संदेश

अक्टूबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बीती ताहि बिसार दे

चित्र
  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

प्रभु फिर आइए

चित्र
जग के पालनहार, दीन करते गुहार, लेके अब अवतार, प्रभु फिर आइए । दैत्य वृत्ति बढ़ रही, कुत्सा सर चढ़ रही, प्रीत का मधुर राग, जग को सुनाइए । भ्रष्ट बुद्धि हुई क्रुद्ध, धरा झेल रही युद्ध, सृष्टि के उद्धार हेतु, चक्र तो उठाइए । कर्म की प्रधानता का, धर्म की महानता का, सत्य पुण्य नीति ज्ञान, सब को बताइये । दुष्ट का संहार कर, तेज का विस्तार कर, धुंध के विनाश हेतु, मार्ग तो सुझाइए । बने पुनः विश्व शान्ति, मिटे सभी मन भ्रांति, भक्त हो सुखी सदैव, कृपा बरसाइए । आओ न कृपानिधान, बाँसुरी की छेड़ तान, विधि के विधान अब, पुनः समझाइए  । धर्म की कराने जय, मेंटने संताप भय, दिव्य रुप धार कर, प्रभु फिर आइए । पढ़िये एक और घनाक्षरी छंद.. राम एक संविधान

मैथड - जैसे को तैसा

चित्र
 " माँ ! क्या सोच रही हो" ? "कुछ नहीं बेटा ! बस यूँ ही"। "कैसे बस यूँ ही ? आपने ही तो कहा न माँ कि आप मेरी बैस्ट फ्रेंड हैं, और मैं अपनी हर बात आपसे शेयर करूँ" !  "हाँ कहा था,  तो" ?  "तो आप भी तो अपनी बातें मुझसे शेयर करो न ! मैं भी तो आपकी बैस्ट फ्रेंड हुई न !  हैं न माँ"!  "हाँ भई ! मेरी पक्की वाली सहेली है तू भी , और बताउँगी न तुझे अपनी सारी बातें, पहले थोड़ा बड़ी तो हो जा" ! मुस्कराते हुए माँ ने उसके गाल छुए। "मैं बड़ी हो गयी हूँ , माँ ! आप बोलो न अपनी बात मुझसे ! मुझे सब समझ आता है"। हाथों को आपस में बाँधकर बड़ी बड़ी आँखें झपकाते हुए वह माँ के ठीक सामने आकर बोली । "अच्छा ! इतनी जल्दी बड़ी हो गयी" ! (माँ ने हँसकर पुचकारते हुए कहा ) "हाँ माँ ! अब बोलो भी ! उदास क्यों हो ? क्या हुआ"  ? कहते हुए उसने अपने कोमल हाथों से माँ की ठुड्डी पकड़कर ऊपर उठाई । उसका हाथ अपने हाथ में लेकर माँ विचारमग्न सी अपनी ही धुन में बोली, "कुछ खास नहीं बेटा ! बस सोच रही थी कि मैं सबसे प्रेम से बोलती हूँ फिर भी कुछ लोग म...

फ़ॉलोअर