सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में,सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार बोले अब न उठायेंगे, तेरे पुण्यों का भार तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ,गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।।
कंपकंपाती सर्द में संवेदना की आग झोंकती कविता। अद्भुत चित्र। सराहना से परे।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ विश्वमोहन जी!उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु....
हटाएंहृदयतल से धन्यवाद आपका।
अभी तो उसे अपनी रात फुटपाथ में बितानी है
जवाब देंहटाएंजहाँ, किसी सलमान की कार, उसके ऊपर चढ़ जानी है.
जी, सही कहा आपने...
हटाएंहृदयतल से धन्यवाद आपका
सादर आभार।
बेहतरीन सृजन।बेहद खुबसुरत ।
जवाब देंहटाएंसंवेदना से परिपूर्ण
बहुत बहुत धन्यवाद सुजाता जी!
हटाएंसादर आभार।
वाह ...
जवाब देंहटाएंबहुत कमाल की रचना ... और कमाल का टर्न ... घर से निकलते ही ...
जिंदगी की कठोर सच्चाइयों से जूझती जिंदगी का लाजवाब आंकलन है ये ताज़ा रचना ...
उम्दा ...
आभारी हूँ नासवा जी! आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आपका।
वाह!!बेहतरीन सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद शुभा जी !
हटाएंसस्नेह आभार।
बहुत सुंदर रचना,ठण्ड और बेबसी का सुन्दर चित्रांकन।
जवाब देंहटाएंजिंदगी की कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी। ठंड में गरीबो को किन किन समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है इसका बहुत ही बढ़िया वर्णन।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी!
हटाएंसस्नेह आभार...
आम इन्सान के जीवन के संघर्ष को छूती नायाब रचना । अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ मीना जी!हार्दिक धन्यवाद आपका...
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 07 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को मंच में साझा करने हेतु...।
बेवसी के मारे बहुत कुछ करना पड़ता है , जीना पड़ता है हर हाल में
जवाब देंहटाएंबहुत सही मर्मस्पर्शी
हृदयतल से धन्यवाद कविता जी !
हटाएंसादर आभार...
फुटपाती जलते अलाव से जैसे गरीबों की ठण्ड वाली कम्पन काफ़ूर हो जाती है ... वैसे ही आपकी रचना की मार्मिकता भी गाने (घर से निकलते ही ...) के तर्ज़ पर लयबद्ध पढ़ने पर लयबद्धता में घुलमिल सी जाती है ...
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सुबोध जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका...
हटाएंपतली सी धोती में
जवाब देंहटाएंशिशु को छुपाती वो
बेबस सी आयी नजर...कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना
हार्दिक धन्यवाद संजय जी !
जवाब देंहटाएंसादर आभार...
चारों क्षणिकाएं बेमिसाल।
जवाब देंहटाएंसभी में यथार्थ का हृदय स्पर्शी चित्ररत,
बहुत सुंदर सटीक सृजन सुधा जी ।
आभारी हूँ कुसुम जी !हृदयतल से धन्यवाद आपका।
हटाएंबहुत सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद अनुराधा जी !
हटाएंसस्नेह आभार।
अद्धभुत लेखन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपकी तहेदिल से धन्यवाद उत्साह वर्धन हेतु....।
जवाब देंहटाएंवाह!सुधा जी ,बेहतरीन सृजन । यथार्थ को बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया है आपनेंं ।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद आ. शुभा जी!
हटाएंसादर आभार।
वाह ! एक फ़िल्मी गाने की तर्ज़ पर ऐसे ख़ूबसूरत ख़यालात जो की पढ़ने वालों को सोचने को मजबूर करें !
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद आदरणीय सर!
हटाएंसादर आभार।
वाह लाजबाव
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद भारती जी!
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