यवाद आँचल जी मेरी रचना को मंच पर साझा करने हेतु.....
सस्नेह आभार।
विचित्र संसार है, यदि भंवरे पुष्प से हटे नहीं तो ऐसा भी होता है कि सूर्यास्त के समय जब फूलों की पंखुड़ियाँँ आपस में सिकुड़ जाती हैं ,तो बेचारा भंवरा भी उसके अंदर ही प्रातः काल की प्रतीक्षा में दम तोड़ देता है।
सुंदर भावपूर्ण सृजन ,आपको नमन।
तुम तो भ्रमर थे मैं इक फूल ठहरी......
वफा कर न पाये ? / था जाना जरूरी ? ....सदियों से चली आ रही ये एक शाश्वत स्थिति है, इसपर बहुत ही गज़ब का लिखा है सुधा जी
हृदयतल से धन्यवाद शशि जी !
सादर आभार...।
तहेदिल से धन्यवाद, अलकनंदा जी !
सादर आभार...।
वाहः
बहुत खूब
हार्दिक धन्यवाद लोकेश जी !
एक बहुत ही सरस रचना |
हार्दिक धन्यवाद आलोक जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत खूबसूरत रचना ।
बेफाओं से क्यों कर कोई उम्मीद करे ।
खूबसूरत ,अभिनव सृजन ,मोहक शब्द सौष्ठव ने मोह लिया हालांकि विरह के दुखद पल है, फिर भी सृजन इतना मनोहारी है कि प्रशंसा को शब्द नही सुधा जी मैं पूरी तरह से मुग्ध हूँ।
अप्रतिम।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी!
बहुत खूबसूरत रचना
सहृदय धन्यवाद एवं आभार भारती जी!
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