घर से निकलते ही
ठण्ड
ठण्ड
से ठिठुरते ही
दिखता है अपना शहर
कुछ भीगे भागे से
कुछ हैं अभागे से
सहते हैं ठंड का कहर
आसमां को तकते हैं
दुआ फिर ये करते हैं
कुछ धूप आये नजर
घर से निकलते ही
ठंड से ठिठुरते ही
दिखता है अपना शहर
'एक माँ'
पतली सी धोती में
शिशु को छुपाती वो
बेबस सी आयी नजर
बुझता अलाव उसका
फूंकनी से फूंके वो
रो - रो के करती बसर
"ये सर्द निकले तो
कुछ कर ही लूँगी मैं
सह ले लला ! इस पहर"
पतली सी धोती में
शिशु को छुपाती वो
बेबस सी आयी नजर....
' नन्हा छोटू '
खेलने की उमर में ही
डिलीवरी करता वह
सुबह-शाम यूँ घर-घर
सबके ही सामने यूँ
डपट दिया जाता वो
दिखता तो है बेफिकर
आँखें सब कहती हैंं
झुकी -झुकी रहती हैं
कितना बने वो वजर
खेलने की उमर में ही
डिलीवरी करता वो
सुबह-शाम यूँ घर-घर
'एक गरीब'
टूटे से सपने है
बदहाल अपने हैं
पर मन में आशा की लहर
कंपकंपाती शीत में वो
तार-तार वसन पहने
शीत-बाण से है बेफिकर
दिनभर कमरकस के
दिहाड़ी कमाता वो
करता गुजर 'औ' बसर
है मन में आशा की लहर।
चित्र साभार गूगल से....
35 टिप्पणियां:
कंपकंपाती सर्द में संवेदना की आग झोंकती कविता। अद्भुत चित्र। सराहना से परे।
अभी तो उसे अपनी रात फुटपाथ में बितानी है
जहाँ, किसी सलमान की कार, उसके ऊपर चढ़ जानी है.
बेहतरीन सृजन।बेहद खुबसुरत ।
संवेदना से परिपूर्ण
वाह ...
बहुत कमाल की रचना ... और कमाल का टर्न ... घर से निकलते ही ...
जिंदगी की कठोर सच्चाइयों से जूझती जिंदगी का लाजवाब आंकलन है ये ताज़ा रचना ...
उम्दा ...
आभारी हूँ विश्वमोहन जी!उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु....
हृदयतल से धन्यवाद आपका।
जी, सही कहा आपने...
हृदयतल से धन्यवाद आपका
सादर आभार।
बहुत बहुत धन्यवाद सुजाता जी!
सादर आभार।
आभारी हूँ नासवा जी! आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है
हृदयतल से धन्यवाद आपका।
वाह!!बेहतरीन सृजन ।
हार्दिक धन्यवाद शुभा जी !
सस्नेह आभार।
बहुत सुंदर रचना,ठण्ड और बेबसी का सुन्दर चित्रांकन।
जिंदगी की कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी। ठंड में गरीबो को किन किन समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है इसका बहुत ही बढ़िया वर्णन।
आम इन्सान के जीवन के संघर्ष को छूती नायाब रचना । अति सुन्दर सृजन ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 07 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी!
सस्नेह आभार...
आभारी हूँ मीना जी!हार्दिक धन्यवाद आपका...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !
मेरी रचना को मंच में साझा करने हेतु...।
बेवसी के मारे बहुत कुछ करना पड़ता है , जीना पड़ता है हर हाल में
बहुत सही मर्मस्पर्शी
फुटपाती जलते अलाव से जैसे गरीबों की ठण्ड वाली कम्पन काफ़ूर हो जाती है ... वैसे ही आपकी रचना की मार्मिकता भी गाने (घर से निकलते ही ...) के तर्ज़ पर लयबद्ध पढ़ने पर लयबद्धता में घुलमिल सी जाती है ...
हृदयतल से धन्यवाद कविता जी !
सादर आभार...
आभारी हूँ सुबोध जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
पतली सी धोती में
शिशु को छुपाती वो
बेबस सी आयी नजर...कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना
हार्दिक धन्यवाद संजय जी !
सादर आभार...
चारों क्षणिकाएं बेमिसाल।
सभी में यथार्थ का हृदय स्पर्शी चित्ररत,
बहुत सुंदर सटीक सृजन सुधा जी ।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति
हृदयतल से धन्यवाद अनुराधा जी !
सस्नेह आभार।
आभारी हूँ कुसुम जी !हृदयतल से धन्यवाद आपका।
अद्धभुत लेखन
आभारी हूँ आपकी तहेदिल से धन्यवाद उत्साह वर्धन हेतु....।
वाह!सुधा जी ,बेहतरीन सृजन । यथार्थ को बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया है आपनेंं ।
तहेदिल से धन्यवाद आ. शुभा जी!
सादर आभार।
वाह ! एक फ़िल्मी गाने की तर्ज़ पर ऐसे ख़ूबसूरत ख़यालात जो की पढ़ने वालों को सोचने को मजबूर करें !
हृदयतल से धन्यवाद आदरणीय सर!
सादर आभार।
वाह लाजबाव
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद भारती जी!
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