सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे, तेरे पुण्यों का भार तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ● तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 27 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद आ.यशोदा जी मेरी रचना को मुखरित मौन के मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर आभार।
रिश्तों का ऐसा क्यो़ होता ताना-बाना
जवाब देंहटाएंसाथ चलते है लगते मगर अजनबी अनजाना।
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सुंदर भावपूर्ण सृजन प्रिय सुधा जी।
सस्नेह।
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ श्वेता जी!
हटाएंसहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका।
रिश्तों ने भी बदलते समय में अपना चेहरा बदला है। भौतिकता के आगे प्रेम प्यार गौण होकर रह गए हैं। रिश्तों पर गहनता से पड़ताल करतीं रचना प्रिय सुधा जी। जिन्होंने रिश्ते नातों का उत्कर्ष देख रखा हो उनके लिए ये पतन किसी सदमे से कम नहीं। पर क्या करें हर जगह यही हो रहा है।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया द्वारा प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रेणु जी!
हटाएंजीवन के कुछ सच ऐसे भी होते हैं। सही कहा आपने। दिल को छू लिया।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार एवं धन्यवाद आ.विश्वमोहन जी!
हटाएंरिश्तों में स्वार्थ के आ जाना ही दुखदायी है ।
जवाब देंहटाएंभौतिक साधनों के पीछे भागते भागते रिश्तों की अहमियत को खो देते हैं । विचारणीय रचना ।
तहेदिल से धन्यवाद आ.संगीता जी! आपकी सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है।
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