सैनिक, संत, किसान (दोहा मुक्तक)

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सैनिक रक्षा करते देश की, सैनिक वीर जवान । लड़ते लड़ते देश हित, करते निज बलिदान । ओढ़ तिरंगा ले विदा,  जाते अमर शहीद, नमन शहीदों को करे, सारा हिंदुस्तान ।। संत संत समागम कीजिए, मिटे तमस अज्ञान । राह सुगम होंगी सभी, मिले सत्य का ज्ञान । अमल करे उपदेश जो, होगा जीवन धन्य, मिले परम आनंद तब, खिले मनस उद्यान । किसान खून पसीना एक कर , खेती करे किसान । अन्न प्रदाता है वही, देना उसको मान । सहता मौसम मार वह, झेले कष्ट तमाम, उसके श्रम से पल रहा सारा हिंदुस्तान ।         सैनिक, संत, किसान 1) सीमा पर सैनिक खड़े, खेती करे किसान ।    संत शिरोमणि से सदा,  मिलता सबको ज्ञान।    गर्वित इन पर देश है , परहित जिनका ध्येय,    वंदनीय हैं सर्वदा, सैनिक संत किसान ।। 2) सैनिक संत किसान से,  गर्वित हिंदुस्तान ।     फर्ज निभाते है सदा,  लिये हाथ में जान ।     रक्षण पोषण धर्म की,  सेवा पर तैनात,      करते उन्नति देश की,  सदा बढ़ाते मान ।। हार्दिक अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए एक और रचना निम्न लिंक पर ●  मुक्...

"पुष्प और भ्रमर"




"पुष्प और भ्रमर" (myth on a flower)

तुम गुनगुनाए तो मैने यूँ समझा
प्रथम गीत तुमने मुझे ही सुनाया
तुम पास आये तो मैं खिल उठी यूँ
अनोखा बसेरा मेरे ही संग बसाया ।

हमेशा रहोगे तुम साथ मेरे,
बसंत अब हमेशा खिला ही रहेगा
तुम मुस्कुराये तो मैंं खिलखिलाई
ये सूरज सदा यूँ चमकता रहेगा ।

न आयेगा पतझड़ न आयेगी आँधी,
मेरा फूलमन यूँ ही खिलता रहेगा।
तुम सुनाते रह़ोगे तराने हमेशा
और मुझमें मकरन्द बढता रहेगा।

तुम्हें और जाने की फुरसत न होगी
मेरा प्यार बस यूँ ही फलता रहेगा ।।

           "मगर अफसोस" !!!

तुम तो भ्रमर थे मै इक फूल ठहरी
वफा कर न पाये ? / था जाना जरूरी ?
मैंं पलकें बिछा कर तेरी राह देखूँ                   
ये इन्तजार अब यूँ ही चलता रहेगा ।

मौसम में जब भी समाँ लौट आये
मेरा दिल हमेशा तडपता रहेगा

कि ये "शुभ मिलन" अब पुनः कब बनेगा
 
                                                 

   सुधा देवरानी*







टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद सखी उत्साहवर्धन हेतु
      सस्नेह आभार...।

      हटाएं
  2. पुष्प और भ्रमर सुन्दर चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी !
      सादर आभार...।

      हटाएं
  4. आपकी लेखनी को नमन । आज वो गीत भी याद आ गई "भँवरे ने खिलाया फूल, फूल को वे गए राज कुंवर....."
    तुम गुनगुनाए तो मैने यूँ समझा........
    प्रथम गीत तुमने मुझे ही सुनाया
    तुम पास आये तो मैं खिल उठी यूँ.....
    अनोखा बसेरा मेरे ही संग बसाया ।
    शुभकामनाएँ ....व बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद, पुरुषोत्तम जी ! उत्साहवर्धन हेतु...
      सादर आभार।

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. आभारी हूँ विश्वमोहन जी! बहुत बहुत धन्यवाद आपका...।

      हटाएं
  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

    जवाब देंहटाएं
  7. तहेदिल से धन्यवाद आँचल जी मेरी रचना को मंच पर साझा करने हेतु.....
    सस्नेह आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. विचित्र संसार है, यदि भंवरे पुष्प से हटे नहीं तो ऐसा भी होता है कि सूर्यास्त के समय जब फूलों की पंखुड़ियाँँ आपस में सिकुड़ जाती हैं ,तो बेचारा भंवरा भी उसके अंदर ही प्रातः काल की प्रतीक्षा में दम तोड़ देता है।
    सुंदर भावपूर्ण सृजन ,आपको नमन।

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  9. तुम तो भ्रमर थे मैं इक फूल ठहरी......
    वफा कर न पाये ? / था जाना जरूरी ? ....सद‍ियों से चली आ रही ये एक शाश्वत स्थ‍ित‍ि है, इसपर बहुत ही गज़ब का ल‍िखा है सुधा जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद, अलकनंदा जी !
      सादर आभार...।

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक जी!
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

      हटाएं
  11. बहुत खूबसूरत रचना ।
    बेफाओं से क्यों कर कोई उम्मीद करे ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!

      हटाएं
  12. खूबसूरत ,अभिनव सृजन ,मोहक शब्द सौष्ठव ने मोह लिया हालांकि विरह के दुखद पल है, फिर भी सृजन इतना मनोहारी है कि प्रशंसा को शब्द नही सुधा जी मैं पूरी तरह से मुग्ध हूँ।
    अप्रतिम।

    जवाब देंहटाएं

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