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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

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बहुत समय से बोझिल मन को  इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें  उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से  उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी  कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन,  माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित,  फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता ,  ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर,  स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो,  जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से,  मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे,  पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से,  निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा,  मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर,  ...

लोहड़ी मनाएं

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चलो आओ दोस्तों मिलकर लोहड़ी मनाएं हम सोसायटी वाले हैं चलो सर्वधर्म लोहड़ी मनाकर भाईचारा बढ़ाएं ! पड़ौसी कौन है ये तो हम नहीं जानते, अगल-बगल सोसायटी में किसी को नहीं पहचानते, पर इसमें क्या ?   चलो थोड़ा हाय हैलो ही कर आयें ! हम सोसायटी वाले हैं सर्वधर्म लोहड़ी मनाएं ! हाँ आज पूरा दिन तेज बारिश और हाड़कंपाती ठंड है दिन भर ब्रांडेड महंगे ऊनी कपड़ों से अपना तो जिस्म बंद है सोसायटी मेंबर्स से अच्छी रकम वसूली है डीजे नाईट है.....हम आधुनिक हैं सो वन पीस जरूरी है..... कहाँ पता चलता है कि अपने पैर वन पीस में ठंड से कंपकंपाएं या डीजे की थाप पर थिरकाएं आओ दोस्तों हम तो सर्वधर्म लोहड़ी मनाएं ! डीजे के कानफोड़ू संगीत से अपनी सोसायटी में रौनक बढ़ी है क्या फर्क पड़ता है,अगर छात्रों की पढ़ाई में कुछ अड़चन पड़ी है हमें क्या....किसी का बीमार बुजुर्ग कानफोड़ू संगीत से परेशान है.... ये डीजे नाईट तो अपनी सोसायटी की शान है पुरातनता को गाँँव में छोड़ हम कुछ आधुनिक हो जाएं चलो आओ दोस्तों मिलकर लोहड़ी मनाएं।                     ...

घर से निकलते ही......

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घर से निकलते ही ठण्ड  से ठिठुरते ही दिखता है अपना शहर कुछ भीगे भागे से कुछ हैं अभागे से सहते हैं ठंड का कहर आसमां को तकते हैं  दुआ फिर ये करते हैं कुछ धूप आये नजर घर से निकलते ही ठंड से ठिठुरते ही दिखता है अपना शहर     'एक माँ' पतली सी धोती में शिशु को छुपाती वो बेबस सी आयी नजर बुझता अलाव उसका फूंकनी से फूंके वो रो - रो के करती बसर "ये सर्द निकले तो कुछ कर ही लूँगी मैं सह ले लला ! इस पहर" पतली सी धोती में शिशु को छुपाती वो बेबस सी आयी नजर.... ' नन्हा छोटू ' खेलने की उमर में ही डिलीवरी करता वह सुबह-शाम यूँ घर-घर सबके ही सामने यूँ डपट दिया जाता वो दिखता तो है बेफिकर आँखें सब कहती हैंं झुकी -झुकी रहती हैं कितना बने वो वजर खेलने की उमर में ही डिलीवरी करता वो सुबह-शाम यूँ घर-घर 'एक गरीब' टूटे से सपने है बदहाल अपने हैं पर मन में आशा की लहर कंपकंपाती शीत में वो तार-तार वसन पहने शीत-बाण से है बेफिकर दिनभर कमरकस के दिहाड़ी कमाता वो करता गुजर 'औ' बसर है मन में आशा की लहर।                    चित...

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